Jammu Kashmir: 30 नवंबर को है उत्पन्ना एकादशी का व्रत, भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करती है समस्त पापों का नाश

उत्पन्ना एकादशी व्रत पारण 01 दिसंबर बुधवार 2021 प्रातः 07.35 बजे से 09.02 मिनट तक द्वादशी तिथि के दिन होगा। धर्मग्रंथों के अनुसार एकादशी एक देवी हैं। भगवान विष्णु की शक्ति का एक रूप है और मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन ही यह प्रकट हुई थीं।

By Vikas AbrolEdited By: Publish:Sun, 28 Nov 2021 01:31 PM (IST) Updated:Sun, 28 Nov 2021 01:31 PM (IST)
Jammu Kashmir: 30 नवंबर को है उत्पन्ना एकादशी का व्रत, भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करती है समस्त पापों का नाश
व्रत रखने का फल अश्वमेघ यज्ञ और तीर्थ स्थानों में स्नान-दान आदि से मिलने वाले पुण्य से भी अधिक है।

जम्मू, जागरण संवाददाता। मार्गशीर्ष महीना बहुत पवित्र माना जाता है। मार्गशीर्ष माह कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। मार्गशीर्ष मास लगते ही मनुष्य को स्नान आदि करके शुद्ध रहना चाहिए। इंद्रियों को वश में कर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या तथा द्वेष आदि का त्याग कर भगवान का स्मरण करना चाहिए। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं। परंतु जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।

इस विषय में श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष के महंत रोहित शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने बताया कि धर्मग्रंथों में उत्पन्ना एकादशी का बहुत महात्मय बताया गया है। इस वर्ष उत्पन्ना एकादशी का व्रत 30 नवंबर मंगलवार को है। उत्पन्ना एकादशी व्रत पारण 01 दिसंबर बुधवार 2021, प्रातः 07.35 बजे से 09.02 मिनट तक द्वादशी तिथि के दिन होगा। धर्मग्रंथों के अनुसार एकादशी एक देवी हैं। भगवान विष्णु की शक्ति का एक रूप है और मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन ही यह प्रकट हुई थीं। इसलिए इस एकादशी का नाम उत्पन्ना एकादशी हुआ। एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी की पूजा-अर्चना करने से समस्त पापों का नाश होता है। दुखों से मुक्ति मिलती है।उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखने का फल अश्वमेघ यज्ञ और तीर्थ स्थानों में स्नान-दान आदि से मिलने वाले पुण्य से भी अधिक है।

इस प्रकार पूजन करें :

इस व्रत के पूजन के विषय में महंत रोहित शास्त्री ने बताया कि शारीरिक शुद्धता के साथ ही मन की पवित्रता का भी ध्यान रखना चाहिए। मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की दशमी को भोजन के बाद अच्छी तरह से दातून करनी चाहिए ताकि अन्न का एक भी अंश मुंह में न रह जाए।फिर अगले दिन यानी एकादशी के दिन प्रातः काल पति पत्नी संयुक्त रूप से लक्ष्मीनारायण की उपासना करें। इस दिन सुबह स्नान कर पूजा के कमरे या घर में किसी शुद्ध स्थान पर एक साफ चौकी पर भगवान लक्ष्मीनारायण की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद पूरे कमरे में एवं चौकी पर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें।

चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के कलश, घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। उसमें उपस्तिथ देवी-देवता, नवग्रहों, तीर्थों, योगिनियों और नगर देवता की पूजा आराधना करनी चाहिए। इसके बाद पूजन का संकल्प लें और वैदिक मंत्रो एवं विष्णु सहस्रनाम के मंत्रों द्वारा भगवान लक्ष्मीनारायण सहित समस्त स्थापित देवताओं की पूजा करें। इसमें आवाह्न, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधितद्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, तिल, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्रपुष्पांजलि आदि करें। व्रत की कथा करें अथवा सुने तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

इस मंत्र का 108 बार जाप करें।इस व्रत को निराहार या फलाहार दोनों ही तरीकों से रखा जा सकता है। व्रत रखने वाले शाम के समय भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद फल ग्रहण कर सकते हैं।लेकिन इस व्रत का पारण द्वादशी तिथि को किया जाता है। व्रत के अगले दिन द्वादशी पर किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर कुछ दान-दक्षिणा जरूर दें।

एकादशी के दिनों में किन बातों का खास ख्याल रखें

एकादशी के दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। ब्रहम्चार्य का पालन करना चाहिए। इन दिनों में शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए। व्रत रखने वालों को इस व्रत के दौरान दाढ़ी-मूंछ और बाल नाखून नहीं काटने चाहिए। व्रत करने वालों को पूजा के दौरान बेल्ट, चप्पल-जूते या फिर चमड़े की बनी चीजें नहीं पहननी चाहिए। काले रंग के कपड़े पहनने से बचना चाहिए। किसी का दिल दुखाना सबसे बड़ी हिंसा मानी जाती है। गलत काम करने से आपके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम होते हैं। 

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