एक अनाथ लड़की की पूरी पढ़ाई का खर्च उठा रही थीं सुपिंदर कौर, समाज के लिए थीं हमदर्द

वह समाज के प्रति इतनी संवेदनशील थीं कि एक अनाथ मुस्लिम लड़की की पीड़ा सुनकर उन्होंने उसकी पढ़ाई का पूरा खर्च उठा लिया। आतंकियों ने एक तरह से सुपिंदर के साथ-साथ उस अनाथ लड़की का भी कत्ल कर दिया।

By Lokesh Chandra MishraEdited By: Publish:Fri, 08 Oct 2021 12:50 PM (IST) Updated:Fri, 08 Oct 2021 12:53 PM (IST)
एक अनाथ लड़की की पूरी पढ़ाई का खर्च उठा रही थीं सुपिंदर कौर, समाज के लिए थीं हमदर्द
डार ने कहा कि बेशक सुुपिंदर से खून का रिश्ता नहीं था, लेकिन मेरे परिवार का हिस्सा थीं।

जम्मू, जेएनएन : आतंकियों ने भले ही नाम और जाति पूछ कर शिक्षकों की हत्या की हो, लेकिन प्रिंसिपल सुपिंदर कौर के लिए इंसानियत से बड़ा कोई कौम नहीं था। वह समाज के प्रति इतनी संवेदनशील थीं कि एक अनाथ मुस्लिम लड़की की पीड़ा सुनकर उन्होंने उसकी पढ़ाई का पूरा खर्च उठा लिया। आतंकियों ने एक तरह से सुपिंदर के साथ-साथ उस अनाथ लड़की का भी कत्ल कर दिया। सुपिंदर जिस मोहल्ले में रहती थीं, वहां आसपास के लोगों के लिए हमदर्द बनी हुई थी। यही वजह है कि उनके जाने का मलाल सबको है। एक मुस्लिम परिवार ही उसके मायके की तरह था।

श्रीनगर के डाउनटाउन इलाके में पड़ने वाले बॉयज हायर सेकेंडरी स्कूल ईदगाह में आतंकियों के शिकार हुई स्कूल की प्रिंसिपल सुपिंदर कौर हजूरीबाग मोहल्ले में रहतीं थीं। उसने पड़ोस में रहने वाले शौकत अहमद डार का परिवार ही सुपिंदर के मायके की तरह था। शौकत को उन्होंने भाई बना रखा था। कभी एक-दूसरे को नहीं लगा कि वे दोनों अलग-अलग कौम से ताल्लुक रखते हैं। हर दुख-सुख के सागिर्द बनते रहे। स्कूल जाते वक्त भी शौकत के दरबाजे पर आवाज लगाकर ही जाती थी कि मैं स्कूल जा रही हूं। आते-आते भी बता देतीं कि आ गई हूं। सुपिंदर के जाने से शौकत बुरी तरह आहत है। वीरवार को दिनभर उसके आंसू नहीं सूखे।

लैब टेक्नीशियन का काम कने वाले शौकत अहम डार और सुपिंदर कौर के पति बचपन से साथ पढ़े-बढ़े। आज भी रोज दोनों साथ ही मॉर्निंग वाॅक पर निकलते हैं। डार ने कहा कि बेशक सुुपिंदर से खून का रिश्ता नहीं था, लेकिन मेरे परिवार का हिस्सा थीं। वह इतना दयावान थी कि अपने वेतन का आधा हिस्सा समाजिक कार्यों पर ही खर्च कर देती थीं। उन्होंने बताया कि छानापोरा हायर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ने वाली एक छात्रा के स्कूल, पढ़ाई और ड्रेस का खर्च सुपिंदर ही वहन कर रही थीं। क्योंकि वह लड़की अनाथ है। पहले वह अपनी मौसी के पास रहती थी। मौसी की शादी के बाद उसकी पढ़ाई प्रभावित होने लगी। इसकी जानकारी जब सुपिंदर को मिली तो लड़की का अभिभावक बन बैठी।

डार ने कहा- सुपिंदर ने मुझे कहा कि उस लड़की को तुम अपने घर पर रखो और मैं 20 हजार रुपये प्रति माह उसके खर्च केे लिए दूंगी। उस समय सुपिंदर छानापोरा हायर सेकेंडरी स्कूल में पोस्टेड थीं। उनका तबादला ईदगाह हायर सेकेंडरी स्कूल हो गया, लेकिन वह उस लड़की की पढ़ाई के लिए और उसे एक अच्छा इंसान बनाने के लिए खर्च अभी तक दे रही थीं। रोते हुए डार ने कहा कि आतंकियों ने सुपिंदर ही नहीं, उस मासूम लड़की, इंसानियम और कश्मीरियत की हत्या कर थी।

chat bot
आपका साथी