देवसंघ आश्रम में सात समंदर के जल से मां का महास्नान
जागरण संवाददाता देवघर देवघर एतिहासिक नगरी है। यह चिताभूमि है। शिव की नगरी की दक्षिण्
जागरण संवाददाता, देवघर: देवघर एतिहासिक नगरी है। यह चिताभूमि है। शिव की नगरी की दक्षिण दिशा में देवसंघ आश्रम है। यहां की एक अलग परंपरा है, जिसका निर्वहन हर साल किया जाता है। महासप्तमी से लेकर महानवमी तक मां को महास्नान कराया जाता है। इसमें सात समंदर का जल व देश-विदेश की पवित्र नदियों का जल शामिल किया जाता है। कोरोना के कारण देश-विदेश से भक्त नहीं आ सके। भक्तों की सीमित संख्या के बीच शुक्रवार को आश्रम के महाराज
दिवाकर ब्रह्मचारी ने महासप्तमी के अवसर पर सुबह 9 से 10 बचे के बीच मां को महास्नान कराया। इसके बाद देवी का श्रृंगार हुआ। आश्रम में रहने वाले शिष्य ने ही भाग लिया।
आश्रम से जुड़े भक्त समवेत विधि से सप्तमी से मां की प्रतिमा को सात महासागर, सात समुद्र व सात नदियों के पवित्र जल से महास्नान कराते हैं। यह पवित्र जल आश्रम से जुड़े देश-विदेश में रहनेवाले शिष्य लेकर आते हैं। इस साल भी यह जल पहले ही आ गया था।
सुबह आठ बजे से नवपत्रिका का स्वागत और मां की प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा की गई। आश्रम के भक्तगण देश-विदेश में स्थापित महासागर, समुद्र व नदियों से लाए जल से बारी-बारी से माता का महास्नान कराया। वैदिक मंत्रोच्चार के साथ षोडषोपचार पद्धति से माता की पूजा हुई। महिला भक्तों ने माता का श्रृंगार किया।
दोपहर को महाप्रसाद का भोग लगाया गया। संध्या समय आरती व भजन का कार्यक्रम हुआ। कोई भक्त मंदिर में प्रवेश नहीं कर सके, इसके लिए बेरिकेडिग की गई थी।
आज होगी संधि पूजा
शनिवार को महाष्टमी की पूजा होगी। सुबह से मां की विशेष पूजा होगी। महाष्टमी की रात तक संधि पूजा, नवमी की सुबह आठ बजे महास्नान, कुंवारी पूजा, हवन व भोग व दशमी के दिन सुबह आठ बजे शीतल भोग व समवेत पूजा होगी। उसके बाद प्रतिमा का विसर्जन होगा। आश्रम में मूर्ति बनाने के लिए कोलकाता के कलाकार 35 साल से यहां आते हैं। इस बार मूर्तिकार रंजीत पाल ने प्रतिमा बनाई है। खासियत यह है कि यहां की मूर्ति में मां का मुख बिना खांचा के केवल मिट्टी से तैयार किया जाता है।