लद्दाख की सोवा रिगपा चिकित्सा पद्धति में कैंसर सहित हर बीमारी का इलाज संभव, जानिए इसमें और क्या है खास!

लद्दाख में यह प्रचलित प्राचीन उपचार पद्धति तिब्बती या फिर आमचि के नाम से जानी जाती है। लद्दाख के अलावा इस चिकित्सा प्रणाली का प्रयोग हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति सिक्किम अरुणाचल प्रदेश और दार्जिलिंग पश्चित बंगाल में किया जा रहा है।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Thu, 21 Nov 2019 06:13 PM (IST) Updated:Fri, 22 Nov 2019 03:31 PM (IST)
लद्दाख की सोवा रिगपा चिकित्सा पद्धति में कैंसर सहित हर बीमारी का इलाज संभव, जानिए इसमें और क्या है खास!
इसमें पारंपरिक चीनी चिकित्सा विज्ञान के कुछ सिद्धांत भी शामिल हैं।

जम्मू, राहुल शर्मा। केंद्र शासित लद्दाख में आयुष मंत्रालय के अधीन स्वायत्तशासी संस्थान के रूप में राष्ट्रीय सोवा रिगपा संस्थापना की मंजूरी से चर्चा में आई सोवा रिगपा पद्धति लद्दाख के लोगों के लिए कोई नई नहीं है। लद्दाख में अभी भी पचास से साठ प्रतिशत लोग इसी पद्धति से अपना इलाज करवाते हैं। बहुत से ऐसे वैद्य हैं जोकि इस पद्धति में प्रशिक्षित हैं। इस समय पूरे लद्दाख क्षेत्र में 300 से अधिक वैद्य इस पद्धति से मरीजों का इलाज कर रहे हैं। यहां के सरकारी अस्पतालों में भी यह नियुक्त हैं और इसकी दवाइयां भी अस्पतालों में उपलब्ध हैं। बौद्ध लोग इस पद्धति पर सबसे अधिक विश्वास करते हैं और इससे इलाज करवाने को प्राथमिकता देते हैं। यह एक प्रभावी पद्धति है और इससे हर बीमारी का इलाज संभव है। नेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट फार सोवा रिगपा लेह में प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर डॉ. पदमा गुरमत ने भी इसकी पुष्टि की है।

उनका कहना है कि लद्दाख में पहले से ही इस पद्धति पर रिसर्च चल रही है। अब यह संस्थान मंजूर होने से इसमें रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा तथा प्रशिक्षित लोगों की संख्या भी बढ़ेगी। देशभर में इसका प्रचार-प्रसार होगा। सनद रहे कि केंद्र शासित लद्दाख में आयुष मंत्रालय के अधीन स्वायत्तशासी संस्थान के रूप में राष्ट्रीय सोवा रिगपा संस्थापना कां मंजूरी देकर केंद्र सरकार ने लद्दाख वासियों की बहुप्रतीक्षित मांग को पूरा किया है। लद्दाख की स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा देने के मद्देनजर सरकार द्वारा लिए गए इस फैसले से सोवा-रिगपा प्राचीन औषधि प्रणाली को प्रोत्साहन मिलेगा। बर्फीले रेगिस्तान लद्दाख की राजधानी लेह में 47.25 करोड़ रुपये की लागत से राष्ट्रीय सोवा-रिगपा संस्थान की स्थापना की जाएगी।

राष्ट्रीय सोवा-रिगपा संस्थान की स्थापना का मुख्य उद्देश्य इस प्राचीन चिकित्सा प्रणाली के पारम्परिक ज्ञान को आधुनिक विज्ञान, उपकरणों और प्रौद्योगिकी के साथ जोड़ना है। यही नहीं इससे सोवा-रिगपा सम्बंधी विभिन्न विषयों की शिक्षा और अनुसंधान को प्रोत्साहन देने में भी मदद मिलेगी।

डॉ पदमा ने बताया कि यह चिकित्सा पद्धति भगवान बुद्ध ने 2500 वर्ष पहले प्रारंभ की थी। उनके बाद प्रसिद्ध भारतीय विद्वानों जीवक, नागार्जुन, वाग्भट्ट एवं चंद्रानंदन ने इसे आगे बढ़ाया। सोवा-रि‍गपा प्रणाली यद्यपि बहुत प्राचीन है और सितंबर 2010 में भारत सरकार ने इसे मान्‍यता प्रदान की गई थी। चीन, भुटान, मंगोलिया के बाद भारत ऐसा चौथा देश है जिसने सोवा रिगपा चिकित्सा प्रणाली को मान्तया प्रदान की। यह प्रणाली अस्‍थमा, ब्रोंकि‍टि‍स, अर्थराइटि‍स जैसी पुराने रोगों के लि‍ए प्रभावशाली मानी गई है।

लद्दाख में आमचि के नाम से जानी जाती है सोवा-रिगपा

लद्दाख में यह प्रचलित प्राचीन उपचार पद्धति तिब्बती या फिर आमचि के नाम से जानी जाती है। लद्दाख के अलावा इस चिकित्सा प्रणाली का प्रयोग हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और दार्जिलिंग पश्चित बंगाल में किया जा रहा है। सोवा-रिग्पा के सिद्धांत और प्रयोग आयुर्वेद की तरह ही हैं। इसमें पारंपरिक चीनी चिकित्सा विज्ञान के कुछ सिद्धांत भी शामिल हैं।

भारत में छठी चिकित्सा प्रणाली है सोवा रिगपा

डॉ. पदमा गुरमत ने बताया कि सोवा रिगपा छठी प्राचीन चिकित्सा प्रणाली है जिसे सरकार द्वारा मान्यता दी गई है। इससे पहले यह पिता से पुत्र तक चलने वाली चिकित्सा प्रणाली थी। लेकिन अब एक अमचि बनने के लिए 5 साल का कोर्स पूरा करना पड़ता है। उन्होंने यह भी बताया कि सोवा-रि‍गपा का मूल सि‍द्धांत है। इसमें इलाज के लि‍ए शरीर और मन का वि‍शेष महत्‍व है। यही नहीं सोवा-रि‍गपा मानव शरीर के नि‍र्माण में पांच भौति‍क तत्‍वों, वि‍कारों की प्रकृति‍ तथा इनके समाधान के उपायों के महत्‍व पर भी बल देता है।

देशभर में 50 से अधिक हैं चिकित्सा केंद्र

हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के अलावा उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में सोवा-रि‍गपा के कुछ शैक्षणि‍क संस्‍थान हैं। मैन-त्सी-खंग मेडिकल एंड एस्ट्रो कॉलेज धर्मशाला सोवा रिगपा में रूची रखने वाले लद्दाखी व विदेशी युवाओं के लिए सालाना लद्दाख में कार्यशाला का आयोजन भी करते हैं। जिसमें तिब्बतन चिकित्सा प्रणाली के बारे में विस्तृत जानकारी दी जाती है। आज यह नतीजा है कि लद्दाख, हिमाचल, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, दार्जिलिंग (पश्चित बंगाल) सहित देश के अन्य राज्यों में इसके पचास से अधिक चिकित्सा केंद्र हैं।

लद्दाख के दूरदराज इलाकों में विकसित है यह चिकित्सा पद्धति

डॉ. पदमा गुरमत ने बताया कि लद्दाख के नोबरा, द्रबुक, नयोमा आदि दूरदराज के इलाकों में रहने वाले लोगों तक सोवा रिगपा के माध्यम से ही चिकित्सा सुविधा पहुंचाई जा रही है। इस विद्या में नब्ज, जीभ, आंखों, सुबह के यूरिन टेस्ट व मरीज से बातचीत के आधार पर रोग का पता लगाया जाता है। इस पद्धति से लगभग हर बीमारी का इलाज किया जाता है। 17 अलग-अलग प्रकार की दवाइयों, चूर्ण और सिरप के आधार पर बीमारियों का इलाज किया जाता है। डॉक्टर यूरिन को विशेष उपकरण से बार-बार हिलाता है, इस दौरान उसमें जो बुलबुले बनते हैं, उनके आकार या फिर गंध व रंग से बीमारी का पता लगाया जाता है। यही नहीं इसकी दवाइयां भी लद्दाख के पहाड़ी इलाकों, जंगलों में उगने वाली विशेष जड़ी-बुटियों से तैयार होती है। लद्दाख की मिट्टी में अधिक मिनरल और खनिज तत्व होते हैं। कुछ दवाइयों में तो सोना-चांदी और मोतियों की भस्म भी मिलाई जाती है। 

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