कोरोना के चलते केवल पवित्र छड़ी भद्रवाह से कैलाश कुंड के लिए रवाना

हर-हर महादेव के जयघोष के बीच शनिवार को जम्मू संभाग के डोडा जिले की भद्रवाह तहसील से पवित्र छड़ी (गदा) कैलाश कुंड के लिए रवाना हुई। कोरोना के चलते लगातार दूसरे वर्ष भी सीमित संख्या में श्रद्धालुओं को पवित्र छड़ी के साथ जाने की अनुमति दी गई। छड़ी के साथ गए श्रद्धालु 21 किलोमीटर खड़ी कैलाश पर्वत श्रृंखला चढ़कर 14700 फीट की ऊंचाई पर पवित्र कुंड (झील) के दर्शन करेंगे।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 04 Sep 2021 08:22 PM (IST) Updated:Sat, 04 Sep 2021 08:22 PM (IST)
कोरोना के चलते केवल पवित्र छड़ी भद्रवाह से कैलाश कुंड के लिए रवाना
कोरोना के चलते केवल पवित्र छड़ी भद्रवाह से कैलाश कुंड के लिए रवाना

संवाद सहयोगी, किश्तवाड़ : हर-हर महादेव के जयघोष के बीच शनिवार को जम्मू संभाग के डोडा जिले की भद्रवाह तहसील से पवित्र छड़ी (गदा) कैलाश कुंड के लिए रवाना हुई। कोरोना के चलते लगातार दूसरे वर्ष भी सीमित संख्या में श्रद्धालुओं को पवित्र छड़ी के साथ जाने की अनुमति दी गई। छड़ी के साथ गए श्रद्धालु 21 किलोमीटर खड़ी कैलाश पर्वत श्रृंखला चढ़कर 14,700 फीट की ऊंचाई पर पवित्र कुंड (झील) के दर्शन करेंगे। इस बार यात्रा को तीन दिन के लिए सीमित किया गया है।

संबंधित अधिकारियों ने बताया कि छड़ी मुबारक 2100 साल पुराने भद्रवाह के वासुकी नाग मंदिर से सुबह करीब साढ़े आठ बजे निकली। कोरोना को लेकर जारी दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने पवित्र छड़ी के दर्शन किए।

अतिरिक्त उपायुक्त राकेश कुमार ने कहा कि यात्रा के शातिपूर्ण संचालन के लिए कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है। छड़ी मुबारक सोमवार सुबह ऊंचाई वाले तालाब में पहुंचेगी और उसके साथ जाने वाले श्रद्धालु वहा पारंपरिक पूजा-अर्चना करेंगे। उन्होंने कहा कि कोरोना के खतरे के कारण ही केवल पवित्र छड़ी को कैलाश कुंड की ओर ले जाने की अनुमति दी गई है। छड़ी रवाना होने के समय पूर्व एमएलसी नरेश कुमार गुप्ता और मस्तनाथ योगी भी मौजूद रहे। बता दें कि कोविड महामारी से पहले वार्षिक यात्रा में देशभर से हजारों भक्त हिस्सा लेते थे। ----बाक्स----

भगवान शिव का मूल निवास है कैलाश कुंड :

स्थानीय मान्यता के अनुसार, कैलाश कुंड भगवान शिव का मूल निवास है। शिव ने हिमाचल प्रदेश के भरमौर क्षेत्र के मणिमहेश में जाने से पहले इस स्थान को वासुकी नाग को दे दिया था। यह तीर्थयात्रा श्रावण पूर्णिमा के बाद 14वें दिन शुरू होती है। इसे सबसे कठिन यात्रा में से एक मानी जाती है, क्योंकि पवित्र कुंड तक पहुंचने के लिए भक्तों को बर्फ से होकर गुजरना पड़ता है।

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