पकड़े गए आतंकी अली बाबर ने कहा- काश! हमारी फौज भी हिंदुस्तानी फौज जैसी होती

सुना था कि यहां कश्मीर में हिंदुस्तानी फौज कश्मीरी नौजवानों को देखते ही गोली मार देती है उन पर जुल्म करती है। इन्हाेंने तो मुझे बख्श दिया फिर यह कैसे यहां नौजवानों पर गोली चला सकते हैं कैसे किसी औरत की अस्मत पर हाथ डाल सकते हैं।

By Lokesh Chandra MishraEdited By: Publish:Tue, 28 Sep 2021 08:25 PM (IST) Updated:Wed, 29 Sep 2021 08:44 AM (IST)
पकड़े गए आतंकी अली बाबर ने कहा- काश! हमारी फौज भी हिंदुस्तानी फौज जैसी होती
उड़ी में पकड़ा गया आतंकी अली बाबर ने कहा- डरा था, पर भारतीय फौज ने कोई टार्चर नहीं किया

श्रीनगर, नवीन नवाज : मां, तू फिक्र न कर, मैं जल्द ही लौट आऊंगा। बस दुआ करना कि खुदा ने जो मौका मुझे दिया है, मैं उसका सही फायदा उठाऊं...। पकड़ा गया 19 वर्षीय आतंकी अली बाबर ने मंगलवार को ये बातें अपनी मां के नाम पैगाम में कही। पाकिस्तान के ओकाड़ा का रहने वाला अली बाबर ने कहा कि मैंने तो सुना था कि यहां कश्मीर में हिंदुस्तानी फौज कश्मीरी नौजवानों को देखते ही गोली मार देती है, उन पर जुल्म करती है। इन्हाेंने तो मुझे बख्श दिया, फिर यह कैसे यहां नौजवानों पर गोली चला सकते हैं, कैसे किसी औरत की अस्मत पर हाथ डाल सकते हैं। मैंने जो सुना था, वह गलत सुना था।

19 वर्षीय अली बाबर अपने सात अन्य साथियों संग कश्मीर में खून की होली खेलने के लिए बीते सप्ताह हथियारों का एक बड़ा जखीरा लेकर गुलाम कश्मीर से एलओसी पार कर उड़ी सेक्टर में दाखिल हुआ था। सेना के जवानों ने उसे व उसके साथियों को घेर लिया था। वह रविवार की शाम को पकड़ा गया था। उसका एक साथी उसके सामने ही मारा गया, जबकि अन्य साथी जिंदा बचे हैं या मारे गए, उसे नहीं पता। लेकिन, वह कहता है कि जिस तरह की लड़ाई हुई है, शायद ही उसका कोई साथी जिंदा बचा होगा।

पाकिस्तान के पंजाब सूबे में वासेवावला, ओकाड़ा का रहने वाले अली बाबर ने कहा कि हम दो तीन दिन से जंगल में चल रहे थे। हिंदुस्तान फौज से बचकर आगे जाना चाहते थे, लेकिन हम घेराबंदी मेें फंस गए थे। मैंने भी गोली चलाई, लेकिन जब मुझे लगा कि अब मैं शायद ही जिंदा बच सकूंगा, मेरे घर पर मेरी बूढ़ी मां मेरी राह देख रही होगी। उसे मैं यही कहकर आया था कि कश्मीर से लौटते ही उसकी सारी तकलीफें दूर हो जाएंगी। मुझे बहुत पैसा मिलेगा। मैंने सरेेंडर की चेतावनी सुनी। पहले लगा कि धोखा है, फिर सोचा कि मरना तो है ही, एक बार हाथ खड़ा कर देेता हूं। मैं हाथ उठाकर पेड़ के पीछे से निकल आया। फौजियों ने मुझे घेर लिया आैर उसके बाद वह मुझे अपने कैंप में ले गए। पूछताछ हुई, मैंने उन्हें अपनी सारी दास्तां सुना दी।

सातवीं पास अली बाबर ने कहा कि घर में गरीबी बहुत है। बाप की मौत हो चुकी थी। एक बहन और मां है। करीब दो साल पहले मैं लश्कर-ए-ताइबा के एक कैंप कमांडर के साथ संपर्क में आया था। मैं मदरसे और मजलिसों में जाता था। वहां कश्मीर को लेकर तकरीरें होती थीं। कश्मीर में जुल्म की कहानियां सुनाई जाती थी। इस्लाम और जिहाद की बात होती थी। काम धंधा कोई नहीं था। फिर पता चला कि जिहादी बनने पर पैसा भी मिलेगा।

मैं लश्कर-ए-ताइबा में शामिल हो गया। दो साल पहले मैने गढ़ी हबीबुल्ला कैंप में दौरा-ए-आम की ट्रेनिंग की और 22 दिन बाद मैं अपने घर चला गया। इसी साल 13 अप्रैल को मुझे कैंप में बुलाया गया। सात दिन बाद मुझे हालन में सवाई नाला के पास बने कैंप में भेजा गया। चार माह तक फिर ट्रेनिंग चली। इस दौरान हमने जीपीएस, रेडियो सेट का इस्तेमाल करना, हथियार चलाना, मैट्रिक्स कोड तैयार करना और उसका इस्तेमाल करना सीखा। फिर हमें कश्मीर चलने का हुक्म मिला।

अली बाबर ने कहा कि मैं 16 सितंबर को अपने कैंप से निकला था। हम कुल छह लोग थे। इनमें अतीक-उर-रहमान उर्फ कारी अनास भी था। वह पिंडी अटोक का रहने वाला है। उसने 20 हजार रुपये मां के इलाज के लिए दिए। उसने कहा कहा था कि कश्मीर में पट्टन, बारामुला में हथियार व अन्य साजो सामान छाेड़ कर आने पर 30 हजार रुपये और मिलेंगे। जब हम बार्डर पार कर रहे थे तो मुझे कहा गया कि पट्टन में कुछ दिन रुकना पड़ेगा और वहां जिहाद के लिए स्थानीय लड़कों को भर्ती करने के अलावा उन्हें कुछ ट्रेनिंग भी देनी है।

डरा था, पर भारतीय फौज ने कोई टार्चर नहीं किया : दो दिन भारतीय फौज की हिरासत में रहने के दौरान अपने अनुभव का जिक्र करते हुए अली बाबर ने कहा कि मैं बहुत डरा हुआ था। हिंदुस्तानी फौजियों ने मुझे पकड़ने के बाद कोई टार्चर नहीं किया। उन्होंने मुझे सिर्फ यही कहा कि अच्छा किया जो हथियार डाल दिए, नहीं तो मारे जाते। अपने घर के बारे में बताओ। मैंने उन्हें अपने घर के बारे में बताया। मैंने उन्हें अपनी मां का टेलीफोन नंबर भी बताया। मैंने कैंप में कश्मीरियों को भी फौजियों के पास आते देखा। हमारे वहां तो कैंप में कोई सिविल आसानी से नहीं जा सकता। फौज का बड़ा दबदबा है। काश हमारे उधर भी ऐसी फौज होती।

16 सितंबर को पहुंचे थे लांचिंग पैड पर : अली बाबर ने बताया कि वह 16 सितंबर को लांचिंग पैड पर पहुंए गए थे। 18 सितंबर को एलओसी पार कर उड़ी में दाखिल हुए थे और भारतीय फौज से सामना हो गया। हम छह लोग थे। मैं और अतीक उर रहमान आगे थे। हमें वापस भागने का मौका नहीं मिला। चार अन्य वापस भाग गए या मारे गए मुझे नहींं पता। हम लगातार जंगल और नालों में छिपते फिर रहे थे। रविवार की सुबह अतीक मारा गया और मैंने सरेंडर कर दिया।

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