जीवनदायिनी बावलियों की अनदेखी पड़ सकती है भारी

संवाद सहयोगी ऊधमपुर जिले में बावलियों की अनदेखी कहीं लोगों पर भारी न पड़ जाए। ऐसा इस

By JagranEdited By: Publish:Tue, 03 Sep 2019 08:46 AM (IST) Updated:Wed, 04 Sep 2019 06:39 AM (IST)
जीवनदायिनी बावलियों की अनदेखी पड़ सकती है भारी
जीवनदायिनी बावलियों की अनदेखी पड़ सकती है भारी

संवाद सहयोगी, ऊधमपुर : जिले में बावलियों की अनदेखी कहीं लोगों पर भारी न पड़ जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि जब कभी पानी की आपूर्ति ठप हो जाती है तो यही बावलियों लोगों की प्यास बुझाती हैं। इतना ही नहीं, जिले में मौजूद बावलियां प्रकृति की धड़कन को सुन सकती हैं। जिन इलाकों में बावलियां साल भर पानी से लबालब रहती हैं, वहां पर्यावरण अन्य इलाकों की अपेक्षा बेहतर रहता है। वहां जंगल की हालत अच्छी होती है। जंगल के कटने और प्रदूषण के बढ़ने का सीधा असर बावलियों पर भी पड़ता है। इसलिए बावलियों के संरक्षण को हल्के में नगर के लोगों के लिए ही महंगा पड़ सकता है।

ऊधमपुर के कई इलाकों में बावलियां की हालत जिस तरह से खराब हो रही है, उसे देखकर लगता है कि अब बावलियों की उपेक्षा होने लगी है। लोगों को बावलियों की कराह नहीं सुनाई दे रही है। यही वजह है कि इलाके में कई प्राचीन बावलियां सूख चुकी हैं या फिर बेहद बदहाली की स्थिति में है। ऐसे में यह बिल्कुल साफ है कि प्रशासन और स्थानीय लोगों की यह लापरवाही भविष्य में इन इलाकों में पानी के गंभीर संकट को जन्म दे सकती है। हालत तो यह है कि कई राजा-महाराजाओं द्वारा बनवाई गई ऐतिहासिक बावलियां भी लुप्त होने के कगार पर पहुंच गई हैं तो कई बावलियां अतिक्रमण की शिकार हैं।

ऊधमपुर जिले में प्राचीन समय में जलापूíत के लिए हजारों की संख्या में पानी की बावलियां थी। इनका निर्माण राजा-महाराजाओं और गणमान्य लोगों ने जनहित में करवाया था। क्षेत्र में यह बावलियां जल संरक्षण का जीता-जागता उदाहरण रही हैं। कई बावलियों पर लगाई गई मूर्तियों का शिल्प भी लाजवाब है। ऐसे में पुरातत्व विभाग को इनके संरक्षण के लिए कदम उठाना चाहिए। जल संरक्षण के लिए धर्म-अध्यात्म से जोड़ा

जल संरक्षण के लिए पुरखों ने बावलियों को धर्म और अध्यात्म से जोड़ने का काम किया। इनकी दीवारों व पत्थरों में देवी-देवताओं के चित्र बनाए गए हैं। जिनमें प्रकृति के सभी देवताओं को मुख्य रूप से स्थान दिया गया है। जिससे राहगीर देवता के रूप में जल की पूजा भी करें और उसकी पवित्रता भी बनाएं रखें। पत्थरों से बनाई गई हैं बावलियां

बावलियां पत्थर पर पत्थर रखकर बनाई गई हैं। पत्थरों को आपस में जोड़ने के लिए सीमेंट, चूना व किसी अन्य पदार्थ का इस्तेमाल नहीं किया गया है। जिससे पत्थरों के बीच से पानी रिस-रिसकर बावली में इकट्ठा हो सके। कई बावलियां यादगार में बनवाई गई हैं। उनके नाम अंकित होने के कारण उनके वंशज इनका रखरखाव करते हैं। पत्थरों पर पुरानी लिपि टाकरी, संस्कृत और कई जगहों पर देवनागरी में ब्योरा अंकित किया गया है। यह हैं प्रमुख बावलियां

देविका तट स्थित रानी बावली, गंगेड़ा में राजा रानी, मंगू की बावली, सांकन बावली, बड़ी बां, बिल्लन बावली, सलमेड़ी बावली, डबरेह, लड्डन की बावली प्रमुख हैं। अकेले लड्डन में बीस बावलियां हैं।

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ऐतिहासिकक बावलियां दुर्दशा की शिकार हैं। राजाओं ने जल का महत्व को समझ कर कई ऐतिहासिक बावलियों का निर्माण करवाया। बावलियों में जड़ित शिलालेख हमारी सांस्कृतिक धरोहरों और उस समय के इतिहास को उजागर करते हैं। ब्रिटिश राज में कई बावलियों में नल लगा दिए गए थे। इस ऐतिहासिक धरोहरों को बचाने के लिए प्रशासन को पहल करनी चाहिए। इलाके अधिकांश लोग जलापूíत के लिए बावलियों पर ही निर्भर हैं। जब पीएचई की सप्लाई बाधित होती है तो जिलेभर के लोग बावलियों के पानी के अपना काम चलाते हैं। इसलिए जिले की जीवन-रेखा इन बावलियों को संरक्षित किया जाना बहुत जरूरी है।

अनिल पाबा, सामाजिक कार्यकर्ता

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लुप्त हो रही बावलियों के संरक्षण के लिए अभी तक कोई नहीं आया है। जिस क्षेत्र में बावलियां लुप्त हो रही हैं या क्षतिग्रस्त हैं, वहां के लोगों को इस संबंध में विभाग के पास शिकायत दर्ज करानी चाहिए। जिससे इस दिशा में सरकार से फंड लेकर इनका संरक्षण किया जा सके। ऊधमपुर जिले में पुरातात्विक महत्व के चार भवन ही विभाग के संरक्षण में हैं। पुरातात्विक महत्व की यदि कोई बावली है तो उसके संरक्षण की योजना भी तैयार की जाएगी।

-डॉ. संगीता शर्मा, सहायक निदेशक, पुरातत्व विभाग, जम्मू कश्मीर।

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