कुसंग से जितना बचा जाए उतना ही स्वयं के लिए अच्छा

जागरण संवाददाता कठुआ संक्रांति के उपलक्ष्य में रविवार को श्री अखंड परमधाम नौनाथ घगवाल में सु

By JagranEdited By: Publish:Mon, 18 Oct 2021 12:35 AM (IST) Updated:Mon, 18 Oct 2021 12:35 AM (IST)
कुसंग से जितना बचा जाए उतना ही स्वयं के लिए अच्छा
कुसंग से जितना बचा जाए उतना ही स्वयं के लिए अच्छा

जागरण संवाददाता, कठुआ: संक्रांति के उपलक्ष्य में रविवार को श्री अखंड परमधाम नौनाथ घगवाल में सुभाष शास्त्री जी महाराज ने सत्संग के विषय में बताते हुए कहा किस सत्य का संग, संतों का संग, सदग्रंथों का संग ही सत्संग होता है। अब कुछ कुसंग के विषय में क्या बताएं, क्योंकि आप इतने भी मंदबुद्धि नहीं हो कि आपको इसके बारे में पता ना हो।

उन्होंने संक्षेप में कहा कि कुसंग से जितना बचा जाए, उतना ही स्वयं के लिए अच्छा है, क्योंकि संग का रंग अवश्यमेव में दिखता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि अपने रुमाल में कुछ समय के लिए खुशबूदार फूल रखें और फिर उन्हें निकाल दें, उन फूलों की महक बहुत देर तक आपके रुमाल में रहेगी। इसके विपरीत आप अपने दूसरे रुमाल में पीसी हुई मिर्ची कुछ पल के लिए रखें और फिर झाड़ दें, आप अनुभव करेंगे कि मिर्ची की वासना रुमाल धोने के बाद भी उसमें रहती है। बस यही अंतर है सत्संग और कुसंग में। अब निर्णय आपको लेना है कि आपको कौन सा संग करना है।

शास्त्री जी ने सत्संग का महत्व समझाते हुए कहा यदि आप गाड़ी चलाते हैं, उसे सर्विस के लिए गैराज में भेजते हैं, क्यों? ताकि उसकी सफाई हो सके, ठीक इसी तरह से संत मुनियों की धर्म सभाएं भी गैराज जैसी होती हैं, जहा तुम्हारे दिल दिमाग रूपी इंजन की धुलाई की जाती है। जिंदगी भी एक गाड़ी है, संकल्प की गाड़ी। अगर इस गाड़ी में हौसले के पहिए, धर्म का इंजन, कर्म का इंजन, संयम का स्टेरिंग, मर्यादा का एक्सीलेटर, अनुशासन का ब्रेक, टूल बॉक्स में ज्ञान, चरित्र के औजार हो तो यह मनुष्य रूपी गाड़ी निश्चित ही मोक्ष व मंजिल तक पहुंच जाती है। यही कारण है किस संत हमेशा से ही सत्संग के लिए प्रेरित करते हैं। इसलिए अनुरोध है कि सत्य का संग आवश्य करें। इसमें आपका भला छिपा रहता है जो दिखता नहीं है, जैसे दूध में मक्खन नहीं दिखता।

chat bot
आपका साथी