Jammu: लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से सीख लें युवा : पुरुषोत्तम दधीच

अंग्रेजी शिक्षा के वे घोर आलोचक थे। वे मानते थे कि यह भारतीय सभ्यता के प्रति अनादर सिखाती है। इस अवसर पर सभा के महासचिव प्रभात सिंह ने कहा कि लोकमान्य तिलक ने अंग्रेजी शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की बहुत आलोचना की।

By Edited By: Publish:Mon, 02 Aug 2021 06:55 AM (IST) Updated:Mon, 02 Aug 2021 07:04 AM (IST)
Jammu: लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से सीख लें युवा : पुरुषोत्तम दधीच
केसरी में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया।

जागरण संवाददाता, जम्मू : श्री सनातन धर्म सभा के प्रधान पुरुषोत्तम दधीच की अध्यक्षता में रविवार को गीता भवन में एक कार्यक्रम का आयोजन कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी बाल गंगाधर तिलक को विनम्र श्रद्धांजलि दी गई। दधीच ने युवाओं से लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से सीख लेने व उनके दिखाए रास्ते पर चलने का आह्वान किया। पुरुषोत्तम दधीच ने कहा कि बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1956 को महाराष्ट्र स्थित रत्नागिरी जिले के गांव चिखली में हुआ था।

1 अगस्त 1920 को उनका निधन हुआ। वह एक राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने नारा दिया था कि स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और इसे हम लेकर रहेंगे। इसने भारतीय जनमानस में नई उर्जा भर दी थी। बिपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय, अरविंद घोष और वीओ चिदंबरम पिल्लै जैसे नेताओं से उनके बेहद करीबी संबंध थे। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने कुछ समय तक स्कूल और कालेजों में गणित पढ़ाया।

अंग्रेजी शिक्षा के वे घोर आलोचक थे। वे मानते थे कि यह भारतीय सभ्यता के प्रति अनादर सिखाती है। इस अवसर पर सभा के महासचिव प्रभात सिंह ने कहा कि लोकमान्य तिलक ने अंग्रेजी शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की बहुत आलोचना की। उन्होंने मांग की कि ब्रिटिश सरकार तुरंत भारतीयों को पूर्ण स्वराज दे। केसरी में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया।

लोकमान्य तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन जल्द ही वे कांग्रेस के नरमपंथी रवैये के विरुद्ध बोलने लगे। 1907 में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गई। गरम दल में लोकमान्य तिलक के साथ लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल शामिल थे। इन तीनों को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाने लगा। लोकमान्य तिलक ने यू तो अनेक पुस्तकें लिखीं, लेकिन श्रीमद् भागवत गीता की व्याख्या को लेकर मांडले जेल में लिखी गई उनकी किताब गीता रहस्य सर्वाेत्कृष्ट है। इसका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है।

इस मौके पर सनातन धर्म सभा के महासचिव प्रभात सिंह, सचिव पवन बडू, कोषाअध्यक्ष संजय गुप्ता, सह-सचिव दिलीप गुप्ता, सुभाष व कुशल कुमार सहित सभा के अन्य पदाधिकारी उपस्थित रहे।

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