जिले में पेयजल संकट से निपटने को जलशक्ति विभाग तैयार
प्रत्येक घर में पीने के पानी की जरूरत पहले से अधिक बढ़ गई है। अधिकारियों के अनुसार जिला में सर्दी के मौसम की अपेक्षा गर्मी में पानी की मांग तीन गुणा बढ़ जाती है। खासकर कंडी क्षेत्र में पेयजल को लेकर कई बार हाहाकार मच जाता है। लोग नेशनल हाइवे पर आकर प्रदर्शन करना शुरू कर देते हैं। ऐसी स्थिति से
गर्मी का मौसम शुरू हो चुका है। प्रत्येक घर में पानी की जरूरत पहले से अधिक बढ़ गई है। अधिकारियों के अनुसार जिले में सर्दी के मौसम की अपेक्षा गर्मी में पानी की मांग तीन गुणा बढ़ जाती है। खासकर कंडी क्षेत्र में पेयजल को लेकर कई बार हाहाकार मच जाता है। लोग नेशनल हाईवे पर आकर प्रदर्शन करना शुरू कर देते हैं। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए सरकार ने विभाग को दो विग में बांट कर एक को सिविल विग और दूसरे मैकेनिकल विग को पेयजल आपूर्ति करने का जिम्मा दे रखा है। इसमें मैकेनिकल विग का ही मुख्य रोल होता है जो लोगों के घरों एवं गांवों तक पानी पहुंचा रहा है यानि ट्यूबवेल से लोगों के घरों तक पानी सिविल विभाग की जिम्मेदारी नहीं बल्कि इसकी जिम्मेदारी मैकेनिकल विग को दी गई है। इसके चलते विभाग की पेयजल आपूर्ति वाली मशीनरी का रखरखाव और मरम्मत इसी विग के पास रहती है। गर्मियों के दिनों में इस विभाग के लिए युद्ध लड़ने जैसी स्थिति बन जाती है। स्थिति को देखते हुए हर साल ये विभाग गर्मी आने से पहले ही एक एक्शन प्लान तैयार करता है। इस बार विभाग ने जिले में अतिरिक्त मशीनरी स्टेंडबाई रखी है, ताकि कहीं भी मशीनरी खराब होने पर वहां और ज्यादा समस्या आने पर तुरंत स्पेयर रखी मशीनरी को स्थापित किया जा सके। विभाग ने कितनी मशीनरी इस बार गर्मी में संभावित जल संकट से निपटने के लिए स्पेयर रखी है और क्या-क्या तैयारियां हैं, इन सब मुद्दों पर दैनिक जागरण के उप मुख्य संवाददाता राकेश शर्मा ने जिला जल शक्ति विभाग के मैकेनिकल विग के कार्यकारी अभियंता रोहित गुप्ता से बातचीत की, उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:- - गर्मी का मौसम शुरू हो चुका है, विभाग ने जल संकट से निपटने के लिए क्या तैयारियां कर रखी हैं।
जिले में गर्मी के मौसम में सर्दी के मौसम की अपेक्षा पेयजल की मांग तीन गुणा बढ़ जाती है। पिछले कई सालों से गर्मी में पेयजल संकट को देखते हुए इस बार विभाग ने 40 अतिरिक्त मोटर पंप एवं 20 बिजली के ट्रांसफार्मर स्पेयर यानि स्टेंडबाई रख लिए है, ताकि किसी भी गांव में पेयजल की भारी मांग रहती है, वहां मशीनरी खराब होने पर स्पेयर रखी मशीनरी लगाकर तुरंत आपूर्ति बहाल कर दी जाए। हालांकि, गत वर्ष जिले में पेयजल को लेकर इतनी मारामारी नहीं रही, फिर भी उनके विभाग ने गर्मी में पेयजल संकट की संभावना को देखते हुए एक्शन प्लान तैयार कर रखा है। जहां मशीनरी खराब होगी, वहां स्पेयर रखी इस्तेमाल होगी, इसके अलावा जहां मशीनरी जल्द रिपेयर नहीं होने की स्थिति रहेगी, वहां टैंकर से आपूर्ति भी की जाएगी। उनके पास फिलहाल सात ही टैंकर हैं। बसोहली में अगर किसी गांव में ऐसी स्थिति बनेगी तो वहां पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण ट्राली हायर करके आपूर्ति की जाएगी। - जिले में ट्यूबवेलों की संख्या कितनी है।
जिले में कुल 350 ट्यूबवेल हैं, जहां से कठुआ, हीरानगर, बसोहली, बनी, महानपुर, रामकोट और बनी के कुछ क्षेत्र में आपूर्ति होती है। - आपूर्ति के लिए क्या कर्मियों की कमी हैं।
जिले में 350 स्टेशनों से आपूर्ति करने के अलावा पंपिग के लिए कम से कम 1050 कर्मी की जरूरत है, लेकिन उनके पास 850 ही उपलब्ध है। - गर्मी में कंडी क्षेत्र में पानी की किल्लत रहती है, इसके लिए क्या तैयारियां है।
आजकल तो हर पंचायत में ट्यूबवेल हैं, जहां नहीं है, वहां भी लगाने की तैयारी है, जल मिशन के तहत वहां भी योजनाएं इसी साल में शुरू हो चुकी है हैं। कंडी में गर्मी के दिनों में पेयजल की किल्लत का कारण प्राकृतिक स्त्रोत सूख जाते हैं, साथ ही ट्यूबवेलों का डिस्चार्ज कम होता है, यानि जिस स्टेशन की एक घंटे में पांच हजार गैलेन पानी निकालने की क्षमता रहती है, वहां जलस्तर नीचे चले जाने की वजह से उसकी क्षमता कई बार 3 से 4 हजार रह जाती है। इसलिए वहां किल्लत रहती है। इसके लिए स्टेशन पर ज्यादा समय तक पंपिग की जरूरत रहती है। बीच में बिजली आपूर्ति भी गर्मियों के दिनों में वोल्टेज के उतार चढ़ाव होने से बधित रहती है, दूसरा गर्मी में लोग पानी की मांग ज्यादा रहती है, सर्दी में कहीं खराबी हो तो लोग सब्र कर लेते हैं, लेकिन गर्मी में लोग पानी बंद होने के बाद तुरंत बहाल करने की मांग करना शुरू कर देंते है। दूसरा अभी जिले में बिजली विभाग ने 50 फीसद ट्यूबवेलों से ही स्पेशल लाइन दे रखी हैं, जहां 24 घंटे आपूर्ति रहती है, अन्य स्टेशन लोकल आपूर्ति से चलते हैं, जिससे आपूर्ति बार-बार बाधित होने से समस्या रहती है, ऐसे में 20 के करीब स्टेशन गर्मी में ज्यादा प्रभावित रहते हैं, लेकिन इस बार उसका भी प्रबंध करने का प्रयास किया गया है।