मधुपुर के टैगोर कोर्ट से जुड़ी हैं विश्वकवि की यादें

जागरण संवाददाता मधुपुर(देवघर) नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर। देश जिन्हें कविगुरु

By JagranEdited By: Publish:Wed, 05 May 2021 11:05 PM (IST) Updated:Wed, 05 May 2021 11:05 PM (IST)
मधुपुर के टैगोर कोर्ट से जुड़ी हैं विश्वकवि की यादें
मधुपुर के टैगोर कोर्ट से जुड़ी हैं विश्वकवि की यादें

जागरण संवाददाता, मधुपुर(देवघर): नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर। देश जिन्हें कविगुरु के नाम से जानता है। वह ख्याति प्राप्त शिक्षण संस्थान शांति निकेतन के संस्थापक है। गुरुदेव की झारखंड के मधुपुर से भी कई यादें जुड़ी हुई है। एक जमाना था जब मधुपुर साहित्य व राष्ट्रीय आंदोलन का केंद्र माना जाता था। यहां के राजबाड़ी रोड स्थित टैगोर कॉट पर नजर पड़ते ही विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर से जुड़ी कई यादें ताजा हो जाती है। कई पुस्तकों में इस बात का उल्लेख है कि छुट्टियां बिताने के लिए कविगुरु का गिरिडीह व हजारीबाग आना होता था। इस दौरान वे मधुपुर स्टेशन पर उतरकर सड़क मार्ग से अपने गंतव्य स्थान को पहुंचते थे। हालांकि, कई लोग मानते हैं कि छुट्टियों के दिनों में स्वास्थ्य लाभ के लिए टैगोर मधुपुर स्थित टैगोर कोर्ट में रूके थे। जिसे राजबाड़ी के नाम से लोग जानते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि उन दिनों इस इलाके के प्राकृतिक सौंदर्य से प्रभावित होकर लोग कोलकाता सहित देश के अन्य इलाके से चितन और मनन को पहुंचते थे। कुछ बताते हैं कि विश्वकवि रवींद्रनाथ ठाकुर की ही टैगोर कोर्ट थी। वहीं कई लोगों का मानना है कि इस टैगोर कोर्ट का निर्माण वर्ष 1888 में लेफ्टिनेंट अल्फ्रेड बेंजामिन नामक एक अंग्रेज ने निर्माण कराया था।

गिरिडीह के बरगंडा में 10 दिन ठहरे थे कविगुरु : रवींद्रनाथ ठाकुर के संदर्भ में नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया में कई पुस्तक प्रकाशित करने वाले बांग्ला के प्रसिद्ध साहित्यकार व लेखक अनाथबंधु चट्टोपाध्याय ने अपनी पुस्तक छुट्टीरे निमंत्रणे में उल्लेख किया है कि 1930 के दशक में रवींद्रनाथ ठाकुर छुट्टी होने पर परिवार के साथ स्वास्थ्य लाभ और आबोहवा बदलने के लिए कोलकाता से मधुपुर स्टेशन पहुंचे थे। यहां से सड़क मार्ग से गिरिडीह गए थे। जहां शशि भूषण मजूमदार ने गिरिडीह के बरगंडा में ठहरने की उनकी व्यवस्था की थी। यहां दस दिन रहने के बाद रवींद्रनाथ ठाकुर सिस्टर निवेदिता, प्रसिद्ध वैज्ञानिक आचार्य जगदीश चंद्र बोस व टैगोर के पुत्र बोधगया (बिहार) को भ्रमण के लिए गए थे। दोस्त की भेंट में दी गई पुस्तक खो गई : साहित्यकार अनाथबंधु चट्टोपाध्याय ने बताया कि एक बार मधुपुर स्टेशन पर रवींद्रनाथ ठाकुर सुबह चार बजे उतरे थे। तब उन्होंने कुछ घंटे स्टेशन के रिटायरिग रूम में बिताए थे। जहां स्नान ध्यान के बाद भोजन कर सड़क मार्ग से हजारीबाग के लिए रवाना हो गए। इस दौरान उनके मित्र व होम्योपैथ डॉक्टर के द्वारा भेंट की गई एक पुस्तक रिटायरिग रूम में छूट गई थी। इस संदर्भ में रवींद्रनाथ ठाकुर ने संबंधित रेल अधिकारी को पत्र लिखकर खोई पुस्तक मिलने पर उनके यहां भेजने की बात कही थी। हालांकि, यह पुस्तक मिल नहीं पाई थी। रवींद्रनाथ ठाकुर का होम्योपैथिक इलाज पर अटूट विश्वास था। इसलिए पुस्तक अपने साथ रखते थे। क्योंकि उनकी दूसरी पुत्री रेणुका जिसे वह प्यार से रानी कहकर बुलाते थे। रानी की तबीयत हमेशा खराब रहती थी। जिसे लेकर रवींद्रनाथ ठाकुर हमेशा मानसिक रूप से परेशान रहते थे।

कविगुरु के चचेरे भाई ने खरीदा था कॉट : जानकार की मानें तो वर्ष 1901 में बेंजामिन ने इस कोठी को पाथुरिया घाट, कोलकाता के राजा यतींद्र मोहन ठाकुर को बेच दिया गया। वे विश्व कवि रवींद्रनाथ के चचेरे भाई थे। राजा यतींद्र नाथ ने कोठी को भव्य तरीके से सजाया संवारा था। साथ ही कोठी परिसर में तकरीबन 80 फुट का एक टावर भी उन दिनों बनवाया था।

यह टावर समूचे मधुपुर को अपनी ओर आकर्षित करता था। यह टावर अपने मूल रूप में आज भी बचा हुआ है। वर्तमान समय में टैगोर कॉट के मालिक पूर्व सांसद फुरकान अंसारी हैं। जिसे अब होटल राज के नाम से जाना जाता है।

बिहार और बंगाल तक थी इस कुएं की ख्याति : अनाथबंधु चट्टोपाध्याय ने बताया कि मधुपुर-गिरिडीह रेलखंड के महेशमुंडा स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर दो के बाहर स्थित पेयजल कूप का अनूठा इतिहास है। एक समय इसकी ख्याति बिहार व बंगाल तक थी। इस कुएं से 27 पीतल के बड़े-बड़े घड़ा में रेल मार्ग से पानी भरकर कोलकाता जाता था। जिसे रवींद्रनाथ ठाकुर सहित टैगोर परिवार के सभी सदस्य सेवन करते थे। पंजाब मेल और मुगलसराय ट्रेन से पानी जाया करता था। जबकि तूफान मेल से खाली पीतल का घड़ा वापस आता था। लोगों का कहना था कि इस कुएं का जल औषधीय है। स्टीम इंजन के दौर में कुएं के पानी को जार में भरकर बंगाली परिवार कोलकाता ले जाते थे।

chat bot
आपका साथी