Jammu Kashmir : नए जम्मू-कश्मीर में बदल रही सियासत की हवा, कश्मीर केंद्रित दलों का टूटा वर्चस्व

साल 1999 में नेशनल कांफ्रेंस को चुनौती देने के लिए पूर्व गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने पीडीपी का गठन किया और 2002 में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई। यह पहला अवसर था जब नेशनल कांफ्रेंस को कश्मीर में चुनौती मिली थी।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Wed, 13 Oct 2021 07:49 AM (IST) Updated:Wed, 13 Oct 2021 12:00 PM (IST)
Jammu Kashmir : नए जम्मू-कश्मीर में बदल रही सियासत की हवा, कश्मीर केंद्रित दलों का टूटा वर्चस्व
जम्मू में जनाधार वाले नेताओं को भाजपा में शामिल कर विपक्ष की चुनौती को ही खत्म कर दिया जाए।

जम्मू, राज्य ब्यूरो : जम्मू कश्मीर...इस प्रदेश की राजनीति दशकों तक दो से तीन दलों तक सिमटी रही, लेकिन गत बीस वर्षों खासकर अनुच्छेद 370 हटने के बाद राजनीतिक घटनाक्रम तेजी के साथ बदल रहा है। कश्मीर में जहां सबसे पुराने दल नेशनल कांफ्रेंस का वर्चस्व कम हो गया है। वहीं, जम्मू में भाजपा अपनी जमीन को मजबूत बनाने में लगी हुई है। बड़ी बात है कि कश्मीर में भी भाजपा ने अपना कमला खिलाया है। भाजपा की सक्रियता से कश्मीर में राष्ट्रवाद की खळ्शबू भी बहने लगी है। बदल रहे सियासी समीकरणों को परिसीमन के बाद होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक दलों की तैयारी के रूप में भी देखा जा रहा है। भाजपा की पूरी कोशिश है कि जम्मू कश्मीर इस बार उसका मळ्ख्यमंत्री बने।

जम्मू कश्मीर के इतिहास में 1947 से 2002 के बीच अगर अवामी नेशनल कांफ्रेंस की सरकार के 18 माह के कार्यकाल को छोड़ दें तो इन 50 से अधिक वर्षों में नेशनल काफ्रेंस और कांग्रेस की ही सत्ता रही है। भारतीय जनता पार्टी चुनाव लड़ती जरूर थी, लेकिन आधार सीमित था।साल 1999 में नेशनल कांफ्रेंस को चुनौती देने के लिए पूर्व गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने पीडीपी का गठन किया और 2002 में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई। यह पहला अवसर था जब नेशनल कांफ्रेंस को कश्मीर में चुनौती मिली थी। हालांकि, साल 2008 में नेशनल कांफ्रेंस ने विधानसभा चुनाव जीतकर फिर वापसी की, लेकिन 2014 के चुनावों ने जम्मू कश्मीर के सियासी समीकरण बदलने की नींव रख दी।

2014 के चुनावों में जम्मू संभाग में दबदबा रखने वाली कांग्रेस को भाजपा ने चुनौती दी तो कश्मीर में पीडीपी बड़ी पार्टी बनी। आश्चर्यजनक रूप से पीडीपी ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली। हालांकि, दोनों पार्टियों के बीच मतभेदों के चलते सरकार तो अधिक नहीं चल पाई। इन विधानसभा चुनावों में जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेंस को भी दो सीटें मिली थी। इस पार्टी का गठन साल 1978 में अब्दुल गनी लोन ने किया था।

राणा, सलाथिया को साथ लेना भाजपा की रणनीति : 2014 के विधानसभा चुनावों में जम्मू संभाग में 25 सीटें जीतने के बावजूद अपना मुख्यमंत्री नहीं बना पाने की टीस भाजपा में देखने को मिली थी। तब उसे अपनी चिर प्रतिद्वंद्वी पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनानी पड़ी। 89 सीटों पर हुए चुनावों में पीडीपी ने 28 सीटें जीती थीं। गठबंधन सरकार बनाने के बाद भाजपा ने कश्मीर में अपना जनाधार बढ़ाने का प्रयास किया, लेकिन यह चुनौती भरा रहा। यही कारण है कि वर्तमान में भाजपा ने जम्मू संभाग में अपना ध्यान अधिक केंद्रित कर रखा है। नेशनल कांफ्रेंस के देवेंद्र सिंह राणा और सुरजीत सिंह सलाथिया को पार्टी में शामिल कराना भाजपा की इसी रणनीति का हिस्सा है। राणा जनाधार वाले नेता माने जाते हैं। सलाथिया की भी अपनी पहचान है। भाजपा की रणनीति है कि जम्मू में जनाधार वाले नेताओं को पार्टी में शामिल कर विपक्ष की चुनौती को ही खत्म कर दिया जाए।

ऊधमपुर जिले में एक विधानसभा सीट बढ़ने की उम्मीद : पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा को ऊधमपुर में हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि, भाजपा प्रत्याशी को हराने वाले पवन गुप्ता पहले से ही भाजपा में ही शामिल हो चुके हैं। अब पूर्व विधायक बलवंत सिंह मनकोटिया के भी भाजपा में शामिल होने की चर्चा है। परिसीमन में ऊधमपुर जिले में एक विधानसभा सीट बढ़ने की उम्मीद है। भाजपा जम्मू, कठुआ, रियासी, ऊधमपुर पर अधिक ध्यान दे रही है। रियासी में पहले से ही भाजपा को चुनौती दे रहे सरार्फ सिंह नाग को पार्टी ने अपने पाले में लाकर जिला विकास परिषद का चेयरमैन बना दिया है। अपनी पार्टी ने भी उम्मीद बंधाई अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी का गठन हुआ। इसमें कांग्रेस, पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस को छोड़कर 31 वरिष्ठ नेता शामिल हो गए। पूर्व मंत्री अल्ताफ बुखारी की यह पार्टी कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस को सीधी चुनौती दे रही है।

जम्मू के लिए करना होगा काम : राजनीतिक विशेषज्ञ प्रो. हरि होम का कहना है कि जम्मू में भाजपा तभी मजबूत हो सकती है जब वह लोगों की समस्याओं का समाधान करें। किसी भी नेता के पार्टी में आने या जाने से फर्क नहीं पड़ता। लोगों को जो अपेक्षाएं हैं, उन्हें पूरा करना जरूरी है। हालांकि, उन्होने यह जरूर कहा कि नेशनल कांफ्रेंस जम्मू में कमजोर होगी। 

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