विभाग की अनदेखी से पुलिस की तीसरी आंख खराब

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By JagranEdited By: Publish:Thu, 03 Sep 2020 06:05 PM (IST) Updated:Fri, 04 Sep 2020 06:13 AM (IST)
विभाग की अनदेखी से पुलिस की तीसरी आंख खराब
विभाग की अनदेखी से पुलिस की तीसरी आंख खराब

बोकारो : बोकारो शहर के अलावा जिले में प्रवेश करने व निकलते के महत्वपूर्ण रास्ते पर नजर रखने के लिए बीते पांच वर्ष पहले पूरे तामझाम से लगाए गए हाई रेज्योलूशन सीसीटीवी कैमरे अब बेकार हो गए हैं। वर्ष 2015 में एसपी रहे वाईएस रमेश ने जिले भर में डेढ़ दर्जन कैमरे लगवाया था। रेडियो फ्रिकवेंसी पर काम करने वाले इन कैमरों में तार की जरूरत नहीं थी। वायरलेस सिस्टम की तरह इसमें कैमरों की तस्वीर सीधे कंट्रोल रूम पहुंचती थी। कंट्रोल रूम एसपी के आवासीय कार्यालय में खोला गया था। इसका उद्घाटन करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने करते इस सिस्टम की जमकर तारीफ भी की थी।

कंट्रोल रूम में स्क्रिन पर नजर बनाए रखने के लिए चौबीस घंटे पुलिसवालों की ड्यूटी लगती थी। उस समय शहर या आसपास हुई वाहन चोरी से लेकर झपटमारी या फिर लूट की कई घटनाओं का खुलासा करने में पुलिस की तीसरी आंख बेहद सहायक बनी थी। रामनवमी, मुहर्रम के जुलूस को शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न कराने के लिए पसीना बहाने वाली पुलिस को कई बार कैमरे ने मदद की थी। कंट्रोल रूम में बैठे-बैठे ही डीसी-एसपी ड्यूटी पर तैनात अधिकारियों को निर्देश देते रहते थे।

बैंक के आसपास या फिर महत्वपूर्ण जगहों पर संदिग्धों को देखते ही कंट्रोल रूम में तैनात पुलिस वाले संबंधित थानों को सूचना देते थे। अचानक ऐसे संदिग्धों के पास इसी तीसरी आंख की मदद से पुलिस पहुंच जाती थी और उन्हें हिरासत में ले लेकर अपराध होने के पहले रोक लेती थी। सिस्टम इतना अच्छा बताया गया था बीते तीन वर्ष पहले बोकारो निरीक्षण करने पहुंचे जोनल आइजी मुरारी लाल मीणा ने एसपी आवास की जगह कैमरों का कंट्रोल रूम सीसीआर में करने का आदेश दिया था। तार कटने का नहीं था डर : बताया जाता है कि जिले के एक कोने से दूसरे कोने तक लगे सभी कैमरे बिना तार के रेडियो फ्रिकवेंसी सिस्टम पर काम करते थे। इसमें तार की जरूरत नहीं थी। तार नहीं रहने की वजह से इसके कटने या फिर टूटने का खतरा था ही नहीं।

चारों तरह घूमने या झूकने की थी सुविधा : बताया जाता है कि कैमरों में चारों तरफ घूमने से लेकर उतर नीचे तक करने की सुविधा थी। स्वचालीत कैमरे सेटिग के हिसाब से ऊपर नीचे या दाहिने बाएं घूमते रहते थे या स्थिर रहते थे।

18 प्रतिशत था रखरखाव का खर्च बताया जाता है कि कुल लागत का 18 प्रतिशत कैमरों का मेंटेनेंस चार्ज इसे लगाने वाली कंपनी निर्धारित की थी। कैमरे लगाने के बाद कंपनी दो वर्षों तक इस आशा में काम करती रही कि उसे तय मसौदे के अनुसार मेंटेनेंस चार्ज मिलता रहेगा। पुलिस विभाग की ओर से कंपनी को रुपये नहीं दिए गए। रुपयों के अभाव में कंपनी ने इन कैमरों की ओर अब देखना ही छोड़ दिया है। इन जगहों पर थे कैमरे : जब कैमरे लगाए गए थे तब इसका पता बताने से पुलिस पहले कतराती थी। कहा जाता था कि सुरक्षा के लिहाज से ऐसा करना ठीक नहीं है। कैमरे हाईवे पर पेटरवार, जरीडीह के अलावा उकरीद मोड़, नया मोड़, बेरमो ओवरब्रिज के पास, हरला के अलावा इसी इलाके के रेलवे क्रांसिग, चास मुफस्सिल के पेट्रोल पंप, गरगा पुल के साथ चास के धर्मशाला चौक महावीर चौक, सिटी सेंटर सेक्टर चार समेत अन्य इलाके में लगाए गए थे। विधायक निधि से मिले थे 12 लाख रुपये : बोकारो विधायक बिरंची नारायण से उस समय के एसपी वाईएस रमेश ने मिलकर वायरलेस कैमरों को लगाने में आर्थिक मदद देने की अपील की थी। विधायक को कप्तान ने यह बताया था कि कैमरे अपराध नियंत्रण में बेहद सहायक होंगे। विधायक ने अपनी निधि से पुलिस विभाग को कैमरे लगाने के लिए 12 लाख रुपये की मदद की थी। विधायक निधि से डेढ़ दर्जन कैमरों में पांच कैमरे शहर के अलावा चास में लगे थे।

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