14 साल पहले कास्ट कटिग के नाम पर बंद हुआ था सेंट्रल अस्पताल का ऑक्सीजन प्लांट

देश के अन्य हिस्सों की तरह धनबाद में भी ऑक्सीजन की कमी से कोरोना संक्रमितों की मौत आम बात हो गई है। दुखद यह है कि जिले में पहला कोविड-19 अस्पताल का दर्जा बीसीसीएल के जिस केंद्रीय अस्पताल को दिया गया कभी उसके पास अपना ऑक्सीजन प्लांट भी था। कॉस्ट कटिग के नाम पर अच्छे-भले प्लांट को बंद कर दिया गया।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 26 Apr 2021 06:05 AM (IST) Updated:Mon, 26 Apr 2021 06:05 AM (IST)
14 साल पहले कास्ट कटिग के नाम पर बंद हुआ था सेंट्रल अस्पताल का ऑक्सीजन प्लांट
14 साल पहले कास्ट कटिग के नाम पर बंद हुआ था सेंट्रल अस्पताल का ऑक्सीजन प्लांट

जागरण संवाददाता, धनबाद : देश के अन्य हिस्सों की तरह धनबाद में भी ऑक्सीजन की कमी से कोरोना संक्रमितों की मौत आम बात हो गई है। दुखद यह है कि जिले में पहला कोविड-19 अस्पताल का दर्जा बीसीसीएल के जिस केंद्रीय अस्पताल को दिया गया कभी उसके पास अपना ऑक्सीजन प्लांट भी था। कॉस्ट कटिग के नाम पर अच्छे-भले प्लांट को बंद कर दिया गया। आज प्रतिदिन दो-तीन कोविड-19 संक्रमितों की मौत यहां के लिए आम बात हो गई है। इनकी जड़ में संक्रमितों के शरीर में ऑक्सीजन के स्तर में कमी ही प्रमुख वजह बताई जा रही है।

एक हजार लीटर का था टैंक :

केंद्रीय अस्पताल में जो ऑक्सीजन संयंत्र था, उसमें 1000 लीटर प्रतिघंटा उत्पादन की क्षमता थी। संयंत्र से भूमिगत पाइप अस्पताल में लगी थी। रोगियों की सुविधा के लिए पूरे अस्पताल में ऑक्सीजन पाइप लगाया गया था और इस संयंत्र से उनमें 24 घंटे ऑक्सीजन की आपूर्ति होती रहती थी। सिलेंडर की यहां कोई जरूरत नहीं थी। ऑक्सीजन संयंत्र में एक रिफिलिग स्टेशन भी था। सभी क्षेत्रीय अस्पतालों के लिए यहां से सिलेंडर में ऑक्सीजन भर कर जरूरत के अनुसार आपूर्ति की जाती थी।

2006 में लग गया ताला :

वर्ष 2006 में कंपनी में ताला लग गया। अधिकारियों की मानें तो ऑक्सीजन संयंत्र की स्थापना ब्रिटेन की एक कंपनी ने की थी। इसके सर्विस प्रोवाइडर थे गुलशन वर्मा जो दिल्ली में रहते थे। संयंत्र का परिचालन भी निर्माता कंपनी ही करती थी। तीन शिफ्ट में चार-चार तकनीशियन व कर्मियों की ड्यूटी लगाई गई थी। इसमें उस वक्त तकरीबन 1.5 लाख महीने का खर्च आता था। बाद में बीसीसीएल जब आर्थिक संकट में आई तो कहा गया कि संयंत्र में जितना खर्च आता है, उससे कम में ही सिलेंडर से निजी एजेंसियां ऑक्सीजन की आपूर्ति कर देंगी। तकरीबन आधा लागत में ही जरूरत भर का आक्सीजन मिल जाएगा। इसके बाद प्रबंधन ने इस प्लांट के रखरखाव से अपना हाथ खींच लिया।

पुनर्जीवित करना संभव नहीं :

केंद्रीय अस्पताल के सीएमएस डॉ. राजेश ठाकुर के मुताबिक फिलहाल पुराने प्लांट को पुनर्जीवित करना संभव नहीं। उसकी सारी मशीनरी खत्म हो चुकी है। नए सिरे से ही प्लांट लगाना होगा। हालांकि फिलहाल नये संयंत्र लगाने की कोई चर्चा नहीं है। सिलेंडर मंगाने की अपेक्षा संयंत्र की स्थापना खर्चीला होता है। हालांकि इस संबंध में प्रबंधन ही कोई निर्णय ले सकती है। फिलहाल 50 नये जंबो सिलिडर अस्पताल को मिले हैं।

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