संथारा से शरीर त्यागने वाली विमला की निकली वैकुंठी यात्रा

जागरण संवाददाता चास संथारा के 13 वें दिन आज शनिवार को 75 वर्षीय विमला देवी का पार्थिव शर

By JagranEdited By: Publish:Sat, 31 Oct 2020 09:51 PM (IST) Updated:Sat, 31 Oct 2020 09:51 PM (IST)
संथारा से शरीर त्यागने वाली विमला की निकली वैकुंठी यात्रा
संथारा से शरीर त्यागने वाली विमला की निकली वैकुंठी यात्रा

जागरण संवाददाता, चास : संथारा के 13 वें दिन आज शनिवार को 75 वर्षीय विमला देवी का पार्थिव शरीर गरगा श्मशान घाट में जैन विधि से अंतिम संस्कार किया गया। उनके संथारा से शरीर त्यागने पर मृत्यु को महोत्सव के रूप में मनाया गया। परिवार के महिला, पुरुष व समाज के सदस्यों ने उनके पार्थिव शरीर को पालकी से श्मशान घाट तक पहुंचाया। पालकी को चिता पर बैठा कर उनके तीनों बेटे मदन, धर्मेद्र जैन एवं सुभाष चौरड़िया ने मुखाग्नि दी। बाद में जैन मंदिर में प्रार्थना सभा की गई। रविवार को स्मृति सभा होगी। इसमें जूम एप के जरिए पूरे देश से समाज के लोग भाग लेंगे।

विमला देवी ने चास स्थित एमडीए हाइट्स आवास में शुक्रवार शाम को संथारा के 12 वें दिन शरीर को त्याग दी थी। सूचना पाकर स्वजन व नजदीकी संबंधी पहुंचे थे। उन्होंने 19 अक्टूबर से संथारा ले लिया था। तब से अन्न व जल का त्याग कर दिया था। उनके संथारा से शरीर त्यागने पर स्वजनों व संबंधियों ने महोत्सव के रूप में मनाया। इस मौके पर उमेश जैन, सज्जन कुमार जैन, विनोद चौपड़ा, मनद जैन, सोनू सेठ, संजय शर्मा, कमल तनेजा, पवन केजरीवाल, शांति लाल लोढ़ा, विपिन सिंह, मनोज भालोटिया, मदन डागा, सिद्धार्थ पारख, निवारण चन्द्र महतो, सिद्धार्थ सिंह माना, मनोज सिंह, बांके बिहारी सिंह, प्रकाश कोठारी, शिव हरि बंका, डा. रतन केजरीवाल, डा. श्रवण कुमार, डा. राजदीप सहित अन्य उपस्थित थे।

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मृत्यु महोत्सव में श्मशान तक साथ पहुंची महिलाएं : विमला देवी चौरड़िया के वैकुंठी यात्रा में परिवार के सदस्यों के साथ महिलाएं भी श्मशान तक गई। सभी ने अंतिम समय में पुष्प अर्पित कर आशीर्वाद लिया। उनके पुत्र धर्मेंद्र जैन का कहना है कि माता ने संथारा का निर्णय लिया जो हमारे लिए पहला अनुभव था। इस बात का संतोष हैं कि वे सीधे वैकुंठ में चली गई।

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संथारा से मोक्ष की होती है प्राप्ति :

जैन धर्म में मान्यता है कि जब कोई संथारा लेता है तो सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है। जैन समाज में मुनि व कोई व्यक्ति अपनी जिदगी पूरी तरह से जी लेता है और शरीर उसका साथ देना छोड़ देता है तो वह संथारा ले सकता है। संथारा को संलेखना भी कहा जाता है। संथारा एक धार्मिक संकल्प है। इसके बाद वह व्यक्ति अन्य त्याग करता है तथा मृत्यु का सामना करते हुए शरीर त्याग देता है। संथारा से शरीर त्यागने पर इसी वीरों का कृत्य माना जाता है। जैन समाज संथारा को आनंदमय एवं महोत्सव मानते हैं।

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