गुलाम कश्मीर पर पाकिस्‍तान की नीति का विरोध सैयद अली शाह गिलानी को पड़ा भारी

जीवनभर पाकिस्तान के इशारे पर नाचने वाले कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी की मजबूरी है कि वह चाहकर भी नए कानून का समर्थन नहीं कर सकते।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Thu, 02 Jul 2020 11:11 PM (IST) Updated:Thu, 02 Jul 2020 11:11 PM (IST)
गुलाम कश्मीर पर पाकिस्‍तान की नीति का विरोध सैयद अली शाह गिलानी को पड़ा भारी
गुलाम कश्मीर पर पाकिस्‍तान की नीति का विरोध सैयद अली शाह गिलानी को पड़ा भारी

नवीन नवाज, श्रीनगर। कश्मीर की गुमराह सियासत को मोहरे की तरह इस्तेमाल कर पाकिस्तान वादी के अमन में आग लगाता रहा है। अब हालात ऐसे बदले कि उसको अपने ही मोहरे काटने पड़ रहे हैं। हुर्रियत से कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी की छुट्टी भी उसी का नतीजा मानी जा रही है। पाकिस्तान गुलाम कश्मीर में संविधान संशोधन कर अपनी शक्तियां बढ़ाना चाहता है और जमीन का कुछ हिस्सा चीन को देने की तैयारी कर रहा है। गिलानी ने मुंह खोलने की कोशिश की तो चुप करा दिया गया। यही वजह है कि इस्तीफे के चार दिन बाद भी उनके समर्थक और तमाम विरोधी भी चुप्पी साधे हैं।

संविधान संशोधन कर चीन को जमीन को देना चाहता है पाकिस्तान

हुर्रियत से जुड़े सूत्रों के अनुसार गिलानी और उनके समर्थक अलगाववादियों तथा कश्मीर में आतंक का चेहरा रहे सलाहुद्दीन को लगता है कि गुलाम कश्मीर का स्वरूप बदलने से उनका वजूद खतरे में पड़ जाएगा और वे कश्मीर में किसी को मुंह दिखाने की स्थिति में नहीं रहेंगे। ये लोग कश्मीर की आजादी का सपना बेचकर युवाओं को हिंसा की आग में धकेलते रहे। चिंता है कि यह आग उनके दामन तक पहुंच सकती है। गुलाम कश्मीर के प्रधानमंत्री फारूक हैदर भी पाकिस्तान की इसी नीति के खिलाफ हैं।

यह है पाकिस्तान का मंसूबा

पाकिस्तान गुलाम कश्मीर के 1974 के संविधान में 14वां संशोधन लाकर वहां के प्रतिनिधियों की शक्तियां कम करने की तैयारी में है। इसके तहत गुलाम कश्मीर की सरकार से कई विधायी, वित्तीय शक्तियां छीनकर एक परिषद को दे दी जाएंगी। 65 सदस्यीय इस परिषद में आधे सदस्य पाकिस्तान सरकार द्वारा ही नामांकित रहेंगे। इस तरह पाकिस्तान अपना एजेंडा चला पाएगा और इसके बाद चीन को उसके प्रोजेक्ट के लिए जमीन दे देगा।

यह है गिलानी की मजबूरी

जीवनभर पाकिस्तान के इशारे पर नाचने वाले कट्टरपंथी गिलानी की मजबूरी है कि वह चाहकर भी नए कानून का समर्थन नहीं कर सकते। ऐसे में उनकी सियासत सिमट जाएगी। पाकिस्तान ने उनको दूध में मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया।

यूं आइएसआइ ने प्यादों से पिटवा दिया अपना मोहरा

गुलाम कश्मीर में गिलानी की हुर्रियत कान्फ्रेंस में गुलाम मोहम्मद साफी और गुलाम नबी नौशहरी समेत कई नेता शुरू से अहम रहे हैं। मूलत: बारामुला का रहने वाला मोहम्मद साफी जमात का प्रतिनिधि है। हुर्रियत के फंड में घोटाले के बाद कुछ सालों से गिलानी उसकी नहीं सुन रहे थे और उसका पर कतरने के लिए अब्दुल्ला गिलानी को वहां की हुर्रियत का कर्ताधर्ता बना दिया। इधर, गिलानी के परिवार को प्राथमिकता दिए जाने से स्थानीय हुर्रियत खेमा भी नाराज चल रहा था। 

इस बीच, पाकिस्तान ने गुलाम कश्मीर में बैठे हुर्रियत नेताओं के साथ संपर्क साधा और उनके जरिए गिलानी के सिपहसालार अशरफ सहराई को विश्वास में लिया। सहराई हुर्रियत में गिलानी की जगह लेना चाहते थे, लेकिन गिलानी अपने बेटे को आगे बढ़ाने पर तुले थे। सभी तार जोड़ने के बाद आइएसआइ ने साफी एंड पार्टी को हरी झंडी प्रदान कर दी। गुलाम कश्मीर में एक बैठक कर गिलानी के मोहरे अब्दुल्ला गिलानी को हटा, डोडा के रहने वाल हसन खतीब का संयोजक बना दिया गया। इधर श्रीनगर में सहराई ने हुर्रियत कान्फ्रेंस व तहरीके हुर्रियत के नेताओं के साथ बैठक कर गुलाम कश्मीर में लिए फैसले पर मुहर लगा दी। इस तरह गिलानी को किनारे लगा दिया गया।

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