विद्यार्थियों के हाथों में किताब नहीं, रहती है पानी की बाल्टी
संवाद सहयोगी बसोहली सरकार बच्चों के कंधों से स्कूल बैग का भार कम करने के लिए प्रयासरत है
संवाद सहयोगी, बसोहली : सरकार बच्चों के कंधों से स्कूल बैग का भार कम करने के लिए प्रयासरत है, वहीं पहाड़ी क्षेत्र के एक स्कूल में बच्चों को रोजाना कंधों पर पानी की बाल्टी रहता है।
दरअसल, शिक्षा विभाग शिक्षा के स्तर को ऊंचा करने के लिए फंड उपलब्ध करवाने का दावा कर रही है। इसके बावजूद सरकारी स्कूलों में सुविधाएं नाममात्र ही हैं। पहाड़ी क्षेत्र में कई ऐसे स्कूल हैं, जहां पर आज भी शौचालय तक नहीं है। अगर किसी स्कूल में शौचालय है भी तो वहां पर पानी का कनेक्शन नहीं होने के कारण शौचालय सफेद हाथी बन कर रह गया है, जबकि जिला प्रशासन स्कूली बच्चों के माध्यम से रोजाना खुले में शौच नहीं करने को लेकर गांवों में जागरूकता फैलाने में जुटा हुआ है, लेकिन सवाल उठता है कि जब स्कूली बच्चे ही खुले में ही शौच करने को मजबूर है तो जागरूकता कैसे फैलेगी। कुछ ऐसा ही हाल है हट्ट पंचायत के सेबरा गांव के प्राइमरी स्कूल का, जहां के बच्चे रोजाना पानी ढोने को मजबूर है।
सुबह के समय स्कूल पहुंचते ही सेबरा स्कूल के विद्यार्थी स्कूल के शिक्षक पानी लाने को कहते हैं, जिसके बाद स्कूल से करीब एक किलोमीटर दूर प्राकृतिक स्त्रोत से पानी लेकर आते हैं। जब सरकार पानी का किराया देगी और पानी का कनेक्शन स्कूल में नहीं लेने के प्रति किसकी जिम्मेवारी है।
गांव के सरपंच सुरेंद्र सिंह ने बताया कि क्षेत्र के हर स्कूल में पानी की सुविधा के लिए शिक्षा विभाग द्वारा टेंडर लगाया गया था, उक्त स्कूलों को भी तरजीह दी गई, जिन स्कूलों में पानी की पाइपें कम लगती थी। यहां पर एक किलोमीटर पानी की पाइप लग रही थी, इसके कारण स्कूल का नाम सूची से गायब हो गया। इस बाबत जेडइओ बसोहली को भी स्कूल में पानी की सुविधा को लेकर पत्राचार किया गया, मगर कोई हल नहीं हुआ। वैसे भी इस समय सभी स्कूल कोरोना के चलते बंद पड़े हुए हैं। मौजूदा समय में भी बच्चों को स्कूल में बुलाकर पानी लाया जा रहा है। कोट्स---
मेरे संज्ञान में 'दैनिक जागरण' द्वारा यह मुद्दा उठाया गया है, इसकी पूरी जांच करवाई जाएगी।
-तिलक राज थापा, एडीसी, बसोहली