सरकारी जमीन खाली कराने का विवाद थमने का नाम नहीं

जागरण संवाददाता कठुआ जिला प्रशासन द्वारा सरकारी जमीन खाली कराने की कार्रवाई का विरोध थ

By JagranEdited By: Publish:Tue, 07 Dec 2021 04:55 AM (IST) Updated:Tue, 07 Dec 2021 04:55 AM (IST)
सरकारी जमीन खाली कराने का विवाद थमने का नाम नहीं
सरकारी जमीन खाली कराने का विवाद थमने का नाम नहीं

जागरण संवाददाता, कठुआ: जिला प्रशासन द्वारा सरकारी जमीन खाली कराने की कार्रवाई का विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है। सोमवार को जिला कांग्रेस कमेटी ने डीसी को उपराज्यपाल के नाम एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें किसानों को रोशनी एक्ट के तहत ही सरकार किसानों से सरकारी भूमि नहीं छीनने के लिए अपनी ओर से नई याचिका दायर करने की मांग रखी है।

जिला कांग्रेस प्रधान पंकज डोगरा के नेतृत्व में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने डीसी को सौंपे ज्ञापन में उपराज्यपाल को उक्त मुद्दे पर जल्द फैसला लेने की मांग की। उन्होंने कहा कि सरकार ने ऐसा तानाशाही फरमान प्रशासन पर लागू करने के लिए दवाब बनाया, जिससे किसानों में हड़कंप मचा हुआ है। ऐसा इसलिए कि उसी जमीन को पूर्व सरकारों ने अब उन्हें अलाट कर रखी है। भले ही अभी उनके नाम नहीं है, फिर भी एक बार भी सरकार की ओर से ऐसा फरमान जारी नहीं हुआ। अब सरकार का फरमान राजनीतिक ड्रामा बन गया है। पहले परेशान करों, फिर खुद भी उनके साथ हो जाओ, सरकार की ऐसी राजनीति अब लोग समझ गए हैं। सरकार उक्त मुददे को सड़कों पर लाने के लिए उन्हें मजबूर करें, उससे पहले आदेश को वापस ले, अगर कोर्ट का आदेश है तो सरकार अपनी ओर से नई याचिका दायर करें।

इसी बीच पंकज डोगरा ने जिले में पहली बार बिना सूचना दिए धान की खरीद मंडियों को बंद करने के फैसले की कड़ी निदा करते हुए कहा कि इससे किसानों को नुकसान हो रहा है। छह माह की मेहनत के बाद काटी गई फसल खुले में मंडियों में पड़ी है, बार-बार मांग करने के बाद भी फसल खरीदी नहीं जा रही है। यह सीधे निजी व्यापारियों को अंदरखाते लाभ पहुंचाने की नीति है, ताकि किसान परेशान होकर मजबूरी में अपनी फसल सरकारी मंडी में खरीदारी न होने पर निजी व्यापारियों को सौंप दें।

प्रदर्शन में नरेंद्र खजूरिया, अरुण मेहता, विशू अंडोत्रा, सतपाल भंडारी, कर्ण चौधरी, काजल आदि शामिल थे। कोट्स---

किसानों के पास दशकों से सरकारी जमीन छीनने के सरकार के प्रयास को कभी सफल नहीं होने देंगे। पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके गुलाम नबी आजाद ने ऐसे किसानों को उनके कब्जे में सरकारी भूमि अलाट करने की वर्ष 2006 में प्रक्रिया शुरू की थी, जिसके तहत सैकड़ों किसानों को लाभ भी मिला, लेकिन उनके मुख्यमंत्री पद से हटते ही प्रक्रिया को कोर्ट में चुनौती दे गई।

-मनोहर लाल शर्मा, पूर्व मंत्री

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