जंगल से बेल पत्र तोड़कर भगवान शंकर को किया अर्पित

अजय परिहस्त देवघर भोले शंकर को बेलपत्र अतिशय प्रिय है। सुंदर अति सुंदर बेलपत्र उन पर

By JagranEdited By: Publish:Mon, 02 Aug 2021 05:29 PM (IST) Updated:Mon, 02 Aug 2021 05:29 PM (IST)
जंगल से बेल पत्र तोड़कर भगवान शंकर को किया अर्पित
जंगल से बेल पत्र तोड़कर भगवान शंकर को किया अर्पित

अजय परिहस्त, देवघर: भोले शंकर को बेलपत्र अतिशय प्रिय है। सुंदर, अति सुंदर बेलपत्र उन पर अर्पित होता रहे। इसी सोच के साथ देवघर में बेलपत्र प्रदर्शनी की शुरुआत की गई। यह परंपरा आज भी चली आ रही है। सावन में संक्रांत से संक्रात तक चलने वाली बेलपत्र प्रदर्शनी हर सोमवार को लगती है। चांदी की थाली पर कोमल और सुंदर बेलपत्र को पुरस्कृत करने की परंपरा बम बम बाबा ब्रह्मचारी ने शुरू की थी। यह परंपरा आज भी अनवरत जारी है। बेल पत्र तोड़ने के लिए पंडा समाज के लोग सुदूर घने जंगल में चले जाते हैं। उम्दा किस्म के बेलपत्र को ढूंढने के लिए कभी कभी उनको उन जंगलों में रूकना भी होता है। बेल पत्र प्रदर्शनी के लिए अलग अलग नाम दिया गया है। उसी नाम से प्रदर्शनी लगती है। बम बम बाबा ब्रह्मचारी मसानी बेलपत्र समाज के हुरो नरोने बताते हैं कि वे 45 साल से बेलपत्र तोड़ रहे हैं। पहले की अपेक्षा आज बेलपत्र तोड़ने में परेशानी होती है इस आधुनिक युग में पहाड़ जंगल नदी नालों का दुरुपयोग करने से प्रकृति हमसे रूठ गई है तेजी से जंगल कटने के कारण बेल के वृक्ष ही नहीं बच पा रहे। जरनैल बेलपत्र समाज के शिव नाथ मिश्र ने बताया कि तेजी से जलवायु परिवर्तन होने से जल स्तर नीचे चला गया है और जंगल में हम लोगों को 8 दिन तक रहना पड़ता है जहां पर पानी दूर-दूर तक नहीं मिलता। जिससे बेलपत्र तोड़ने वालों को पानी का व्यवस्था करके जाना पड़ता है पहले यह पर्याप्त मात्रा में नदी और झरनों से मिलता था। आज पूरी तरह से सूख चूके हैं जलस्त्रोत नहीं होने से जल का समस्या बढ़ ही रही है। इस बार अच्छी बारिश होने से पानी मिल रहा है मगर कई साल जल स्त्रोत ढूंढने में काफी परेशानी होती है। हालांकि इस परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए नवयुवक पीढि़यों को भी जोड़ा जा रहा है। ताकि यह निरंतर चलता रहे और बाबा की सेवा होती रहे। बिहार के जंगलों में भी जाते रहे पंडित मनोकामना राधेश्याम बेलपत्र समाज प्रकाश पंडित बताते हैं कि बेल पत्र तोड़ने के लिए दूर भी जाते थे जिसमें चतरा, हजारीबाग, गिरिडीह, जमुई, मुंगेर, दुमका, मसानजोर, सिकंदरा आदि स्थानों में जाकर बेल पत्र तोड़कर लाते थे। पहले इतना डर नहीं लगता था जितना अब लगता है इंसानों की तुलना में जानवर अच्छे थे आज इंसान खतरनाक होते जा रहे हैं कई ऐसे स्थानों में रोकटोक भी होने लगी है।

आज स्थिति पूरी तरह से बदल गई है। बेल का वृक्ष दूर-दूर तक नजर नहीं आता है। बहुत ढूंढने पर बेल पत्र मिलता है। हमारे पूर्वजों की बनाई इस परंपरा और उनके बताए रास्तों पर हम लोग निरंतर चल रहे हैं। बेलपत्र तोड़ने से पूर्व हम सभी सर्प से बचने के लिए जड़ी पहनते हैं ताकि कोई विषैला जीव हमें हानि नहीं पहुंचा सके।

बुद्धन खबाड़े राजाराम बेलपत्र समाज के उमेश द्वारी बताते हैं कि जंगलों में अक्सर हमें जंगली जानवर का सामना करना पड़ता था मगर वह कभी भी बेवजह नुकसान नहीं पहुंचाया। संक्रांति से संक्रांति तक बेलपत्र प्रदर्शनी में लगने वाले इस बेलपत्र को तोड़ने के लिए एक पर्व के रूप में समाज के लोग उत्साह से जंगल जाते हैं और वहां से बेल पत्र लाकर बाबा पर अर्पित करते हैं। प्रदर्शनी भी लगाई जाती है। सरदार पंडा भवप्रीता नंद ओझा के समय में विजेता पुरस्कृत भी होते थे। जो उनके बाद समाप्त हो गया। आज प्रतियोगता है मगर दर्शक इसका फैसला करते हैं। किसका बेलपत्र कितना सुंदर है किसने कितनी मेहनत की है। उद्देश्य और लक्ष्य एक ही है कि बाबा बाबा बैद्यनाथ पर सुंदर से सुंदर बेलपत्र अर्पित करके उन्हें प्रसन्न करना है।

बरनेल समाज के गुड्डू द्वारी बताते हैं कि मैं अपने पिताजी के साथ बेलपत्र तोड़ने के लिए जाता था और वहां से बेलपत्र तोड़ने की शिक्षा उनसे मिली। आज भी हम लोग उनके दिए शिक्षा पर चल रहे हैं। बाबा की कृपा रही तो आगे भी चलता रहेगा। जरनेल समाज दो के नुनुपाल बताते हैं कि कि 65 साल से बेलपत्र तोड़कर बाबा पर अर्पित करते हैं। हमारे यात्री जो बाबा बैद्यनाथ धाम आते हैं और बेलपत्री करते हैं। उस बेलपत्र को बाबा पर अर्पित करने के लिए झाड़ी जंगल नदी नाले को पार करके तोड़ कर लाते हैं।

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