Kashmir : 27 वर्ष पूर्व कट्टरपंथियों के निशाने पर रहे 700 वर्ष पुराने शीतल नाथ भैरव मंदिर में अब प्रहलाद पटेल ने की पूजा
श्रीनगर में 700 वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन शीतलनाथ महादेव का अभिषेक करने का सौभाग्य मिला। दहशतगर्दों द्वारा इस मंदिर को भी जलाया गया था। तीन दशक से बंद मंदिर को मेरे आग्रह पर प्रशासन ने खोला और मुझे दर्शन का अवसर मिला।
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो : कश्मीरी हिंदुओं के आस्था के प्रमुख केंद्र शीतल नाथ भैरव मंदिर में फिर से रौनक दिखाई दे रही है। 700 वर्ष पुराने इस मंदिर को करीब 27 वर्ष पूर्व कट्टरपंथियों ने आग लगा दी थी। जम्मू कश्मीर के दौरे के दौरान केंद्रीय जलशक्ति राज्य मंत्री प्रहलाद पटेल यहां पहुंचे और मंदिर प्रबंधकों से कपाट खुलवाए और भगवान शीतलेश्वर का जलाभिषेक किया। मंदिर में समय-समय पर पूजा होती रही है पर ज्यादातर समय यह मंदिर सुनसान ही रहता था।
श्रीनगर शहर में लालचौक से करीब दो किलोमीटर दूर करालखुड में स्थित शीतलेश्वर शीतलनाथ भैरव मंदिर कश्मीर के प्राचीण और पौराणिक धर्मस्थलों में एक है। श्रीनगर शहर में 13 भैरव हैं और उनमें शीतलेश्वर शीतलनाथ सबसे पवित्र व प्रमुख माने जाते हैं। नीलमत पुराण और राजतरंगिणी में भी इसका उल्लेख है। कश्मीर के मुस्लिम शासक जैनुल आबदीन के मुख्य इतिहासकार जोनराजा ने भी इसका जिक्र किया है।
केंद्रीय मंत्री ने मंदिर में पूजन के बाद ट्वीट किया कि श्रीनगर में 700 वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन शीतलनाथ महादेव का अभिषेक करने का सौभाग्य मिला। दहशतगर्दों द्वारा इस मंदिर को भी जलाया गया था। तीन दशक से बंद मंदिर को मेरे आग्रह पर प्रशासन ने खोला और मुझे दर्शन का अवसर मिला। इस मंदिर का महात्म्य राजतरंगिणी ग्रंथ में भी वर्णित है।
कश्मीरी पंडितों के प्रमुख आस्था का केंद्र : कश्मीर में आतंकवाद का दौर शुरू होने के बाद कश्मीरी हिंदुओं का पलायन हुआ तो यह मंदिर भी विरान हो गया। उससे पूर्व हर वर्ष वसंत पंचमी के दिन शीतलनाथ मंदिर में पूरे कश्मीर से श्रद्धालु जमा होते थे। यह मंदिर कश्मीरी पंडितों के लिए कितना अहम रहा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सामाजिक, राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा के लिए वह इसी परिसर में जुटते थे। मंदिर परिसर मे एक स्कूल भी है। इसी मंदिर में पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरहदी गांधी और महात्मा गांधी भी सभा कर चुके हैं। करीब 55 साल पहले कश्मीर में जब एक कश्मीरी पंडित महिला को अगवा किए जाने के खिलाफ इसी मंदिर से आंदोलन की शुरुआत हुई थी। सात आंदोलनकारी शहीद हुए थे। उनकी समाधि भी इसी मंदिर में है।
2010 में औपचारिक रूप से खुला था मंदिर : थोड़ा हालात सुधरे तो 2010 में यह मंदिर औपचारिक रूप से खुला और फिर इसमें हर साल वसंत पंचमी पर पूजा होने लगी। हालांकि पहले की तरह मेला नहीं लगता है, लेकिन कश्मीरी हिंदू मंदिर में जुटते हैं और पूजा करते हैं। इस वर्ष नवरेह पर्व के अवसर पर भी शीतलेश्वर भैरव में कश्मीरी पंडितों ने पूजा हुई थी। सामान्य दिनों में यह मंदिर वीरान ही रहता है।