शिक्षा के सहारे झोपड़पट्टी के बच्चों को सबल बना रहीं दिव्यांग ललिता
बोकारो दिव्यांग ललिता स्वयं अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सकती हैं। इन्हें खड़ा होने के लिए
बोकारो : दिव्यांग ललिता स्वयं अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सकती हैं। इन्हें खड़ा होने के लिए सहारे की जरूरत होती है। बावजूद इन्होंने दिव्यांगता को मात देकर न केवल स्वयं शिक्षा को जीवन-यापन का आधार बनाया अपितु दुंदीबाद झोपड़पट्टी के बच्चों को शिक्षा के सहारे सबल बना रही हैं। शिक्षा के माध्यम से बच्चों को जीवन में आगे बढने के लिए प्रेरित कर रही हैं। इनके प्रयास से झोपड़पट्टी में शिक्षा का बेहतर वातावरण तैयार हो रहा है।
गरीब बच्चों को प्रदान कर रहीं निश्शुल्क शिक्षा :
ललिता बचपन से ही अपने पैरों पर चल नहीं सकती हैं। इन्हें पढ़ने में रुचि थी। पिता ने इनका दाखिला आशा लता केंद्र में करा दिया। इन्होंने 2007 में जैक मैट्रिक व 2009 में इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। केंद्र के निदेशक बीएस जायसवाल, प्राचार्य प्रमोद दुबे आदि के सहयोग से इनका विवाह सामान्य युवक नंद किशोर यादव से 2008 में हुई। इनका एक पुत्र है।
पति नगर निगम में सफाई कर्मी हैं। इनकी आय कम है। इसलिए ललिता ने सरकारी व गैर सरकारी संस्थान में नियोजन के लिए प्रयास किया। वहां इनके हाथ निराशा ही लगी। इसके बाद इन्होंने शिक्षा के सहारे जीने की राह तलाश ली। दुंदीबाद झोपड़पट्टी के बच्चों को कम शुल्क में ट्यूशन पढ़ाने लगी। वह गरीब बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा प्रदान करती हैं। निश्शक्त लोगों के बच्चों को भी निश्शुल्क शिक्षा देती हैं। ललिता ने कहा कि दिव्यांग युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने की व्यवस्था होनी चाहिए। नियोजन व स्वरोजगार के अभाव में इन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। दिव्यांग बच्चों को बेहतर शिक्षा प्रदान करना चाहिए। इसके सहारे जीवन में आगे बढ़ सकेंगे।