BJP Mission 50 Plus : देवेंद्र राणा और सलाथिया की जोड़ी से आसान होगी 'मिशन 50 प्लस' की राह, समझें पूरा गणित

देवेंद्र राणा और सुरजीत सिंह सलाथिया का मुस्लिम और खासकर गुज्जर समाज में खासा प्रभाव रहा है। ऐसे में भाजपा इनका इस्तेमाल राजौरी पुंछ किश्तवाड़ और डोडा जिलों में संगठन की मजबूती के लिए करना चाहेगी। इन नेताओं की वरिष्‍ठ नेताओं से तालमेल में कुछ चुनौतियां आना भी लाजिमी है।

By Lokesh Chandra MishraEdited By: Publish:Tue, 12 Oct 2021 04:00 AM (IST) Updated:Tue, 12 Oct 2021 08:59 AM (IST)
BJP Mission 50 Plus : देवेंद्र राणा और सलाथिया की जोड़ी से आसान होगी 'मिशन 50 प्लस' की राह, समझें पूरा गणित
नेशनल कांफ्रेंस के दिग्गज नेता देवेंद्र राणा और सुरजीत सिंह सलाथिया को भाजपा ने अपने खेमे में शामिल कर लिया।

जम्मू, अनिल गक्‍खड़ : जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव फिलहाल काफी दूर हैं पर जम्मू कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी ने 'मिशन 50 प्लस' (Mission 50 Plus) की तैयारी तेज कर दी है। पूर्व मंत्री और नेशनल कांफ्रेंस के जम्मू संभाग के दिग्गज नेता देवेंद्र सिंह राणा और सुरजीत सिंह सलाथिया को अपने खेमे में शामिल करना पार्टी की इसी रणनीति से जोड़कर बताया जा रहा है। पार्टी से जुड़े अहम सूत्र बताते हैं कि बहुत जल्द जम्मू से ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के बारे में चौंकाने वाली खबर आ सकती है। कुछ अन्य नामों पर भी मंथन चल रहा है। खास बात है कि पूरी कमान हाईकमान अपने हाथ में रखे है और प्रदेश ईकाई को केवल साथ रखा जा रहा है। पार्टी की तैयारियां भी शानदार हैं और फिलहाल प्रदेश में कोई बड़ी ताकत सामने नहीं है। ऐसे में  'मिशन 50 प्लस' की राह आसान दिख सकती है पर संगठन के स्‍तर पर शायद अभी काफी कुछ करना होगा।

भाजपा ने इसकी तैयारी जिला विकास परिषदों के चुनाव से पहले ही कर ली थी। संगठन में विरोधी दलों के मजबूत चेहरों को जोड़ने की उस समय आरंभ हुई मुहिम का अब दूसरा चरण कहा जा सकता है। देवेंद्र सिंह राणा और सुरजीत सिंह सलाथिया दोनों ही जम्मू में नेशनल कांफ्रेंस (NC) के मजबूत स्तंभ के साथ पार्टी का प्रमुख हिंदू चेहरा भी थे। इन नेताओं ने डुग्गर प्रदेश में भाजपा के उदय के बावजूद एनसी का परचम थामे रखा और हिंदू बहुल क्षेत्रों में पार्टी संगठन अडिग रहा। इनके भाजपा में शामिल होते ही जम्‍मू में एनसी के दूसरी लाइन के नेताओं में भी भगदड़ दिख रही है और इसका असर निश्चित तौर पर पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल पर पडऩे वाला है। इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा। इसके अलावा इन नेताओं का मुस्लिम क्षेत्रों और खासकर गुज्जर समाज में खासा प्रभाव रहा है। ऐसे में भाजपा भविष्य में इनका इस्तेमाल जम्मू संभाग के राजौरी, पुंछ, किश्तवाड़ और डोडा जिलों में संगठन की मजबूती के लिए करना चाहेगी। यह दोनों नेता अपनी संगठन क्षमता और सक्रियता के कारण जाने जाते हैं, ऐसे में पार्टी के अन्य वरिष्‍ठ नेताओं से तालमेल में कुछ चुनौतियां आना भी लाजिमी है। इस स्थिति से हाईकमान कैसे निपटेगा, यह भी देखना होगा।

यह है भाजपा का मिशन 50

दो साल पूर्व भाजपा कार्यकारिणी ने जम्मू कश्मीर विधानसभा में अपने दम पर 50 से अधिक सीटें लाने का लक्ष्य रखा था। यह लक्ष्य तब बड़ा दिखता था। 2014 के विधानसभा चुनाव में पार्टी 25 सीटें जीतने में सफल रही थी। ज्यादातर सीटें जम्मू संभाग के हिंदू बहुल क्षेत्रों से ही मिली थीं। इसका अर्थ यह हुआ कि पार्टी को आगामी चुनाव में अपना प्रदर्शन दोगुना करना होगा और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी संगठन को मजबूत बनाना होगा। इसके अलावा पार्टी में नई पीढ़ी तैयार करने का लक्ष्य दिया गया था। वरिष्ठ नेताओं की आपसी खींचतान के कारण पार्टी में नए चेहरों का उदय उस गति से नहीं हो पाया।

लक्ष्य को पाने की यह है रणनीति

संगठन से जुड़े नेता बताते हैं कि जम्मू संभाग में अपना संगठन और मजबूत करने की तैयारी चल रही है। साथ ही उन सीटों की पहचान की गई है, जहां पार्टी को अपनी तैयारी कमजोर दिख रही है। ऐसे में उन सीटों पर सक्रिय दूसरे दलों के मजबूत नेताओं को शामिल कराया जा रहा है। चुनावी विशेषज्ञों का मानना है कि कश्मीर में अभी भी पार्टी की राह आसान नहीं दिखती, ऐसे में भाजपा की पूरी रणनीति जम्मू पर ही केंद्रित रहने वाली है। कश्मीर में शिया और गुर्जर समुदाय को साथ जोड़कर पार्टी अपने दम पर सत्ता के करीब पहुंचने का लक्ष्य रखे है।

यूं समझें जम्मू कश्मीर का चुनावी गणित

जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन से पूर्व यहां 87 विधानसभा क्षेत्र थे। इनके अलावा 24 सीटें गुलाम कश्मीर के लिए खाली छोड़ी जाती हैं। इन सीटों को फिलहाल छोड़ देते हैं चूंकि पूरा खेल शेष सीटों पर ही होना है। 87 में से चार सीटें लद्दाख की थी। चूंकि लद्दाख अब अलग केंद्रशासित प्रदेश बन चुका है, ऐसे में शेष सीटें 83 रह जाती हैं। इनमें 37 सीटें जम्मू में थीं और 46 कश्मीर में। परिसीमन के बाद सात सीटें बढ़ जाएंगी और सीटों की संख्या बढ़कर 90 हो जाएगी। अपेक्षा है कि जम्मू संभाग में चार से पांच सीटें बढ़ सकती हैं और कश्मीर के हिस्से में दो से तीन सीटों का इजाफा हो सकता है। ऐसे में भी 50 सीटों के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए भाजपा को कश्मीर में भी समर्थन जुटाना होगा।

परिसीमन के बाद होगा चुनाव

जम्मू कश्मीर में चुनाव परिसीमन के बाद होना है। फिलहाल परिसीमन आयोग का समय मार्च 2022 तक है। कोरोना संक्रमण के कारण आयोग का काम प्रभावित रहा। ऐसे में अपेक्षा जताई जा रही है कि आयोग का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है।

इन दोनों वरिष्ठ नेताओं के पार्टी मजबूत होगी। परिसीमन के बाद जम्मू कश्मीर में होने वाले चुनाव में पार्टी 50 से अधिक सीटें जीतकर सरकार बनाएगी। हम सब मिलकर इस लक्ष्य के लिए काम करेंगे।

रविंद्र रैना, प्रदेश अध्यक्ष, भाजपा

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