कश्मीर केे रक्षक ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह को 75वें शहीदी दिवस पर किया याद, सुनाई शहादत की कहानी

पांच दिन तक दुश्मन को रोकने वाले ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह ने लड़ने के साथ दुश्मन को यह विश्वास भी दिलाया कि उन्हें रोकने के लिए सामने बहुत बड़ी फौज खड़ी है। उन्होंने पाकिस्तानी सेना को आगे बढ़ने से राेकने के लिए उड़ी का पुल उड़ा दिया।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Tue, 26 Oct 2021 01:30 PM (IST) Updated:Tue, 26 Oct 2021 01:30 PM (IST)
कश्मीर केे रक्षक ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह को 75वें शहीदी दिवस पर किया याद, सुनाई शहादत की कहानी
ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह ने अपने सत्तर सैनिकों के साथ वीरगति पाई।

जम्मू, राज्य ब्यूरो: मुट्ठी भर सैनिकों के साथ कश्मीर पर कब्जा करने की दुश्मन की साजिश को नाकाम बनाने वाले महाराजा की फौज के चीफ ऑफ स्टाफ महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह को मंगलवार उनके 75वें शहीदी दिवस पर सरहदों की रक्षा कर रही सेना के साथ कृृतज्ञ देशवासियों ने श्रद्धांजलि दी।

जम्मू में उनके 75वें शहीदी दिवस पर ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह चौक पर हुए कार्यक्रम में सेना की 9 कोर के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल पी अनंथनारायण के साथ 26 डिव की जीओसी मेजर जनरल नीरज गोसांइ ने हिस्सा लेकर कश्मीर केे रक्षक को श्रद्धांजलि दी। कार्यक्रम का आयोजन करने वाली जम्मू कश्मीर एक्स सर्विस लीग के प्रधान मेजर जनरल गोवर्धन सिंह जम्वाल ने कहा कि महाराजा हरि सिंह ने अपनी फौज के कमांडर ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह के नेतृत्व में फोज की टुकड़ी को अंतिम गोली अंतिम व्यक्ति का आदेश देकर उड़ी में दुश्मन को रोकने के लिए भेजा था।

देश के इस सपूत ने खून की अंतिम बूंद तक दुश्मन को कश्मीर के उड़ी में रोककर देश से जम्मू-कश्मीर के विलय काे संभव किया था। ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह एक कुशल सैन्य रणनीतिकार थे, जिन्होंने 75 साल पहले अपने चंद साथियों के साथ कई गुणा अधिक दुश्मन को भारतीय सेना के कश्मीर में कदम रखने तक रोके रखा। पाकिस्तान ने कबायलियों की आड़ में 22 अक्टूबर को आपरेशन गुलमर्ग के तहत कश्मीर कब्जाने के लिए हमला बोल दिया था। महाराजा हरि सिंह की फौज के चीफ ऑफ स्टाफ बिग्रेडियर राजेंद्र सिंह ने 100 सैनिकों की टुकड़ी के साथ पांच हजार दुश्मन सैनिकों को उड़ी सेक्टर में रोकने के लिए मोर्चा संभाल लिया था।

पांच दिन तक दुश्मन को रोकने वाले ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह ने लड़ने के साथ दुश्मन को यह विश्वास भी दिलाया कि उन्हें रोकने के लिए सामने बहुत बड़ी फौज खड़ी है। उन्होंने पाकिस्तानी सेना को आगे बढ़ने से राेकने के लिए उड़ी का पुल उड़ा दिया। उड़ी में 26 अक्टूबर को रात 2 बजे अपने कई साथियों के साथ प्राणों की आहूति देने वाले ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह ने हमला नाकाम करने के लिए भारतीय सेना को 27 अक्टूबर को कश्मीर पहुंच जाने का समय दिया।

इस मौके पर विचार व्यक्त करते हुए वक्ताओं ने बताया कि पाकिस्तान सेना की शह पर 22 अक्टूबर 1947 में हुए कबाइली हमले को नाकाम बनाने के लिए महाराजा हरि सिंह की फौज के कमांडर महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह ने सौ सैनिकों की टुकड़ी के साथ पांच हजार दुश्मनों को अंतिम सांस तक उड़ी में रोक रखा था। ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह ने अपने सत्तर सैनिकों के साथ वीरगति पाई। उन्हें उस समय का सबसे सर्वोच्च सम्मान महावीर चक्र दिया गया।

इधर 26 अक्टूबर की रात को ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह शहीद हुए, उधर अगले दिन सुबह पांच बजे सेना की एक सिख बटालियन की दो कंपनियां वायुसेना के विमान से लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत के नेतृत्व में श्रीनगर पहुंच गईं। उन्होंने श्रीनगर एयरपोर्ट की सुरक्षा सुनिश्चित की। इसके बाद सेना की अन्य कंपनियां भी श्रीनगर पहुंच गई। 

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