Vivekanand in Kashmir: जब भगवान शिव से हुआ साक्षात्कार तब क्या बोले स्वामी विवेकानंद, पढ़ें पूरी कहानी
स्वामी विवेकानंद चंदनबाड़ी शेषनाग और पंचतरणी होते हुए 2 अगस्त 1898 को अमरनाथ गुफा पहुंचे। वह एकवस्त्र में गुफा में अकेले गए। गुफा से निकलने के बाद वह एकदम नए रूप में थे। उन्होंने स्वयं सिस्टर निवेदिता को बताया कि उन्हें साक्षात शिव के दर्शन हुए हैं।
जम्मू, जागरण संवाददाता: स्वामी विवेकानंद ने भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व में अध्यात्म के साथ-साथ वैज्ञानिक चेतना के प्रसार में जुटे रहे और उनके शब्द आज भी युवाओं के लिए मंत्र बन गए हैं। सत्य की पहचान और लोगों की पीड़ा को समझने के लिए उन्होंने अखंड भारत के हर क्षेत्र का दौरा किया पर कश्मीर में उनका प्रवास स्वयं कई मायनों में अहम है। कश्मीर का प्राकृतिक सौंदर्य उन्हें लुभाता था। वह स्वयं कहते रहे कि अमरनाथ गुफा में साक्षात शिव से साक्षात्कार हुआ और इसे जीवन का सबसे श्रेष्ठ पल बताते रहे। उसके बाद शिव से अबूझ नाता जुड़ गया। वह हर समय कहते थे कि शिव उनके साथ हैं।
इतिहास के पन्नों को पलटने पर हम पाते हैं कि स्वामी विवेकानंद दो बार कश्मीर आए और दोनों ही दौरे कुछ खास थे। पहला दौरा 1897 में रहा। भले ही कश्मीर में कम समय ठहरे लेकिन उन्होंने वहां तपस्वियों और छात्रों से लंबी चर्चा की और वह उसके बाद मीरपुर होते रावलपिंडी चले गए।
इसके बाद वह दूसरी बार 1898 में आए और कश्मीर उनके मन में रच बस सा गया। यह दौरा उनके जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों में से एक है। वह जून से लेकर सितंबर माह तक यह ठहरे और प्रकृति के करीब रहकर ईश्वर के अनंत स्वरूप को पहचानने के निरंतर प्रयास करते रहे। इस दौरे में सिस्टर निवेदिता और अन्य यूरोपीय साथी भी उनके साथ थे। रामकृष्ण मिशन से स्वामी सुनिश्चिलानंद बताते हैं कि स्वामीजी स्वयं कहते थे कि अमरनाथ में उनका शिव से साक्षात्कार हुआ। वह यहां से लौटकर भी पूरी तरह शिवमय ही रहे और कहते रहे कि शिव उनके साथ हैं और वह उनसे बाते करते हैं। यह उनके लिए स्व को पहचानने जैसा था।
इतिहासविदों के अनुसार स्वामी विवेकानंद जुलाई माह के अंतिम सप्ताह में अमरनाथ यात्रा के लिए रवाना हुए। इस दौरान श्रीनगर से अनंतनाग होते हुए पहलगाम पहुंचे। वहां से चंदनबाड़ी, शेषनाग और पंचतरणी होते हुए 2 अगस्त को अमरनाथ गुफा पहुंचे। वह वहां एकवस्त्र में गुफा में अकेले गए। बताया जाता है कि गुफा से निकलने के बाद वह एकदम नए रूप में थे। उन्होंने स्वयं सिस्टर निवेदिता को बताया कि उन्हें साक्षात शिव के दर्शन हुए हैं। वापसी पर स्वामी नौका से अनंतनाग से श्रीनगर पहुंचे।
स्वामी निश्चलानंद के अनुसार रामकृष्ण उन्हें कहा करते थे कि स्वयं को जानो और शायद यह दौरा उनके लिए स्वयं से साक्षात्कार का भी था। उनका अध्यात्म सदा तर्क और विज्ञान पर केंद्रित रहा। वह स्वयं कहते थे कि ईश्वर को समझने का प्रयास करें।
जब मुस्लिम कन्या के चरण पखारे
स्वामी विवेकानंद ने श्रीनगर में रहते हुए चार साल की मुस्लिम नाव चलाने वाले की कन्या के चरण पखारे। वह वहां हाउसबोट में ठहरे थे। उनके अनुसार उसमें उन्हें देवी उमा का स्वरूप दिखता था। स्वामी सुनिश्चिलानंद के अनुसार स्वामीजी का अध्यात्म किसी धर्म की परिधि में नहीं बंधा था बल्कि एक राष्ट्र की भावना पर केंद्रित था। यही वजह है कि कन्या पूजन के लिए उस छोटी कन्या को चुना। उसमें ही उन्हें देवी का स्वरूप दिखा।