Martyrs of Jammu Kashmir: इन जवानों ने कुर्बानियां दे बढ़ाई राष्ट्र की शान, अब बच्चा-बच्चा करेगा इन पर अभिमान
आतंक की दोहरी चुनौती से दो-चार होने वाले यह जवान सदा राष्ट्र सर्वोपरि के सिद्धांत पर न केवल चले बल्कि अपना सर्वस्व न्योछावर करने से नहीं चूके। इन गुमनाम कहानियों को प्रशासन सामने लाने की कवायद कर रहा है। इन वीरों की कहानियों को पाठ्यक्रम में भी शामिल किया जाएगा।
जम्मू, जागरण न्यूज नेटवर्क : आतंक की धरा के नाम से कुख्यात रहे जम्मू कश्मीर ने हजारों-लाखों ऐसे योद्धा पैदा किए हैं जो हंसते-हंसते मातृभूमि पर कुर्बान हो गए पर देश की आन-बान और शान में कोई कमी नहीं आने दी। आतंक की बेल के समूल नाश के लिए भी यहां के जांबाज सिपाहियों ने भी अनेक कुर्बानियां दी। आतंक की दोहरी चुनौती से नित दो-चार होने वाले यह जवान सदा राष्ट्र सर्वोपरि के सिद्धांत पर न केवल चले बल्कि अपना सर्वस्व न्योछावर करने से नहीं चूके। इन गुमनाम कहानियों को जम्मू कश्मीर प्रशासन सामने लाने की कवायद कर रहा है और इन वीरों की कहानियों को पाठ्यक्रम में भी शामिल किया जाएगा। उनके स्वजनों को श्रीनगर में सम्मानित भी किया गया। इनमें से कुछ कहानियां हम आपके लिए लेकर आए हैं--
लांस नायक नजीर अहमद वानी (Nazir Ahmad Wani)
जम्मू कश्मीर के कुलगाम जिले के रहने वाले नजीर अहमद वानी को मरणोपरांत अशोक चक्र से नवाजा गया था। कभी 'इख्वान'(पूर्व आतंकी) कमांडर रहे बंदूक का रास्ता छोड़कर कश्मीर में बदलाव के लिए सेना में भर्ती हो गए। 23 नवंबर 2018 को शोपियां के बटागुंड गांव में हिजबुल और लश्कर के छह आतंकियों के छिपे होने की खबर मिली। वानी और उनकी टीम को आतंकियों के भागने का रास्ता रोकने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई।
लांस नायक वानी ने दो आतंकियों को मारने और अपने घायल साथी को बचाते हुए सबसे बड़ा बलिदान दिया। इस एनकाउंटर में सुरक्षाबलों ने सभी छह आतंकियों को मार गिराया था। इनमें से दो को वानी ने खुद मारा था। एनकाउंटर में वह बुरी तरह ज़ख्मी हो गए थे। बाद में इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया था। वानी को मरणोपरांत शांतिकाल के सबसे बड़े पुरस्कार अशोक चक्र से नवाज़ा गया।
सब इंस्पेक्टर सगीर अहमद पठान (Sageer Ahmad Pathan)
कुपवाड़ा जिले के हंदवाड़ा में 2 मई 2020 को आतंकवादियों से मुठभेड़ के दौरान सेना के कर्नल और मेजर समेत शहीद हुए पांच सुरक्षा कर्मियों में से एक थे उप निरीक्षक सगीर अहमद पठान उर्फ ‘काजी’। पठान उस दल का हिस्सा थे जो एक घर में बंधक बनाए गए लोगों को बचाकर निकालने गया था। इस कार्रवाई में नागरिकों को बचा लिया गया लेकिन आतंकवदियों से मुठभेड़ में पठान समेत दल के अन्य सदस्य शहीद हो गए। पठान ने 1999 में पुलिस में कांस्टेबल के पद से नौकरी की शुरुआत की थी और 2006 में आतंकवाद से लड़ने के लिए बनाए विशेष दल (एसओजी) में शामिल हो गए। उनकी बहादुरी के लिए उन्हें तीन बार सामान्य प्रकिया से हटकर पदोन्नति दी गई थी और वह कांस्टेबल से उप निरीक्षक बन गए। इसके अलावा राज्य स्तर पर कई बार सम्मानित हुए।
मेजर सुशील ऐमा (Major Sushil Aima)
कश्मीर में जन्मे मेजर सुशील ऐमा के नेतृत्व में 1 अगस्त 1999 में पाकिस्तानी की साजिश को नाकाम बनाते हुए आमने-सामने की लड़ाई में उन्होंने स्वयं तीन आतंकियों को ढेर कर दिया था। अगली सुबह वह अवकाश पर जाने वाले थे और उन्हें सूचना मिली कि बड़ी संख्या में आतंकी पहाड़ी पर किसी गांव पर हमले की साजिश रच रहे थे। उन्होंने तुरंत तलाशी अभियान छेड़ा और जल्द आतंकियों से सामना हो गया। जोरदार संघर्ष के बाद कुल पांच पाकिस्तानी आतंकी मारे गए थे। मेजर सुशील ऐमा को मरणोपरांत कीर्ति चक्र से नवाजा गया।
नायब सूबेदार चुन्नी लाल (Nb Subedar Chunni Lal)
भद्रवाह जिले में जन्मे नायब सूबेदार चुन्नी लाल ने सियाचीन से पुंछ तक के मोर्चों पर अपने शौर्य से सेना को फतह दिलाने में खासा योगदान दिया और दुश्मन को खासा नुकसान पहुंचाया। 1984 में वह जम्मू कश्मीर लाइट इंफैट्री में भर्ती हुए। 1987 में उन्होंने बाना पोस्ट पर कब्जे के लिए बाना सिंह के नेतृत्व में पाकिस्तानी कब्जे में रही चौकी को छुड़वाया। उसके बाद 1999 में पुंछ में घुसपैठ की बड़ी साजिश को विफल बनाने में उनका खासा योगदान रहा। इसके लिए उन्हें वीर चक्र से नवाजा गया। इस घटना में 12 पाकिस्तानी घुसपैठिए मारे गए थे।
24 जून 2007 को कुपवाड़ा में पाकिस्तानी घुसपैठ को नाकाम बनाते हुए उनके दल से तीन कुख्यात आतंकियों को ढेर कर दिया। इस दौरान उन्होंने घायल जवानों को सुरक्षित निकाला और अंतिम आतंकी का सफाया करते हुए वह बुरी तरह जख्मी हो गए। मरणोपरांत इस बहादुरी के लिए उन्हें अशोक चक्र से सम्मानित किया गया।
राइफलमैन अब्दुल हमीद (Rifleman Abdul Hameed)
कुपवाड़ा जिले में जन्मे अब्दुल हमीद बचपन से ही राष्ट्रप्रेम के भाव से भरे थे। हालांकि बचपन में ही उन्होंने कश्मीर में आतंक को बढ़ते देख और इसका दंश भी झेला पर धमकियों से कभी डरे नहीं। 14 साल की उम्र में अल-बद्र के आतंकियों ने उनका अपहरण कर लिया और हथियार उठाने का दबाव बनाया पर अब्दुल उन्हें चकमा देकर निकलने में कामयाब रहे। उसके बाद उन्होंने जम्मू कश्मीर पुलिस में सेवा आरंभ कर दी और विशेष ऑपरेशन ग्रुप में कई ऑपरेशन में शामिल रहे। आतंकियों ने उनके परिवार को धमकियां दी और उनपर आइईडी हमला भी किया पर वह बच गए। आतंकियों ने इसका गुस्सा उनके परिवार पर निकाला और उनके पिता की हत्या कर दी। इसके बाद वह सेना में शामिल हो गए।
12 जून 2007 को कुपवाड़ा मेें उनकी टीम को आतंकियों की सक्रियता की सूचना मिली। उन्होंने भागते हुए आतंकियों को न केवल रोक लिया और फायरिंग कर लश्कर के जिला कमांडर मूसा को ढेर कर दिया। हालांकि इस दौरान वह स्वयं भी काफी जख्मी हो गए और बाद में शहीद हो गए। उन्हें मरणोपरांत शौर्य पुरस्कार से नवाजा गया।