West Bengal Chunav 2021: चुनाव प्रबंध में जुटे झारखंड के भाजपाइयों का नए अनुभव से हो रहा साक्षात्कार
पश्चिम बंगाल की राजनीतिक संस्कृति भी एक बड़ी वजह है। तीन दशक से ज्यादा समय तक वहां वामपंथ का शासन रहा है। उस दाैरान वामपंथी कार्यकर्ता और नेता तड़क-भड़क की राजनीति से दूर रहते थे। यह वहां की राजनीतिक संस्कृति बन गई।
धनबाद, जेएनएन। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में पार्टी की जो भी स्थिति हो पर भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं की स्थिति काफी बुरी है। डेढ़ दशक तक झारखंड में राज कर चुकी पार्टी के कार्यकर्ता जहां लक्जरी लाइफ स्टाइल के आदी हो चुके थे वहीं उन्हें पश्चिम बंगाल में जनसंघ के दौर के संगठनकर्ताओं की तरह पसीना बहाना पड़ रहा है। होटलों में ठहरने वाले व चार चक्का वाहनों में बैठ कर धूल उड़ाने वाले कार्यकर्ताओं को एक ही कमरे में कई कार्यकर्ताओं के साथ रहना पड़ रहा है। सामान्य कार्यकर्ताओं के साथ दाल-चावल खाना पड़ रहा है और शौचालय के लिए कतार में भी खड़ा होना पड़ रहा है।
झारखंड के 42 कार्यकर्ता पश्चिम बंगाल के मोर्चे पर
स्थिति इतनी विकट है कि उन्हें घूमने के लिए न तो कायदे से अलग वाहन मिल पा रहा न ही संतोषजनक टीए-डीए ही नसीब है। एक कार्यकर्ता ने बताया कि झारखंड के 42 कार्यकर्ता पश्चिम बंगाल चुनाव में माइक्रो लेवल बूथ मैनेजमेंट में लगाए गए हैं। सभी को एक-एक विधानसभा सीट थमा दिया गया है। वहां वे दिन-रात स्थानीय कार्यकर्ताओं को गोलबंद करने, पन्ना प्रमुख, बूथ प्रमुख बनाने में लगे हुए हैं पर उनके लिए व्यवस्था नाकाफी है। पिछले डेढ़ महीने में उन्हें अब तक मात्र एक बार 5000 रुपये दिए गए हैं। वह चाहे जिला स्तर का कार्यकर्ता हो अथवा प्रदेश उपाध्यक्ष स्तर का, सभी का यही हाल है।
पश्चिम बंगाल की राजनीतिक संस्कृति भी एक बड़ी वजह
स्थानीय प्रत्याशियों की ओर से भी कोई मदद नहीं मिल रही। भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने भी अभी जैसे तगड़े कांटेस्ट को पहले कभी नहीं झेला था, साे वे भी किंकर्तव्यविमूढ़ नजर आते हैं। हालांकि समर्थकों की भारी संख्या को देखते हुए प्रवासी कार्यकर्ता गम हल्का कर रहे हैं। दरअसल, पश्चिम बंगाल की राजनीतिक संस्कृति भी एक बड़ी वजह है। तीन दशक से ज्यादा समय तक वहां वामपंथ का शासन रहा है। उस दाैरान वामपंथी कार्यकर्ता और नेता तड़क-भड़क की राजनीति से दूर रहते थे। यह वहां की राजनीतिक संस्कृति बन गई। वामपंथ के बाद टीएमसी का शासन आया तो भी कमसे कम तड़क-भड़क की राजनीति शुरू नहीं हुई। यह अलग बात है कि विरोधियों पर अत्याचार के मामले में टीएमसी वामपंथ से दो डिग्री आगे बढ़ गई। इस सादगी की राजनीति के कारण ही भाजपा नेतृत्व को भी परंपरागत संस्कृति पर चलनी पड़ रही है।