माघी पूर्णिमा के अवसर पर साहिब बंदगी संत आश्रम में सत्संग

माघी पूर्णिमा के अवसर पर रांजड़ी में स्थित साहिब बंदगी संत आश्रम में सत्संग और भंडारे का आयोजन किया गया। इसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 28 Feb 2021 08:15 AM (IST) Updated:Sun, 28 Feb 2021 08:15 AM (IST)
माघी पूर्णिमा के अवसर पर साहिब बंदगी संत आश्रम में सत्संग
माघी पूर्णिमा के अवसर पर साहिब बंदगी संत आश्रम में सत्संग

जागरण संवाददाता, जम्मू : माघी पूर्णिमा के अवसर पर रांजड़ी में स्थित साहिब बंदगी संत आश्रम में सत्संग और भंडारे का आयोजन किया गया। इसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। इस मौके पर सतगुरु मधु परमहंस ने कहा कि गुरु रविदास जी महाराज उन संतों में से एक थे, जिन्होंने संतमत के वंश का अनुसरण किया, जैसा कि संत कबीर ने शुरू किया था।

उन्होंने कहा कि कबीर साहिब पहले संत हैं और उन्हें भारत में संतमत वंश का विस्तार करने का श्रेय दिया जाता है। संतमत परंपरा ने पृष्ठभूमि बनाई जिसके खिलाफ कई आधुनिक और मध्यकालीन संप्रदाय उत्पन्न हुए। सभी संतों ने अनिवार्य रूप से उन्हीं उपदेशों का प्रचार किया, क्योंकि उनके मूल स्त्रोत वही थे जो कबीर ने पहले ही प्रचारित कर दिए थे। दूसरे संत भी सतगुरु कबीर साहब ने जो कुछ सिखाया है, उससे वे कुछ नया या अलग सिखाने का दावा नहीं करते।

साहिब जी ने कहा कि कबीर के काल में जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता सिर चढ़ कर बोलती थी। कबीर साहिब ने जाति भेद को स्वीकार करने या दर्शन के छह स्कूलों के अधिकार को मान्यता देने से इनकार कर दिया। अंधविश्वास और धार्मिक पाखंड के खिलाफ मजबूती से खड़े रहे। उन्होंने कहा कि भक्ति के बिना धर्म का कोई महत्व नहीं। उनके पास धर्म के लिए कोई प्राथमिकता नहीं थी। उन्होंने जो शिक्षा दी, उसे सभी धर्माें के अनुयायियों ने सराहा। उन्होंने निडर होकर बात की और अपने श्रोताओं को खुश करने के लिए इसे कभी अपना उद्देश्य नहीं बनाया। आज भी संत कबीर की शिक्षा की प्रासंगिकता बनी हुई है। कोशिश होनी चाहिए कि हम उनके बताए रास्तों का पालन करें।

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