Jammu Kashmir: संस्कृति की समृद्धि के लिए सरकार को सांस्कृतिक नीति बनानी चाहिए

जम्मू कश्मीर के रंगमंच को दुनिया भर में पहचान दिलाने के साथ सांस्कृतिक राजनयिक के रूप में दक्षिण अफ्रीका के साथ सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत बनाने में जुटे पद्मश्री बलवंत ठाकुर का कहना है कि कला-संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए सरकार को चाहिए कि एक सांस्कृतिक नीति बनाए।

By lokesh.mishraEdited By: Publish:Mon, 30 Nov 2020 07:00 AM (IST) Updated:Mon, 30 Nov 2020 01:12 PM (IST)
Jammu Kashmir: संस्कृति की समृद्धि के लिए सरकार को सांस्कृतिक नीति बनानी चाहिए
पद्मश्री बलवंत ठाकुर ने कहा कि कला-संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए सांस्कृतिक नीति जरूरी है

जम्मू कश्मीर के रंगमंच को दुनिया भर में पहचान दिलाने के साथ सांस्कृतिक राजनयिक के रूप में दक्षिण अफ्रीका के साथ सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत बनाने में जुटे पद्मश्री बलवंत ठाकुर का कहना है कि कला-संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए सरकार को चाहिए कि एक सांस्कृतिक नीति बनाए। दक्षिण अफ्रीका के साथ सांस्कृतिक संबंधों को और प्रगाढ़ बनाने के लिए वहां जम्मू कश्मीर महोत्सव आयोजित करने की योजना थी। कोरोना के कारण यह संभव नहीं हो सकी। दैनिक जागरण संवाददाता अशोक शर्मा ने रंगमंच के भविष्य और दक्षिण अफ्रीका के साथ सांस्कृतिक संबंधों पर बलवंत ठाकुर से बातचीत की। प्रस्तुत है प्रमुख अंश-

दक्षिण अफ्रीका में भारत के सांस्कृतिक राजनयिक रहते हुए क्या उपलब्धियां रहीं?

भारत में प्राचीन काल से ही लोक कलाओं की समृद्ध परंपरा रही है। समय के थपेड़ों से इनका प्रभाव कम व ज्यादा भले ही हुआ, लेकिन समाप्त कभी नहीं हुआ। मैं भारतीय कलाओं को वहां के लोगों के बीच लोकप्रिय बनाने का प्रयास कर रहा हूं। कोरोना के कारण हमारे कई कार्यक्रम नहीं हो सके, जो तय थे। अब दक्षिण अफ्रीका में जम्मू-कश्मीर महोत्सव, उत्तर पश्चिम महोत्सव करवाने की योजना है। यदि कोरोना न होता तो जम्मू कश्मीर के विलय दिवस पर दक्षिण अफ्रीका में यह महोत्सव होता। इन महोत्सवों के जरिये से हम दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि जम्मू कश्मीर की जो तस्वीर दिखाई जाती है, हम उससे हटकर समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के भी मालिक हैं।

भारतीय संस्कृति की कौन से गतिविधियां वहां हो रहीं?

मैं स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र का निदेशक भी हूं। केंद्र के माध्यम से समझाया जा रहा है कि भारत ने दुनिया को क्या दिया। योग की लोकप्रियता दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। ङ्क्षहदू संस्कृति, संस्कृत, हिंदी पढऩे वालों की संख्या बढ़ रही है। भारतीय संगीत, नृत्य सीखने में लोगों का रुझान बढ़ रहा है। जोहान्सबर्ग में स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र में भारतीय संस्कृति की दस हजार से ज्यादा किताबें हैं। योग की नियमित कक्षाएं चलती हैं। गायन, नृत्य की कक्षाएं चलती हैं। भारतीय कलाकारों की कार्यशालाएं होती हैं।

दक्षिण अफ्रीका के लोगों का कला-संस्कृति से कितना जुड़ाव है?

यहां लोग कला प्रेमी हैं। नृत्य, संगीत से अधिकतर लोगों का जुड़ाव है। उनका दक्षिण अफ्रीका विरासत दिवस राष्ट्रीय पर्व जैसा होता है। हर कोई पारंपरिक वेशभूषा में दिखता है। मैं तो कहूंगा कि भारत में विरासत दिवस को भी अच्छी तरह मनाया जाना चाहिए।

 कला के क्षेत्र में भारत को कहां देखते हैं?

यहां सांस्कृतिक नेतृत्व की कमी है। प्रचार-प्रसार की कमी है। जिस तरह लोक सेवा आयोग अधिकारियों की नियुक्ति करता है, उसी तरह कला प्रबंधकों की नियुक्तियां होनी चाहिए। कला सिर्फ बिकाऊ चीज नहीं है। इस पर जब तक गर्व नहीं होगा, हम कला के क्षेत्र में विश्व गुरु नहीं बन सकते। जो चीजें हमारे पास हैं, दुनिया उनकी तलाश में है। हमें अपनी सांस्कृतिक मजबूती का एहसास नहीं है। सरकार को चाहिए कि कला को लेकर सांस्कृतिक नीति बनाए।

जानें कौन हैं बलवंत ठाकुर वर्ष 1960 में जिला रियासी के दूरदाराज गांव बकल में जन्में बलवंत ठाकुर देश के सबसे रचनात्मक थिएटर निर्देशकों में से एक हैं, जिन्होंने देश विदेश में अपनी प्रस्तुतियों जम्मू के रंगमंच को दुनिया के शिखर पर पहुंचाया। रंगमंच निर्देशन के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हैं। उन्होंने सौ ज्यादा राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय नाट्य समारोह में भगा लिया है। थिएटर की दुनिया में वे जादूई व्‍यक्तिव हैं। बलवंत ठाकुर ने वर्ष 1983 में सर्वश्रेष्ठ प्रोडक्शन के लिए राज्य अकादमी पुरस्कार जीता और फिर 1984, 1985 में सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियों के लिए राज्य अकादमी पुरस्कार जीतने की परंपरा को जारी रखा।  1992 में उन्हें रंगमंच में निर्देशन के लिए देश के एक और प्रतिष्ठित पुरस्कार संस्कृती अवार्ड से अलंकृत किया गया, जो तीन साल में एक बार किसी थिएटर व्यक्ति को दिया जाता है। उसी वर्ष उन्हें अपनी शोध परियोजना के लिए फोर्ड फाउंडेशन, यूएसए, ग्रांट अवार्ड मिला। उन्होंने अब तक 12 नाटक लिखे हैं। रंगमंच में योगदान के लिए उन्हें देश की कई प्रतिष्ठित संस्थाएं सरकारे सम्मानित कर चुकी हैं। संस्थाएं सम्मानित कर चुकी हैं। वर्ष 2005 में उन्हें महाराजा गुलाब सिंह मेमोरियल अवार्ड-2018 से समनित किया। उन्हें 2013 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।वह आठ वर्षो तक जम्मू-कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी के सचिव रहे। उस दौरान राज्य की झांकी को पांच बार पहला पुरस्कार मिला। वह आइसीसीआर के क्षेत्रीय निर्देशक रहे और इस समय भारत के दक्षिण अफ्रीका में सांस्कृतिक राजनायक हैं।

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