किराएदार ने मालिक भाई-बहन को 15 वर्षो से कर रखा था कैद

जागरण संवाददाता, बोकारो : शहर के सबसे पॉश रिहायसी इलाके को-ऑपरेटिव कॉलोनी के प्

By JagranEdited By: Publish:Thu, 16 Aug 2018 06:26 PM (IST) Updated:Fri, 17 Aug 2018 05:28 AM (IST)
किराएदार ने मालिक भाई-बहन को 15 वर्षो से कर रखा था कैद
किराएदार ने मालिक भाई-बहन को 15 वर्षो से कर रखा था कैद

जागरण संवाददाता, बोकारो :

शहर के सबसे पॉश रिहायसी इलाके को-ऑपरेटिव कॉलोनी के प्लॉट संख्या 229 पर बने मकान पर कब्जा करने के लिए क्लीनिक संचालक ने अन्य लोगों के साथ मिलकर मकान के मालिक दीपू घोष (50 वर्ष) व उनकी बहन मंजू घोष (56 वर्ष) को लगभग 15 वर्ष से कैद में रखा था। लेकिन पड़ोसियों से अनबन के बाद मामला खुल गया और दोनों की जान बच गई। दोनों की शारीरिक स्थिति ऐसी हो गई थी कि यदि कुछ दिन और उन्हें नहीं निकाला गया होता तो उनकी जान तक जा सकती थी। दोनों को इलाज के लिए बोकारो जेनरल अस्पताल में भर्ती कराया गया है और अब उनकी स्थिति में सुधार है। अस्पताल सूत्रों का कहना है कि दीपू घोष की हालत में काफी सुधार है लेकिन मंजूश्री घोष की शारीरिक स्थिति में सुधार होने के बाद उन्हें किसी उच्च चिकित्सीय संस्थान में भर्ती कराना होगा। फिलहाल दोनों के इलाज की व्यवस्था बोकारो ओल्ड संत जेवियर्स स्टूडेंट एसोसिएशन कर रहा है। इस एसोसिएशन के अध्यक्ष एडीजी अनिल पाल्टा हैं। इसके अलावा इस एसोसिएशन में लगभग एक दर्जन से अधिक आइएएस अधिकारी भी शामिल हैं। सभी ने दीपू व मंजूश्री के इलाज तथा उनके मकान को ठीक कराने के लिए अब तक पांच लाख रुपए से अधिक की सहयोग राशि दी है।

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अपने ही घर में कैद थी मंजू, नौकर बना था मालिक

बोकारो : मंजूश्री को विक्षिप्त करार करने के बाद उसेकमरे में बंद तो किया ही गया था, उसके कमरे की पानी व बिजली का कनेक्शन भी काट दिया गया था। यही नहीं जब पुलिस व को-ऑपरेटिवके पदाधिकारी वहां पहुंचे तो कमरे में मंजूश्री के शरीर पर वस्त्र तक नहीं था। उसके कमरे में न तो एक बर्तन था और न ही बेड। सुबह या शाम में पॉलिथीन में खाना या बिस्कुट फेंक कर उन्हें दिया जाता था। उसके टॉयलट में पानी नहीं था जिस कारण वहां काफी गंदगी भरी थी। लोगों का कहना था कि यातना देकर उसे मारने का प्रयास था। दोनों भाई बहन सेंट जेवियर्स में पढ़े थे। मकान का मालिक दीपू घोष पूरी तरह डरा हुआ है। इतनी बड़ी कोठी होने के बाद भी दीपू ऐसा जीवन इसलिए बसर कर रहा था कि किसी तरह उसकी बहन की जान बची रहे। दीपू किराएदार की दवा दुकान में ही नौकर का काम करता था। और तो और दीपू का जब कमरा खोला गया तो वह बेड पर पड़ा हुआ था और उसके टूटे हुए पैर ईंट से बंधे हुए थे। दीपू अब भी डर से किसी के पक्ष में बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। यही नहीं मकान हड़पने की साजिश करने वाले लोग जो कि दीपू को अच्छा व बेहतर बता रहे हैं। उसकी शादी तक नहीं होने दी। ताकि कोई सक्षम व्यक्ति दावेदार के रूप में खड़ा हो जाएगा।

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आवंटन से मकान कब्जा तक का घटनाक्रम

- बोकारो स्टील के अधिकारी एसके घोष को 1971 में को-ऑपरेटिव का प्लाट 229 आवंटित हुआ।

-एसके घोष अपनी पत्नी, बेटी व बेटे के साथ उसमें रहते थे।

--1981 में एसके घोष की मौत हो गई। मां अपने बेटा और बेटी के साथ वहां रह रहीं थीं।

-इस बीच एसके घोष की पत्नी का भी देहांत हो गया। बहन और भाई बच गए।

-स्व. मंतोष कुमार गुप्ता की नजर इस प्लाट पर पड़ी और उन्होंने वर्ष 2000 में इस प्लाट का रेंट एकरारनामा कराकर ले लिया।

-यह एकरारनामे कराने में उनके पड़ोसी सुशील कुमार पांडेय की भी भूमिका रही।

-इसमें चश्मे की दुकान खोली गई व नेत्र सर्जन डॉ. डीके गुप्ता से 2001 से क्लीनिक का संचालन कराने लगे।

--2001 से दीपू की बहन मंजूश्री घोष की मानसिक स्थिति खराब थी। उसे कमरे में बंद कर रखा जाता था।

-दीपू घोष को उसके किराएदार ने ही अपनी दुकान में नौकर बना दिया।

-बदले में दीपू को भोजन व वस्त्र देने के साथ उसकी बहन के लिए दिन में एक बार भोजन दिया जाता था।

-धीरे-धीरे उसकी शारीरिक हालत खराब होती गई।

-दो माह पूर्व किराया लेने वाले मंतोष कुमार गुप्ता की भी मौत हो गई।

-मंतोष कुमार गुप्ता की मौत के बाद उनका बेटा अनीष व पत्नी सुनीता भी दोनों भाई-बहनों पर अत्याचार करते रहे।

-इस बीच दीपू घोष का पैर टूट गया। वह अपनी बहन की देखरेख करता था। इससे मंजूश्री की हालत और खराब हो गई।

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मेरा कोई लेना-देना नहीं : डॉ. गुप्ता

बोकारो के नेत्र सर्जन डॉ. डीके गुप्ता ने कहा कि इस मामले में उनका कोई लेना-देना नहीं है। क्लीनिक के संचालक मंतोष कुमार गुप्ता के बुलावे पर वे क्लीनिक में बैठते थे। पीछे के हिस्से में वह क्या करता था, कैसे करता था, यह मैं नहीं जानता। जब बात सामने आयी तब पता चला। दीपू को दुकान में रखने एवं मकान का किराया देने का काम भी मंतोष ही करता था।

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सभी जिम्मेदार लोगों पर होगी कार्रवाई : सचिव

को-ऑपरेटिव सोसाइटी के सचिव रासनारायण ¨सह ने कहा कि यह अमानवीय घटना है। सोसाइटी के लोगों को जानकारी मिली तो पुलिस की मदद से दोनों को बाहर निकाला गया। बीजीएच में इलाज चल रहा है। प्लाट अब भी घोष परिवार के नाम से हैं। मकान के एक हिस्से को स्व. मंतोष कुमार गुप्ता ने किराए पर लिया था। मकान के लिए इस प्रकार का घृणित कार्य ¨नदनीय है। पूरे मामले पर सोसाइटी का निदेशक मंडल कार्रवाई करते हुए न्याय दिलाएगा। डॉ. डीके गुप्ता भी इस जवाबदेही से बच नहीं सकते हैं।

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तीन लाख मांग रहे थे सुनील पांडेय : अनिश

इधर क्लीनिक संचालक अनिश कुमार गुप्ता ने कहा कि मकान उनके स्वर्गीय पिता मंतोष कुमार गुप्ता ने किराए पर लिया था। दोनों भाई-बहन को इस प्रकार क्यों रखा जाता था, वे नहीं जानते हैं। उनके पिता का देहांत दो माह पूर्व हुआ है। पड़ोसी 254 को-ऑपरेटिव निवासी सुशील कुमार पांडेय की भूमिका है। मकान किराया पर उन्होंने ही दिलवाया था। अब उनकी मां से तीन लाख रुपए की मांग कर रहे थे। नहीं देने पर ऐसा किया गया। हमलोगों ने उपायुक्त को पत्र देकर जांच की मांग की है।

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