Jharia Fire Area: अंगारों पर मां सरस्वती की साधना...आग के ऊपर 30 बच्चों ने उठा ली किताब; पढ़ें इसके पीछे की कहानी

Jharia Fire Area बैधनाथ ठाकुर ने ऐसे गरीब बच्चों को शिक्षित करने की जिम्मेदारी उठाई हुई है जिनके परिजन शिक्षा का खर्च न उठा पाने के चलते अपने बच्चों को शिक्षित नहीं कर पा रहे थे। ऐसे बच्चों को शिक्षित करने का भरोसा दिलाते हैं।

By MritunjayEdited By: Publish:Wed, 20 Oct 2021 03:44 PM (IST) Updated:Wed, 20 Oct 2021 08:56 PM (IST)
Jharia Fire Area: अंगारों पर मां सरस्वती की साधना...आग के ऊपर 30 बच्चों ने उठा ली किताब; पढ़ें इसके पीछे की कहानी
झरिया फायर एरिया में बच्चों को पढ़ाते बैद्यनाथ ( फोटो अमित सिन्हा)।

शशिभूषण, धनबाद। न मशहूर होने की हसरत, न किसी प्रकार का अपना स्वार्थ। इनको सिर्फ समाज के लिए कुछ करने का जुनून है। तालीम के जरिए मासूमों का मुस्तकबिल बदल उनकी जिंदगी संवारना ही मकसद। अध्ययन और विद्या दान कर यहां गरीब नौनिहालों के सुनहरे भविष्य की नींव रखी जा रही है। महंगी होती शिक्षा के बीच बैद्यनाथ ठाकुर अंगारों की धरती पर गरीब परिवार के बच्चों का जीवन शिक्षा से रोशन कर रहे हैं। बात धनबाद के गन्साडीह स्थित आग प्रभावित कुम्हार टोला भूयाबस्ती की हो रही है।

कोयला चुनने वाले बच्चों को हाथ में किताब

एक समय था जब यहां के बच्चे अंगारों के बीच जाकर परिवार की मदद करने को कोयला चुनते थे। यहां जमीन के नीचे कोयले में आग लगी है। कब कौन जमीन के अंदर समा जाए और सांसों की डोर थम जाएं इसका भरोसा नहीं, लेकिन, आज यही बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। यह सब मुमकिन हुआ है बैद्यनाथ ठाकुर की वजह से। वे बताते हैं कि शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिसकी बदौलत आप अपने साथ-साथ दुनिया को भी बदल सकते हैं। मगर एक सच ये भी है कि शिक्षा के बाजारीकरण के इस दौर में आज एक बड़ा तबका शिक्षा से ही दूर होते जा रहा है। हमारे आस-पास कई ऐसे बच्चे हैं जो पैसों के अभाव में बड़े सपने नहीं देख पाते और अशिक्षित होने के कारण ताउम्र मुफलिसी की जिंदगी जीते रहते हैं। ऐसे बच्चों के लिए देवदूत बन गए बैद्यनाथ। कई साल से निश्शुल्क गरीब बच्चों के बीच शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। वो ऐसे बच्चों के अभिभावक बने हुए हैं जिनके माता-पिता अपनी औलादों को पढ़ाने में असमर्थ हैं।

बेसिक शिक्षा देकर आसपास के स्कूलों में कराते नामांकन

दरअसल बैधनाथ ठाकुर ने ऐसे गरीब बच्चों को शिक्षित करने की जिम्मेदारी उठाई हुई है, जिनके परिजन शिक्षा का खर्च न उठा पाने के चलते अपने बच्चों को शिक्षित नहीं कर पा रहे थे। ऐसे बच्चों को शिक्षित करने के लिए वो पहले उनके परिजनों से मुलाकात करते हैं और उन्हें शिक्षित करने का भरोसा दिलाते हैं। इसके बाद वो बच्चों को बेसिक एजुकेशन देकर आसपास के स्कूलों में बच्चों का दाखिला कराते हैं।

बच्चों को देख मन में उठता था सवाल

ठाकुर कहते हैं कि कोयला चुनने वाले बच्चों को देखकर मन कलप उठता था। सोचता था कि उनके मन में क्या भावना होगी? उनके सपने क्या होंगे? उनकी जि़ंदगी कैसे चलेगी? तब मन में विचार आया कि इनके लिए सबसे बेहतर तोहफा शिक्षा हो सकती है। जहां उनको हम यह अनुभव करा पाएं कि यह दुनियां उनकी भी है और खुश रहने का हक उनको भी है। नतीजा तीन साल पहले तक शिक्षा की लौ जो दिखती नहीं थी अब प्रच्च्वलित हो गई है। इनके पास 30 बच्चे पढऩे आ रहे हैं।

बच्चों में देख रहे खुद के सपने

बैद्यनाथ पेशे से एक बिजली मिस्त्री हैं। आर्थिक तंगी के कारण किसी तरह दसवीं तक पढ़ाई की उसके बाद आगे नहीं पढ़ पाए। उनका सपना था कि पढ़ लिखकर शिक्षक बनने का। अब खुद न सही पर इन बच्चों को शैक्षणिक स्तर पर सुदृढ़ कर उनके सपनों को उड़ान देने की भूमिका निभा रहे हैं। कक्षा एक से पांच तक के बच्चों को वे यहां पढ़ाते हैं। खुद भी बच्चों को बेहतर अंदाज में पढ़ाने को अध्ययन भी करते हैं। उसके बाद विद्यादान की मुहिम में लग जाते हैं।

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