'विकारों के चलते अपने भीतर बसे परमात्मा को हम खोज नहीं पाते'

संवाद सहयोगी बिलावर पूज्य संत श्री सुभाष शास्त्री जी महाराज ने लाखड़ी के रघुनाथ मंदिर में चल रहे श्र

By JagranEdited By: Publish:Sun, 18 Apr 2021 12:51 AM (IST) Updated:Sun, 18 Apr 2021 12:51 AM (IST)
'विकारों के चलते अपने भीतर बसे परमात्मा को हम खोज नहीं पाते'
'विकारों के चलते अपने भीतर बसे परमात्मा को हम खोज नहीं पाते'

संवाद सहयोगी, बिलावर: पूज्य संत श्री सुभाष शास्त्री जी महाराज ने लाखड़ी के रघुनाथ मंदिर में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा में कहा कि मंदिर जाना व तीर्थ यात्रा पर जाना बहुत महत्वपूर्ण है। इससे भी महत्वपूर्ण है स्वयं को जानना।

सनातन धर्मानुसार प्रभु मानव के भीतर ही निवास करते हैं, इसलिए कहा भी जाता है जो आत्मा सो परमात्मा। शास्त्री जी ने आगे कहा कि इस धरती पर करोड़ों अरबों लोग हैं, प्रार्थना स्थलों की कोई कमी नहीं प्रार्थना पूजा भी खूब चल रही है। अर्चना की धूप और पूजा के दिए भी खूब चल रहे हैं, बाहर के मंदिरों में तो खूब पूजा हो रही है, भीतर के मंदिर में पूजा का कोई स्वर ही नहीं है। देखो मनुष्य के बनाए मंदिर मनुष्य से बड़ा नहीं है। अगर परमात्मा को खोजना है तो मनुष्य को वह मंदिर खोजना होगा। जो स्वयं परमात्मा ने ही बनाया है। उसका ही घर है, और वह घर मनुष्य ही है, इसलिए कबीर कहते हैं तेरा जन एक आध है कोई। शास्त्री जी ने कहा कि देखो संत कबीर जी का कहना है कि करोड़ों में कोई एकाध परमात्मा के घर जानी अपने से भीतर की तरफ मुड़ता है। वह एकाद इस राज को समझ पाता है कि जैसे मैं बाहर खोज रहा हूं, वह मेरे भीतर ही है। असल बात यह है कि असंख्य साधक को उसे खोजते हैं, परंतु पाता नहीं क्यों, कहा अवरोध है, उत्तर है काम, क्रोध, लोभ। इन तीनों के कारण ही हरिपद को पहचानना मुश्किल है। सुनो जो इन तीनों के पार हो जाता है। वहीं केवल हरिपथ को पहचान पाता है, इसीलिए प्रयास करें स्वयं को स्वयं से खोजने का परिणाम प्रभु की प्राप्ति। अंत में शास्त्री जी ने विश्व शाति हेतु प्रभु चरणों में प्रार्थना की।

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