शिक्षा विभाग के आदेश को ठेंगा...देते रहेंगे निजी स्कूलों को मनमानी की छूट

प्रधान सचिव अमरेंद्र प्रताप सिंह ने रांची का हवाला देते हुए यहां भी निजी स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाने के लिए ठोस कदम उठाने का निर्देश उपायुक्त को दिया था।

By mritunjayEdited By: Publish:Sun, 21 Apr 2019 11:58 AM (IST) Updated:Sun, 21 Apr 2019 11:58 AM (IST)
शिक्षा विभाग के आदेश को ठेंगा...देते रहेंगे निजी स्कूलों को मनमानी की छूट
शिक्षा विभाग के आदेश को ठेंगा...देते रहेंगे निजी स्कूलों को मनमानी की छूट

धनबाद, जेएनएन। स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के निर्देश के बाद भी जिला प्रशासन स्कूलों की मनमानी पर लगाम नहीं लगा सका। बुकलिस्ट से लेकर बसों की जांच करने का निर्देश एक वर्ष पहले विभाग ने दिया था, लेकिन एक प्रशासन बुकलिस्ट से बस तक का सफर तय नहीं कर सका।

प्रधान सचिव अमरेंद्र प्रताप सिंह ने रांची का हवाला देते हुए यहां भी निजी स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाने के लिए ठोस कदम उठाने का निर्देश उपायुक्त को दिया था। इसमें रांची की तर्ज पर स्कूलों की जांच के लिए बकायदा 12 अलग-अलग टीमें गठित करने और 40 महत्वपूर्ण चीजों पर स्कूलों की जांच की जानी थी। इसी आधार पर जिला स्तर पर समिति का गठन कर निजी स्कूलों की जांच का निर्देश दिया था। इसमें डीटीओ, एसडीओ, बाल संरक्षण पदाधिकारी, जिला आपदा नियंत्रण पदाधिकारी, जिला अग्निशमन पदाधिकारी, एसएसपी, एसपी को शामिल करना था। इसके अनुपालन के लिए आरडीडीई, डीईओ एवं डीएसई को भी पत्र जारी किया गया था। जांच के दौरान यह जरूर देखना था कि किन-किन स्कूलों के 100 गज के दायरे में तंबाकू व सिगरेट की दुकान चल रही है। ऐसा होने पर कार्रवाई कर हर्जाना वसूलना है। दो सौ रुपये जुर्माने का प्रावधान किया गया है।

इन बिंदुओं पर होनी थी जांच

- स्कूलों को बताना होगा कि वे किस मद में कितनी फीस लेते हैं।

- किसी भी मद में ली गई फीस का पूरा ब्योरा देना होगा।

- जो स्कूल आयकर छूट प्राप्त करते हैं, इसकी जानकारी दें। रजिस्ट्रेशन नंबर के साथ, स्कूल यह भी बताएं कि आयकर रिटर्न फाइल करते हैं या नहीं।

- स्कूल का पूर नाम, सोसायटी या ट्रस्ट, ट्रस्टी का नाम।

- राज्य से एनओसी और सीबीएसई या आइसीएसई संबद्धता का प्रमाणपत्र।

- वर्षवार फीस वृद्धि की स्थिति, पहली कक्षा से 12वीं कक्षा तक।

- एडमिशन चार्ज, रीएडमिशन, ट्यूशन फी, डेवलपमेंट चार्ज, साइंस फी, कम्प्यूटर फी, कॉशनमनी, मैग्जीन, लाइब्रेरी, बिल्डिंग फी आदि।

- बस सुविधा, इसकी संख्या, बस निर्माण का वर्ष, फिटनेस प्रमाणपत्र, दो किमी. से दस किमी. तक बस सुविधा शुल्क।

- बस के कंडक्टर-खलासी का पूरा ब्योरा, नजदीकी थाने में इनका रिकार्ड दर्ज कराया गया है या नहीं।

- स्कूल में कार्यरत सभी कर्मचारियों का ब्योरा।

- एससी, एसटी व बीपीएल छात्रों के नामांकन की स्थिति।

- किताब और ड्रेस की स्थिति बुकलिस्ट के साथ।

- पीआरटी, टीजीटी व पीजीटी शिक्षकों की संख्या।, इसमें स्थायी और अनुबंध पर शिक्षकों की संख्या भी।

- शिक्षकों का वर्षवार सैलरी स्टेटमेंट।

- स्थायी व अनुबंध पर नॉन टीचिंग कर्मचारियों की संख्या।

- वित्तीय वर्ष का आयकर रिटर्न, ऑडिट रिपोर्ट, ईपीएफ डिपोजिट।

- पांचवां या छठे वेतनमान की स्थिति।

कर्मचारियों के कैरेक्टर ही पता नहींः जिले में 250 से अधिक स्कूल बसें चलती हैं। इनमें 650 कर्मचारी कार्यरत हैं। ये कहां से आते हैं, कहां जाते हैं और इनका कैरेक्टर कैसा है, इस बारे में मुकम्मल जानकारी न तो पुलिस को दी गई है और न ही जिला प्रशासन को। तय मापदंड के अनुसार बसों का फिटनेस सर्टिफिकेट, कर्मचारियों का पुलिस वेरिफिकेशन रिपोर्ट और वाहनों में जीपीएस, अग्निशमन व कैमरे की व्यवस्था होनी चाहिए। कुछ स्कूल बसों को छोड़ दें तो अधिकतर स्कूल बसों में आज भी न तो कैमरे लगे हैं और न ही जीपीएस काम कर रहा है। यह बच्चों की सुरक्षा पर सवालिया निशान है। इस पर स्कूल प्रबंधन ध्यान नहीं दे रहे हैं।

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