65 वर्ष पहले मिला था धनबाद को जिले का दर्जा, कोयला राजधानी के रूप में देश में मिली है पहचान

कोयला राजधानी के रूप में देशभर में बनी है धनबाद की पहचान। आज से 65 वर्ष पूर्व धनबाद को मिला था जिले का दर्जा। पहले यह भाग पश्चिम बंगाल में स्थित था। 24 अक्टूबर के दिन ही अधिसूचना जारी कर जिला बनाया गया था।

By Atul SinghEdited By: Publish:Sun, 24 Oct 2021 12:58 PM (IST) Updated:Sun, 24 Oct 2021 01:40 PM (IST)
65 वर्ष पहले मिला था धनबाद को जिले का दर्जा, कोयला राजधानी के रूप में देश में मिली है पहचान
कोयला की राजधानी के नाम से विश्व में मशहूर धनबाद 65 वर्ष का हो गया है। (जागरण)

गोविन्द नाथ शर्मा, झरिया : कोयला की राजधानी के नाम से विश्व में मशहूर अपना धनबाद जिला 65 वर्ष का हो गया है। एक समय पश्चिम बंगाल मानभूम का यह सबडिवीजन था। पुरुलिया इसका मुख्यालय था। 1833 से 1956 तक धनबाद मानभूम के अधीन रहा। 24 अक्टूबर आज ही के दिन तत्कालीन आइसीएस अफसर मिस्टर टुली की पहल पर अधिसूचना जारी होने के बाद कई प्रखंडों को मिलाकर 1956 में इसे जिला बनाया गया। 

एक नवंबर 1956 से धनबाद जिला का प्रशासनिक कार्य शुरू हुआ। शरण सिंह धनबाद के पहले डीसी बने। उस समय धनबाद सदर एक गांव था। इसकी आबादी लगभग 36 हजार थी। स्थानीय लोग ही अधिक रहते थे। उस समय जिला में लगभग साढ़े नौ लाख की जनसंख्या थी। बाद में देश के कई राज्यों से यहां आए लोग बस्ते गए। आज धनबाद जिला की आबादी लगभग 29 लाख है। धनबाद में झरिया, कतरास, नवागढ़, बरोरा, रामनगरगढ़  राजघराना भी रहा है। काले हीरे व राजाओं की प्राचीन नगरी झरिया की जमीन के नीचे अथाह कोकिंग कोल का भंडार होने के कारण ही की पहचान  देश ही नहीं विदेशों में आज भी है।

बीसीसीएल से है धनबाद जिला की पहचान : दामोदर नदी के किनारे बसे  धनबाद जिला की पहचान देश में एक औद्योगिक शहर के रूप में भी है। इसी जिला के सिंदरी में देश का पहला उर्वरक संयंत्र खुला था। डीवीसी की ओर से मैथन, पंचेत व तोपचांची डैम बना। एशिया का सबसे बड़ी श्रमिक कॉलोनी भूली में है। धनबाद में खान सुरक्षा महानिदेशालय, सीएसआइआर का कोल माइंस फ्यूल रिसर्च, आइआइटी - आइएसएम, सिन्दरी में बीआटी, एसीसी सीमेंट कारखाना, पीडीआइएल, हर्ल उर्वरक संयंत्र आदि हैं। धनबाद की पहचान भारत कोकिंग कोल लिमिटेड बीसीसीएल से भी है। यहां दशकों से टाटा स्टील, सेल कंपनी भी कोयला निकाल रही है। ट्रेन से कोयला ढुलाई की शुरुआत 1930 में धनबाद- झरिया के पाथरडीह रेलवे लाइन से हुई थी। 1958 में धनबाद जंक्शन बनने के बाद यह लगातार माल ढुलाई में अव्वल रहा है। धनबाद से देश के कोने-कोने तक रेल से आने-जाने की व्यवस्था है। धनबाद नगर पालिका के बाद अभी धनबाद नगर निगम है। इसमें 55 वार्ड हैं।

स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा रहा है झरिया व धनबाद : स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान आर्थिक मदद के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस, देश के पहले राष्ट्रपति डा राजेंद्र प्रसाद, देशबंधु चितरंजन दास, आचार्य नरेंद्र देव आदि यहां आए। झरिया के सेठ समाजसेवी रामजस अग्रवाला ने राष्ट्रपिता को ब्लैंक चेक देकर झरिया का नाम रोशन किया। कोयला मजदूर यूनियन की शुरुआत 1930 में झरिया धनबाद से ही हुई। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की यूनियन का झरिया के टाटा कंपनी में गठन हुआ। यहां 1928 में एटक का पहला मजदूर सम्मेलन भी हुआ।

धनबाद के सांसद और विधायक : धनबाद जिला बनने के पहले झरिया निवासी पीसी बोस मानभूम के सांसद बने। धनबाद के भी पहले सांसद पीसी बोस ही थे। इसके बाद डीसी मलिक, पीआर चक्रवर्ती, रानी ललिता राजलक्ष्मी, रामनारायण शर्मा, एके राय, शंकर दयाल शर्मा, प्रोफेसर रीता वर्मा, चंद्रशेखर दुबे, पशुपति नाथ सिंह सांसद बने। धनबाद के पहले विधायक पुरुषोत्तम चौहान बने। इसके बाद शिवराज प्रसाद, रामधनी सिंह, दुर्गा चरण दास, चिन्मय मुखर्जी, योगेश्वर प्रसाद योगेश, एसपी राय, पशुपति नाथ सिंह, मन्नान मल्लिक और राज सिन्हा विधायक बने।

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