कोरोना काल में ऐसे मनाएं मकर संक्रांति, सनातन संस्था ने बताए नियम Dhanbad News

कोरोना संक्रमण का दौर चल रहा है। इसके बावजूद भी लोग पर्व त्यौहार काफी श्रद्धा के साथ मना रहे हैं। संक्रमण के दौर में मकर संक्रांति पर्व सावधान पूर्वक मनाने को लेकर सनातन संस्था और जन जागृति समिति ने निर्देश जारी किए हैं।

By Atul SinghEdited By: Publish:Wed, 13 Jan 2021 11:52 AM (IST) Updated:Wed, 13 Jan 2021 11:52 AM (IST)
कोरोना काल में ऐसे मनाएं मकर संक्रांति, सनातन संस्था ने बताए नियम Dhanbad News
कोरोना संक्रमण का दौर चल रहा है। पर्व त्यौहार काफी श्रद्धा के साथ मना रहे हैं। (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)

धनबाद, जेएनएन : कोरोना संक्रमण का दौर चल रहा है। इसके बावजूद भी लोग पर्व त्यौहार काफी श्रद्धा के साथ मना रहे हैं। संक्रमण के दौर में मकर संक्रांति पर्व सावधान पूर्वक मनाने को लेकर सनातन संस्था और हिंदू जन जागृति समिति ने निर्देश जारी किए हैं।

ऐसे मनाए पर्व :

- त्योहार मनाने के लिए स्थानीय परिस्थिति देखकर शासन-प्रशासन की ओर से जारी कोरोना से संबंधित नियमों का पालन करें।

- हलदी-कुमकुम का कार्यक्रम आयोजित करते समय एक ही समय पर सभी महिलाओं को आमंत्रित न करें, अपितु 4-4 के गुट में 15-20 मिनट के अंतर से आमंत्रित करें ।

- तिलगुड का लेन-देन सीधे न करते हुए छोटे लिफाफे में डालकर उसका लेन-देन करें ।

- आपस में मिलते अथवा बोलते समय मास्क का उपयोग करें ।

- किसी भी त्योहार को मनाने का उद्देश्य स्वयं में सत्त्वगुण की वृद्धि करना होता है । इसलिए आपातकालीन परिस्थिति के कारण प्रथा के अनुसार त्योहार-उत्सव मनाने में मर्यादाएं हैं, तथापि इस काल में अधिकाधिक समय ईश्‍वर का स्मरण, नामजप, उपासना आदि करने तथा सत्त्वगुण बढाने का प्रयास करने पर ही वास्तविक रूप से त्योहार मनाना होगा ।

मकरसंक्रांति से संबंधित आध्यात्मिक विवेचन :

त्योहार, उत्सव और व्रतों को अध्यात्मशास्त्रीय आधार होता है । इसलिए उन्हें मनाते समय उनमें से चैतन्य की निर्मिति होती है तथा उसके द्वारा साधारण मनुष्य को भी ईश्‍वर की ओर जाने में सहायता मिलती है । ऐसे महत्त्वपूर्ण त्योहार मनाने के पीछे का अध्यात्मशास्त्र जानकर उन्हें मनाने से उसकी फलोत्पत्ति अधिक होती है । इसलिए यहां संक्रांत और उसे मनाने के विविध कृत्य और उनका अध्यात्मशास्त्र यह है। 

1. उत्तरायण और दक्षिणायन : इस दिन सूर्य का मकर राशि में संक्रमण होता है । सूर्यभ्रमण के कारण होनेवाले अंतर की पूर्ति करने हेतु प्रत्येक अस्सी वर्ष में संक्रांति का दिन एक दिन आगे बढ जाता है । इस दिन सूर्य का उत्तरायण आरंभ होता है । कर्क संक्रांति से मकर संक्रांति तक के काल को ‘दक्षिणायन’ कहते हैं । जिस व्यक्ति की उत्तरायण में मृत्यु होती है, उसकी अपेक्षा दक्षिणायन में मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति के लिए, दक्षिण (यम) लोक में जाने की संभावना अधिक होती है ।

2. संक्रांति का महत्त्व : इस काल में रज-सत्त्वात्मक तरंगों की मात्रा अधिक होने के कारण यह साधना करनेवालों के लिए पोषक होता है ।

3. तिल का उपयोग : संक्रांति पर तिल का अनेक ढंग से उपयोग करते हैं, उदाहरणार्थ तिलयुक्त जल से स्नान कर तिल के लड्डू खाना एवं दूसरों को देना, ब्राह्मणों को तिलदान, शिवमंदिर में तिल के तेल से दीप जलाना, पितृश्राद्ध करना (इसमें तिलांजलि देते हैं) श्राद्ध में तिल का उपयोग करने से असुर इत्यादि श्राद्ध में विघ्न नहीं डालते । आयुर्वेदानुसार सर्दी के दिनों में आनेवाली संक्रांति पर तिल खाना लाभदायक होता है । अध्यात्मानुसार तिल में किसी भी अन्य तेल की अपेक्षा सत्त्वतरंगे ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है तथा सूर्य के इस संक्रमण काल में साधना अच्छी होने के लिए तिल पोषक सिद्ध होते हैं ।

4. तिलगुड का महत्त्व : तिल में सत्त्वतरंगें ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है । इसलिए तिलगुड का सेवन करने से अंतःशुद्धि होती है और साधना अच्छी होने हेतु सहायक होते हैं । तिलगुड के दानों में घर्षण होने से सात्त्विकता का आदान-प्रदान होता है ।

5. हलदी-कुमकुम के पंचोपचार : हलदी-कुमकुम लगाने से सुहागिन स्त्रियों में स्थित श्री दुर्गादेवी का सुप्त तत्त्व जागृत होकर वह हलदी-कुमकुम लगानेवाली सुहागिन का कल्याण करती है ।

6. इत्र लगाना : इत्र से प्रक्षेपित होनेवाले गंध कणों के कारण देवता का तत्त्व प्रसन्न होकर उस सुहागिन स्त्री के लिए न्यून अवधि में कार्य करता है ।

7. गुलाबजल छिडकना : गुलाबजल से प्रक्षेपित होनेवाली सुगंधित तरंगों के कारण देवता की तरंगे कार्यरत होकर वातावरण की शुद्धि होती है और उपचार करनेवाली सुहागिन स्त्री को कार्यरत देवता के सगुण तत्त्व का अधिक लाभ मिलता है ।

8. गोद भरना : गोद भरना अर्थात ब्रह्मांड में कार्यरत श्री दुर्गादेवी की इच्छाशक्ति को आवाहन करना । गोद भरने की प्रक्रिया से ब्रह्मांड में स्थित श्री दुर्गादेवीची इच्छाशक्ति कार्यरत होने से गोद भरनेवाले जीव की अपेक्षित इच्छा पूर्ण होती है ।

9. उपायन देना : उपायन देते समय सदैव आंचल के छोर से उपायन को आधार दिया जाता है । तत्पश्‍चात वह दिया जाता है । ‘उपायन देना’ अर्थात तन, मन एवं धन से दूसरे जीव में विद्यमान देवत्व की शरण में जाना । आंचल के छोर का आधार देने का अर्थ है, शरीर पर धारण किए हुए वस्त्र की आसक्ति का त्याग कर देहबुद्धि का त्याग करना सिखाना । संक्रांति-काल साधना के लिए पोषक होता है । अतएव इस काल में दिए जानेवाले उपायन सेे देवता की कृपा होती है और जीव को इच्छित फलप्राप्ति होती है ।

10. उपायन में यह दें : आजकल साबुन, प्लास्टिक की वस्तुएं जैसी अधार्मिक सामग्री उपायन देने की अनुचित प्रथा है । इन वस्तुओं की अपेक्षा सौभाग्य की वस्तु, उदबत्ती (अगरबत्ती), उबटन, धार्मिक ग्रंथ, पोथी, देवताओं के चित्र जैसी अध्यात्म के लिए पूरक वस्तुएं उपायन स्वरूप देनी चाहिए ।

11. किंक्रांत : यह संक्रांति का अगला दिन है । इस दिन देवी ने किंकरासुर का वध किया था ।

12. शिवजी को तिल-चावल अर्पण करना : इस दिन शिवजी को तिल-चावल अर्पण करने अथवा तिल-चावल मिश्रित अर्घ्य अर्पण करने का भी विधान है । इस पर्व के दिन तिल का विशेष महत्त्व माना गया है । इस दिन तिल का उबटन शरीर पर लगाना, तिलमिश्रित जल से स्नान, तिलमिश्रित जल पीना, तिलहोम करना, तिलदान करना, इन छहों पद्धतियों से तिल का उपयोग करनेवालों के सर्व पाप नष्ट होते हैं । इसलिए इस दिन तिल, गुड तथा शक्करमिश्रित लड्डू खाने तथा दान करने का अपार महत्त्व है ।

13. मकर संक्रांति पर दान : धर्मशास्त्र के अनुसार इस दिन दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठान करने का महत्त्व बताया गया है । इस दिन किया हुआ दान पुनर्जन्म होने के उपरांत 100 गुना प्राप्त होता है ।  

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