प्रकृति का रक्षक है निर्जला एकादशी व्रत
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संवाद सहयोगी, इटखोरी : वैसे तो सनातन धर्म के सभी पर्व-त्योहारों का अपना वैज्ञानिक महत्व है। लेकिन कुछ पर्व त्योहार ऐसे हैं जो प्रकृति के काफी करीब है। ऐसे व्रत-त्योहार प्रकृति को संरक्षित करने के साथ मानव शरीर को रोग मुक्त रखने में भी काफी सहायक है। ऐसे ही त्योहारों में है निर्जला एकादशी का व्रत। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाने वाला निर्जला एकादशी का व्रत इस वर्ष मंगलवार 2 जून को मनाया जाएगा। कोरोना वायरस के इस संकट काल में निर्जला एकादशी के व्रत की महत्ता पर दैनिक जागरण के द्वारा मां भद्रकाली मंदिर के पुजारी नागेश्वर तिवारी से विशेष बातचीत की गई। उन्होंने निर्जला एकादशी व्रत के हर पहलू पर धार्मिक एवं वैज्ञानिक ²ष्टिकोण से अपनी बात रखी। उन्होंने बताया कि जगत के पालनहार भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस व्रत में अन्न के साथ जल का भी त्याग उपवास के दौरान किया जाता है। निर्जला एकादशी के व्रत का उपवास संपन्न होने के पश्चात दान पुण्य करने का विधान है। इस व्रत के दौरान जिन वस्तुओं का दान किया जाता है उसका अलग ही महत्व है। भीषण गर्मी के बीच किए जाने वाले इस व्रत के दौरान मिट्टी के बने घड़े, खजूर की पत्तियों से बने पंखे के अलावा मौसमी फलों का दान व्रती करते हैं। ऐसे दान के पीछे सिर्फ एक ही उद्देश्य रहता है कि इस मौसम में लोग ज्यादा से ज्यादा मौसमी फलों का सेवन करें। साथ ही मिट्टी से बने घड़े का पानी पिए, ताकि प्रकृति का संरक्षण सही तरीके से हो सकें। उन्होंने निर्जला एकादशी का व्रत रखने वाले व्रतियों से विशेष आग्रह किया है कि कोरोना के इस संकटकाल में अपने सामर्थ्य के अनुसार इस बार दान की क्षमता को थोड़ा और बढ़ाएं। अपने पास पड़ोस के जरूरतमंद तथा गरीब लोगों को व्रत के अनुसार दान करें। इससे जरूरतमंद व गरीब लोगों को मदद तो मिलेगी ही, घड़े बनाने वाले कुम्हारों तथा खजूर का पंखा बनाने वाले लोगों को आर्थिक लाभ भी प्राप्त होगा।