मंदी के दौर से गुजर रहा पथरोल का लौह व्यापार

मनोज सिंह करौं प्रखंड क्षेत्र के सिद्धपीठ पथरोल धार्मिक आस्था का केंद्र है। यहां प्रसिद्ध काली

By JagranEdited By: Publish:Wed, 23 Sep 2020 09:00 AM (IST) Updated:Wed, 23 Sep 2020 09:00 AM (IST)
मंदी के दौर से गुजर रहा पथरोल का लौह व्यापार
मंदी के दौर से गुजर रहा पथरोल का लौह व्यापार

मनोज सिंह, करौं : प्रखंड क्षेत्र के सिद्धपीठ पथरोल धार्मिक आस्था का केंद्र है। यहां प्रसिद्ध काली मंदिर है। जहां देश के कोने-कोने से लोग आते हैं। वहीं यहां आनेवाले लोग लोहे से बने सामान की खरीदारी प्रसाद के रूप में खरीदते हैं। इस कारण यहां लोहे के सामान का कारोबार बड़े स्तर पर होता है। हालांकि वर्तमान समय में इस कारोबार में कोरोना संक्रमण का असर साफ देखा जा रहा है। यहां 110 परिवार इस व्यवसाय से जुड़े हुए है। 15 से 20 लाख रुपये का सालाना लोहे का व्यवसाय होने का अनुमान लगाया जा रहा है। मगर वर्तमान समय में यह व्यवसाय धीरे-धीरे खत्म होने की कगार पर पहुंच चुका है। सरकारी स्तर पर कच्चे माल व उपकरण उपलब्ध नहीं होने के कारण यह व्यवसाय काफी मंदा हो गया है।

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व्यवसायी बनाते कई सामग्री

यहां लौह से निर्मित कई घरेलू सामान के अलावा कृषि उपकरण व गेट व ग्रिल भी बनाया जाता है। यह लोग दिन भर आग की भट्ठी में लोहा गरम कर मोटे-मोटे हथौड़े से पीट-पीट कर उपकरण बनाते हैं। मगर इतनी मेहनत करने के बावजूद इनके द्वारा बनाई गई वस्तुएं औने-पौने दामों में खरीदी जाती है। रतन शर्मा, ननकू शर्मा, सोनू पड़ैया, सिकंदर विश्वकर्मा, त्रिपुरारी शर्मा सहित अन्य व्यवसायियों ने बताया कि वर्तमान में कच्चे माल की कीमत में काफी बढ़ोतरी हो गई है। सामान की बिक्री करने से 15 से 20 रुपये प्रतिकिलो की दर से दाम मिलता है। सरकारी सहायता नहीं मिलने से पूंजी के अभाव में वे लोग अपने व्यवसाय को बढ़ा नहीं पा रहे। आलम यह है कि आर्थिक दृष्टिकोण से कमजोर लौह व्यवसायियों की जिदगी बदहाल हो चुकी है। अपने परिवार के सदस्यों को अच्छा वस्त्र व आवास तो दूर, जिदगी गुजारने के लिए भोजन भी जुटा पाना मुश्किल हो जाता है। इन व्यवसायियों को कहना है कि अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाने के चलते उनके बच्चे भी अपने पुश्तैनी धंधे से जुड़ जाते है। यदि सरकार के द्वारा ऋण सुविधा उपलब्ध कराई जाए तो इनका पुश्तैनी रोजगार भी लघु उद्योग का रूप ले सकता है।

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25 लाख से बना लोहरगिरी शेड बेकार

पाथरोल के राउतडीह में 15 वर्ष पूर्व 25 लाख की लागत से लोहारगिरी शेड का निर्माण कराया गया था। इसका संचालन ग्यारह सदस्यों द्वारा की जानी थी। कच्चे सामान के लिए ऋण भी मुहैया कराए गए थे। शेड बनने के बाद यहां के लोगों को उम्मीद जगी कि सरकार द्वारा सामान बनाने का उपकरण व कच्चा माल उपलब्ध कराया जाएगा। इससे अधिक सामान को बनाकर धंधे को बढ़ाया जा सके। लेकिन लोहारगिरी शेड में मशीन नहीं लगा एवं कच्चा माल भी उपलब्ध नहीं कराया गया है। शेड कुछ दिनों के बाद ही बंद हो गया।

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लौह व्यवसायियों की समस्या का समाधान का हरसंभव प्रयास किया जाएगा। स्वयं सहायता समूह के माध्यम से ऋण की सुविधा दिलाई जा सकती है।

पितांबरी देवी, मुखिया

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