Jammu and Kashmir Reorganization Day: केंद्र सरकार का फैसला धरती के स्वर्ग की सुंदरता को और निखारने वाला साबित होगा
केंद्र सरकार ने अलगाववाद को बढ़ावा देने वाले अनुच्छेद 370 और 35-ए को खत्म करने के बाद सूबे के 74वें विलय दिवस यानी 26 अक्टूबर 2020 को जम्मू-कश्मीर में देश के किसी भी नागरिक को कारोबार शुरू करने के लिए जमीन खरीदने की सुविधा दे दी है।
नई दिल्ली, जेएनएन। गर फिरदौस बर रुए जमीं अस्त, हमीं अस्तो, हमीं अस्तो, हमीं अस्त। आज से चार सौ साल पहले मुगल बादशाह जहांगीर ने जब फारसी में कश्मीर की महिमा का बखान करते हुए कहा था कि अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं पर है और सिर्फ यहीं पर है तो शायद उन्हें इसका भान तक नहीं रहा होगा कि कुछ सदी बाद सियासी जकड़न के चलते यह जन्नत जहन्नुम बन जाएगी।
दलीय हितों को पूरा करने के लिए लोग अलगाववाद का स्वांग करेंगे। भोली-भाली मासूम जनता को बरगलाएंगे। कश्मीरियत की गलत व्याख्या से उनके दिलोदिमाग में विषवमन करेंगे। अपने तमाम हथकंडों से रियासत में हिंसा का नंगा नाच जारी रखेंगे। ऐसे नियम-कानून बना दिए जाएंगे जो उनके इस छिपे एजेंडे को पूरा करने में सहयोग करेंगे। लेकिन हर अति का अंत होता है। इनका भी हुआ।
केंद्र सरकार ने भेदभाव एवं अन्याय के साथ-साथ अलगाववाद को बढ़ावा देने वाले अनुच्छेद 370 और 35-ए को खत्म करने के बाद सूबे के 74वें विलय दिवस यानी 26 अक्टूबर, 2020 को जम्मू-कश्मीर में देश के किसी भी नागरिक को घर-दुकान बनाने और कारोबार शुरू करने के लिए जमीन खरीदने की सुविधा दे दी है। यह कदम इस राज्य को मुख्यधारा में लाने के साथ-साथ वहां विकास की प्रक्रिया को गति देने की एक बड़ी पहल के रूप में देखा जा रहा है। देश के विभिन्न हिस्सों से यहां करीब दस लाख रोजगार पाते हैं। ये लोग यहां की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। लेकिन प्रतिकूल कानून के चलते यहां वे बस नहीं पाते थे, जिससे इस मिट्टी से उनका अपनापन वाला जुटाव नहीं हो पाता था। अब यहीं कमाएंगे, यहीं रहेंगे।
सही मायने में अब यह सूबा भारतीय संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का वाहक बना है। अब सूबे का विकास होगा। बाहर से निवेश बढ़ेगा। उद्यमी आएंगे। जमीनें ले सकेंगे। सेब, केसर आदि उत्पादों पर आधिपत्य रखने वाले इस प्रदेश में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के साथ पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। जो निवेशक जाएंगे, उनको तो लाभ होगा ही, स्थानीय लोगों को भी इसका फायदा मिलेगा। बुनियादी सुविधाएं तेजी से विकसित होंगी। लोगों को रोजगार मिलेगा। छात्र वहीं पर अच्छी शिक्षा पा सकेंगे। इससे उनमें भटकाव नहीं होगा। सूबे में सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्तर पर विविधता का निर्माण होगा और उससे पाकिस्तान परस्त तत्वों के दुस्साहस का दमन होगा। कुल मिलाकर केंद्र सरकार का यह फैसला धरती के स्वर्ग की सुंदरता को और निखारने वाला साबित हो सकता है। ऐसे में केंद्र सरकार के इस कदम का जम्मू-कश्मीर और देश के परिप्रेक्ष्य में होने वाले असर की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
नाम ही काफी है : कश्मीर की खूबसूरती से हर कोई वाकिफ है। घाटियां, झरने, पर्वत, नदियां और झीलों का विस्तृत खजाना इसे और समृद्ध करता है। हालांकि आधुनिक दुनिया में समृद्धि का मूल्यांकन सामाजिक और आर्थिक पैमाने पर किया जाता है। आइए जानते हैं कि इन पैमानों पर कश्मीर कितना समृद्ध है। खूबसूरत वादियों वाले जम्मू कश्मीर में ऐसा बहुत कुछ है जो इसे बेहद खास बना देता है। सेबों की मिठास से पश्मीना के शॉल, सब हमें इस राज्य का मुरीद बनाते हैं। राज्य की असली पहचान ऐसी ही चीजों से हैं।
अखरोट
देश में अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल, उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर में अखरोट का उत्पादन होता है। हालांकि जम्मू कश्मीर का अखरोट उत्पादन में कोई सानी नहीं है। देश का करीब 98 फीसद अखरोट यहीं होता है। देश के शेष हिस्सों के साथ ही विदेश में इसे निर्यात किया जाता है।
पश्मीना
अक्सर कश्मीर जाने वाले लोग लौटते वक्त अपने साथ कश्मीरी शॉल लाना नहीं भूलते। हालांकि पश्मीना की बात ही कुछ और है। कश्मीर में पश्मीना का कारोबार कई शताब्दियों पूर्व का है। चांगरा बकरियों से बनने वाली पश्मीना शॉल बेहद हल्की और गर्म होती है। जिसकी भारत के साथ ही दुनिया के दूसरे देशों में खूब मांग है।
अखरोट की लकड़ी पर नक्काशी
लकड़ी पर नक्काशी का काम देश के कई शहरों और राज्यों में होता है। हालांकि जम्मू कश्मीर अखरोट की लकड़ी पर बारीक काम के लिए जाना जाता है। हालांकि यह धीरे-धीरे कम हो रहा है, इसका बड़ा कारण हाथ से काम करने के कारण कारीगरों को लगने वाला वक्त होता है। इस कलाकृति का निर्माण ही काफी वक्त लेता है। बावजूद इसके यह बेजोड़ कला अब भी जिंदा है।
सेब
अखरोट की तरह ही सेब भी जम्मू कश्मीर के लिए आर्थिक उन्नति और रोजगार का महत्वपूर्ण साधन है। हर साल कश्मीर से करीब 20 लाख टन सेब बाहर भेजा जाता है। देश के कुल सेब उत्पादन में राज्य का योगदान करीब तीन चौथाई है। वहीं यह करीब 27 फीसद लोगों के रोजगार का भी आधार है।
पर्यटन
पर्यटन के लिहाज से भी जम्मू कश्मीर लोगों को हमेशा से आकर्षित करता रहा है। डल झील के शिकारों में बैठकर प्रकृति की खूबसूरती निहारने का मौका भला कौन नहीं चाहेगा तो गुलमर्ग स्कीइंग करने वालों के लिए स्वर्ग है। इसके साथ धार्मिक यात्रओं पर जाने वालों के लिए अमरनाथ यात्र और मां वैष्णो देवी के आशीर्वाद से बढ़कर और क्या हो सकता है।