रियासी में रावण, कुंभकरण व मेघनाद के पुतले जलाए

संवाद सहयोगी रियासी श्री दुर्गा नाटक मंडली की ओर से दशहरे की परंपरा को निभाते हुए रामल

By JagranEdited By: Publish:Sat, 16 Oct 2021 06:00 AM (IST) Updated:Sat, 16 Oct 2021 06:00 AM (IST)
रियासी में रावण, कुंभकरण व मेघनाद के पुतले जलाए
रियासी में रावण, कुंभकरण व मेघनाद के पुतले जलाए

संवाद सहयोगी, रियासी : श्री दुर्गा नाटक मंडली की ओर से दशहरे की परंपरा को निभाते हुए रामलीला मैदान में रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतलों का दहन किया गया। इससे पहले मुख्य बाजार में ढोल-नगाड़े के साथ शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें राम-लक्ष्मण, हनुमान जी, सुग्रीव, अंगद आदि की झाकी व वानर सेना का रूप धरे बाल कलाकार शामिल हुए।

कोरोना की वजह से इस बार दशहरा स्पोर्ट स्टेडियम मे नहीं मनाया जा सका और न ही बाहरी कारीगरों द्वारा पुतले तैयार किए गए। दशहरा कमेटी के प्रधान शभू नाथ त्रिपाठिया, मैनेजिंग डायरेक्टर बिशन मगोत्रा के सलाह मशवरा पर श्री दुर्गा नाटक मंडली के सेट डिजाइनर संजय डोगरा की देखरेख में मंडली द्वारा ही रियासी में लगभग आठ से 10 फीट ऊंचे रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतले तैयार कर रामलीला मैदान में लगाए गए। शाम को राम भवन से शोभायात्रा निकाली गई, जो चौक चबूतरा और मुख्य बाजार में श्री गणेश मंदिर से होते हुए आयोजन स्थल रामलीला मैदान पहुंची। यहां रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतलों का दहन किया गया।

श्री दुर्गा नाटक मंडली के प्रधान संजीव खजूरिया और दशहरा कमेटी के प्रधान शभूनाथ त्रिपाठिया ने बताया कि रामलीला में रावण, कुंभकरण और मेघनाद के वध के बाद उनके पुतलों के दहन की परंपरा निभाना जरूरी समझा जाता है, इसलिए कोरोना से बचाव का पालन करते हुए दशहरे की परंपरा निभाई गई।

वहीं, श्री दुर्गा नाटक मंडली की ओर से स्थानीय ओपन एयर थिएटर में वीरवार को रामलीला मंचन में श्रीराम द्वारा रावण का वध किए जाने पर पूरा थिएटर श्रीराम के जयघोष से गूंज उठा।

सबसे पहले कुंभकरण को निद्रा से जगाने का दृश्य दिखाया गया, जिसमें कुंभकरण को जगाने के लिए किए गए तरह-तरह के प्रयास से दर्शकों का खूब मनोरंजन हुआ। उसके बाद रावण द्वारा कुंभकरण को राम-लक्ष्मण से युद्ध के लिए मजबूर करते दर्शाया गया। रावण-अंगद संवाद के अगले दृश्य में अंगद रावण की भरी सभा में अपना पाव भूमि पर जमाकर रावण के योद्धाओं को उसे उठाने की चुनौती देते हैं, लेकिन भरसक प्रयास के बावजूद कोई योद्धा अंगद का पाव हिला तक नहीं पाता।

रावण वध के अंतिम दृश्य में पहले तो दोनों तरफ की सेनाओं के बीच घमासान युद्ध और फिर श्रीराम के बाण से रावण का वध होने का मंचन हुआ। रावण का वध होते ही श्रीराम के जयघोष लगने लगे।

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