ममता जोशी ने सूफी गायकी ने दर्शकों को किया मंत्रमुग्ध

कि धार्मिक स्थलों पर गीत गाना साधना के समान होती है। उनकी कोशिश रहेगी कि वह बार-बार राजकीय इटखोरी महोत्सव में सूफी गीतों को अपनी आवाज दे।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 21 Feb 2020 06:27 PM (IST) Updated:Fri, 21 Feb 2020 06:27 PM (IST)
ममता जोशी ने सूफी गायकी ने दर्शकों को किया मंत्रमुग्ध
ममता जोशी ने सूफी गायकी ने दर्शकों को किया मंत्रमुग्ध

संवाद सहयोगी, इटखोरी : राजकीय इटखोरी महोत्सव के सांस्कृतिक कार्यक्रम में पहली बार यहां के श्रोताओं को सूफी गायकी का लुफ्त उठाने का मौका मिला। उत्तर भारत में अपनी सूफी गायकी का लोहा मनवा चुकी ममता जोशी ने अपने सूफियाना अंदाज से श्रोताओं और दर्शकों को मंत्र मुग्ध कर दिया। ममता जोशी ने कबीर वाणी तथा होली के गीतों को भी अपनी आवाज दी। हालांकि महोत्सव के मंच पर समय प्रबंधन के घोर अभाव के कारण ममता जोशी को अपनी सूफी गायकी का पूरा जलवा बिखेरने का मौका नहीं मिल पाया। फिर भी उन्होंने जितने भी गीत गाए सिर पर पगड़ी और सूफियाना पोशाक में आई ममता जोशी ने रात्रि दस बजे से अपना गायन शुरू किया। करीब 45 मिनट तक उन्होंने एक से बढ़कर एक सूफी गीत के साथ कबीर वाणी को सुनाया। ममता जोशी ने जब प्रसिद्ध छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिला के गीत को गाया तो महफिल वाह-वाह कर उठी। इसके बाद ममता जोशी श्रोताओं और दर्शकों को होली के गीतों की दुनिया में ले गई। कार्यक्रम के पश्चात स्थानीय विधायक किशुन दास तथा उप विकास आयुक्त मुरली मनोहर प्रसाद ने ममता जोशी को महोत्सव का मोमेंटो देकर सम्मानित किया।

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गाना मेरी इबादत और पगड़ी पुरखों का सम्मान : ममता जोशी

संवाद सहयोगी इटखोरी : सूफी गीत गाकर मैं इबादत करती हूं। और सिर पर पगड़ी बांधकर पुरखों की परंपरा को सम्मान देती हूं। यह बात गुरुवार की रात प्रसिद्ध सूफी गायिका ममता जोशी ने दैनिक जागरण से बातचीत करते हुए इटखोरी में कहीं। सूफी गायिका ममता जोशी राजकीय इटखोरी महोत्सव में कार्यक्रम प्रस्तुत करने आई थी। उन्होंने कहा कि सूफी गायकी उनके खून में समाया हुआ है। सूफी गीतों में रची बसी देश की सभ्यता व संस्कृति को वह सूफी गीत गाकर जी लिया करती हैं। उन्होंने कहा कि सूफी गायन उनके लिए इबादत के समान है। जबकि सिर पर पगड़ी बांधना पुरखों की परंपरा को सम्मान देने के जैसा है। ममता जोशी ने बताया कि सूफी गायन उनका पेशा नहीं है। बल्कि वह अपनी दिली इच्छा को पूरा करने के लिए सूफी गीत गाया करती हैं। उन्होंने कहा कि सूफी गीत धरती से कभी लुप्त नहीं होंगे। सूफी गीतों को सुनने वाले लोग हर दौर में पैदा होंगे। उन्होंने श्रोताओं को सुझाव दिया कि समय निकालकर सूफी गीतों को जरूर सुनना चाहिए। मां भद्रकाली मंदिर मैं आने के पश्चात ममता जोशी ने अपने पति के साथ मां भद्रकाली मंदिर में पूजा अर्चना की। उन्होंने माता के दरबार को पवित्र भूमि बताया। कहा कि धार्मिक स्थलों पर गीत गाना साधना के समान होती है। उनकी कोशिश रहेगी कि वह बार-बार राजकीय इटखोरी महोत्सव में सूफी गीतों को अपनी आवाज दे।

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