मेलबोर्न व रोम ओलंपिक में दिखा था पीटर का जलवा
बोकारो भारतीय फुटबॉल टीम आज भले ही ओलंपिक गेम्स में क्वालीफाई करने के लिए संघर्ष कर
बोकारो : भारतीय फुटबॉल टीम आज भले ही ओलंपिक गेम्स में क्वालीफाई करने के लिए संघर्ष कर रही है, लेकिन इतिहास इतना बुरा नहीं है। भारतीय फुटबाल टीम 1956 मेलबोर्न ओलंपिक गेम्स में चौथे स्थान पर रही थी। 1960 में रोम ओलंपिक गेम्स में भी भारतीय फुटबाल टीम ने शानदार प्रदर्शन किया था। एशियाई खेलों में भी भारतीय फुटबाल टीम की तूती बोलती थी। 1962 बैंकाक एशियाई खेल में भारतीय टीम ने स्वर्ण पदक हासिल किया था। इस दौर में बोकारो इस्पात संयंत्र के पूर्व खेल अधिकारी पीटर थंगराज भारतीय टीम के गोलकीपर थे। वह गोलपोस्ट के सामने दीवार की भांति खड़े रहते थे। गोल बचाने के लिए फुटबाल पर इनकी चीते सी फुर्ती देखते ही बनती थी। पीटर थंगराज ने मेनबोर्न व रोम ओलंपिक में अपना जलवा बिखेर कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा बटोरी थी। इन्होंने बोकारो शहर के साथ आसपास के गांवों में भी फुटबाल खेलने के लिए माहौल बनाया था। आज वो हमारे बीच नहीं है, तो भी इस्पात नगरी के युवा फुटबालर के लिए रोल मॉडल हैं। मद्रास रेजीमेटल सेंटर से की करियर की शुरुआत पीटर थंगराज हैदराबाद के बलारम बाजार निवासी थे। 1953 में भारतीय सेना में शामिल हुए। फुटबाल से लगाव था। मद्रास रेजीमेंटल सेंटर से फुटबाल खेलना प्रारंभ किया। पहले सेंटर फारवर्ड खिलाड़ी के रूप में खेलते थे। बाद में अच्छी कद-काठी देखकर प्रशिक्षक ने गोलकीपर के रूप में खेलने की सलाह दी। इनके नेतृत्व में मद्रास रेजीमेंटल सेंटर ने 1955 व 1958 में डूरंड कप जीता था। पीटर थंगराज ने मोहम्मडन स्पोर्टिंग क्लब की ओर से 1963 से 1963 एवं 1971-72, मोहन बगान की ओर से 1965 से 1965 तक फुटबाल खेला है। देश के और भी कई क्लबों के साथ वे जुड़े रहे। अपने दम पर कई बार टीम को विजेता बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। एशिया के सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर का मिला था अवार्ड पीटर थंगराज ने 1958 में टोक्यो, 1962 में जकार्ता एवं 1966 में बैंकाक एशियाई खेलों में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया। लगातार 18 सालों तक गोलकीपर के तौर पर खेलते रहे। एशिया ऑल स्टार फुटबाल टीम के लिए दो बार खेले थे। 1958 में उन्हें एशिया के सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर का अवार्ड दिया गया था। 1967 में भारत सरकार ने इन्हें अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया। 2002 में भारत में सहस्त्राब्दी के गोलकीपर अवार्ड दिया गया।
बोकारो से रहा खास लगाव, यही ली अंतिम सांस पीटर थंगराज ने 1976 में बोकारो इस्पात संयंत्र में खेल अधिकारी के रूप में योगदान दिया था। उनकी देखरेख में खेलकूद की सुविधाएं बढ़ाई गईं। 1985 में बीएसएल के सेवानिवृत्त हुए। 2002 से 2008 तक सेल फुटबाल अकादमी में खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देते रहे। 25 नवंबर 2008 को बोकारो में ही उन्होंने अंतिम सांस ली। पीटर थंगराज पवेलियन के जरिए दिया गया सम्मान इस्पात नगर के सेक्टर तीन बी में पीटर थंगराज की पत्नी अल्फोंसिया पीटर, पुत्र हैरी एंथोनी पीटर रहते हैं। हैरी एंथोनी पीटर भी राष्ट्रीय स्तर के फुटबाल खिलाड़ी हैं। उन्होंने कहा कि बीएसएल प्रबंधन ने पिता के सम्मान में मोहन कुमार मंगलम स्टेडियम में पवेलियन का नाम पीटर थंगराज रखा। मद्रास रेजीमेंटल सेंटर में भी उनके नाम पर स्टेडियम का निर्माण कराया गया। झारखंड सरकार को भी इस दिशा में पहल करना चाहिए।