INTUC News: इंटक विवाद में बाजपेई सरकार का फार्मूला अपनाए केंद्र और कोल इंडिया

इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस में वर्चस्व की जंग नई नहीं है। तकरीबन 3 दशक पुरानी है। बीच में 2004 के चुनाव के दौरान यह अस्थाई रूप से जरूर खत्म की गई थी लेकिन फिर इसने जल्द ही अपना असल रूप अख्तियार कर लिया।

By Atul SinghEdited By: Publish:Mon, 21 Jun 2021 02:00 PM (IST) Updated:Mon, 21 Jun 2021 02:00 PM (IST)
INTUC News:  इंटक विवाद में बाजपेई सरकार का फार्मूला अपनाए केंद्र और कोल इंडिया
इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस में वर्चस्व की जंग नई नहीं है। (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)

धनबाद, जेएनएन : इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस में वर्चस्व की जंग नई नहीं है। तकरीबन 3 दशक पुरानी है। बीच में 2004 के चुनाव के दौरान यह अस्थाई रूप से जरूर खत्म की गई थी लेकिन फिर इसने जल्द ही अपना असल रूप अख्तियार कर लिया। प्रणब मुखर्जी के नेतृत्व में समझौते की कोशिश भी कुल मिलाकर नाकाम ही रही। हालांकि एक वक्त आया था जब धुर विरोधी भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने बीच का रास्ता निकाला था।

राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ के महामंत्री एके झा उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि हमेशा से सत्ताधारी दल के मन मुताबिक उसकी चाटुकारिता में अधिकारी विवाद उत्पन्न करते रहे हैं। ऐसा ही उन्होंने तब भी किया था जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री हुआ करते थे। करिया मुंडा उस समय कोयला मंत्री थे। जेबीसीसीआई के गठन के वक्त तब भी यही सवाल उठ खड़ा हुआ कि आखिर किस गुट को मान्यता दी जाए। विवाद इतना बढ़ा कि ट्रेड यूनियन के नेताओं ने सरकार से हस्तक्षेप की मांग की। ऐसे में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसके समाधान का मार्ग निकाला। उन्होंने कहा कि इंटक कांग्रेस का मजदूर संगठन है। ऐसे में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखा जाए। वह जिसे नामित कर देंगी उसी को बैठक में आमंत्रित किया जाए। इस पर कोल इंडिया अधिकारियों ने और कोयला मंत्रालय के अधिकारियों ने संशय जताया। वाजपेयी ने उसे दरकिनार कर दिया और तब तत्कालीन कोयला मंत्री करिया मुंडा ने सोनिया गांधी को पत्र लिखा। उन्होंने संजीवा रेड्डी और तत्कालीन महामंत्री राजेंद्र प्रसाद सिंह को बुलाकर जानकारी ली और उन्हीं दोनों का नाम सरकार को सुझाया। दोनों नेताओं ने जिन प्रतिनिधियों का नाम सुझाया वह बैठक में शामिल हो गए। अध्यक्षता राजेंद्र प्रसाद सिंह ने की। मौजूदा सरकार को भी यह प्रक्रिया अपनानी चाहिए। यदि अन्य बिंदुओं पर उसे असहमति हो तो इसी रास्ते विवाद सुलझा लेना चाहिए। हजारों श्रमिकों के इस संगठन को इस तरह दरकिनार करने का खेल नहीं खेलना चाहिए।

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