मोमो गेम को सीबीएसई ने माना 'चैलेंज', स्कूलों को लिखा पत्र
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने भी मोमो चैलेंज को बच्चों के लिए खतरा मानते हुए सीबीएसई स्कूलों को सर्कुलर जारी कर सतर्कता बरतने का निर्देश दिया है।
धनबाद, आशीष सिंह। आपको याद होगा कि कुछ महीनों पहले ब्लू व्हेल गेम ने कितनी जानें ली थीं। भारत में भी कई बच्चों ने इसके प्रभाव में आकर आत्महत्या कर ली थी। अब वैसा ही दूसरा चैलेंज आया है- मोमो चैलेंज। पहले ब्लू व्हेल गेम और अब मोमो चैलेंज गेम बच्चों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। राजस्थान व पश्चिम बंगाल में मोमो चैलेंज के चलते तीन की मौत हो चुकी है। इसके गंभीर परिणाम को देखते हुए पिछले दिनों ही इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी मंत्रालय ने एडवाइजरी जारी की थी। इसका हवाला देते हुए केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने भी इस गेम को बच्चों के लिए खतरा मानते हुए दो दिन पहले देशभर के सभी सीबीएसई स्कूलों को सर्कुलर जारी कर सतर्कता बरतने का निर्देश दिया है।
जानें, क्या है मोमो चैलेंज गेम: हल्के पीले रंग का एक डरावना चेहरा, जिसकी दो बड़ी-बड़ी गोल आंखें हों, डरावनी सी मुस्कान और टेढ़ी-मेढ़ी नाक हो... अगर अचानक आपके व्हाट्सएप पर इस तरह की तस्वीर लगे किसी नंबर से मैसेज आए तो जरा संभल जाइए। यह तस्वीर दरअसल मोमो गेम चैलेंज का हिस्सा हो सकती है। यह एक ऐसा गेम है, जो हमारे दिमाग के साथ खेलता है, डर का माहौल बनाता है और फिर इंसान की जान ले लेता है। इसकी शुरुआत एक व्हाट्सएप रिक्वेस्ट से होती है। मोमो गेम चैलेंज को व्हाट्सएप पर ही शेयर किया जा रहा है। गेम में लगातार फोन पर अलग-अलग तरह के टास्क दिए जाते हैं। कई तरह के टास्क को पूरा करने के बाद आखिर में आत्महत्या का टास्क भी मिलता है।
सीबीएसई ने तकनीक को मजबूत करने को कहा: सीबीएसई ने स्कूल और स्कूल बसों में इंटरनेट और डिजिटल तकनीक के सुरक्षित उपयोग पर भी जोर दिया है। सर्कुलर में सीबीएसई ने मिनिस्ट्री ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी की एडवाइजरी का अनुपालन करने को कहा है। इसके तहत मोमो चैलेंज गेम क्या है, इसमें बच्चे किस तरह से फंसते हैं, इसकी पहचान कैसे की जाए, इससे बचने के उपाय क्या हो सकते हैं, आदि बातों की जानकारी शिक्षकों और अभिभावकों को देनी है।
स्कूल बसों में सीसीटीवी कैमरा व जीपीएस अनिवार्य: स्कूल बसों को लेकर भी सीबीएसई ने निर्देश दे रखा है। इन वाहनों में सीसीटीवी कैमरा और जीपीएस अनिवार्य किया गया है। इसके अलावा गति नियंत्रण के लिए सभी उपकरण बस में ठीक काम कर रहे हों, अधिकतम स्पीड लिमिट 40 किमी प्रति घंटा हो, बस की खिड़कियां ग्रिल से अच्छे तरीके से बंद होनी चाहिए, स्कूल बस में अलार्म बेल और सायरन हों, ट्रेंड महिला अटेंडेंट बस में होनी चाहिए, एक ट्रांसपोर्ट मैनेजर भी बस में होना चाहिए, स्कूल बस में इमरजेंसी के लिए एक मोबाइल फोन हो, बच्चों से ट्रांसपोर्ट सुविधा खासकर ड्राइवर के बारे में फीडबैक लिया जाए, आदि बातों का ध्यान स्कूल प्रबंधन को रखना है। यदि बस दुर्घटनाग्रस्त होती है तो उसके लिए स्कूल मैनेजमेंट और स्कूल के प्रमुख पूरी तरह से जिम्मेदार होंगे। स्कूलों को ये सुविधा देनी होगी कि हर बस में एक पैरेंट हो।