Jammu Kashmir: रंगमंच की कठोरता लोक कलाकारों के लिए जरूरी नहीं, उन्हें अपने तरीके से काम करने देना चाहिए : सजल

पश्चिम बंगाल के थिएटर अभिनेता निर्देशक और लाइट डिजाइनर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के पूर्व छात्र सजल मंडल ने नटरंग जम्मू के नेशनल थिएटर टॉक शो यंग वॉयस ऑफ थिएटर में कहा कि रंगमंच एक व्यक्ति को अधिक जागरूक बनाता है।

By Vikas AbrolEdited By: Publish:Thu, 24 Jun 2021 06:03 PM (IST) Updated:Thu, 24 Jun 2021 06:03 PM (IST)
Jammu Kashmir: रंगमंच की कठोरता लोक कलाकारों के लिए जरूरी नहीं, उन्हें अपने तरीके से काम करने देना चाहिए : सजल
सजल मंडल ने बचपन से ही थिएटर की शुरुआत कर दी थी।

जम्मू, जागरण संवाददाता : पश्चिम बंगाल के थिएटर अभिनेता, निर्देशक और लाइट डिजाइनर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के पूर्व छात्र सजल मंडल ने नटरंग जम्मू के नेशनल थिएटर टॉक शो यंग वॉयस ऑफ थिएटर में कहा कि रंगमंच एक व्यक्ति को अधिक जागरूक बनाता है।

शहरी और ग्रामीण जीवन शैली को नजदीक से समझने का मौका देता है। रंगमंच जीवन के विभिन्न पहलुओं के साथ जीना दर्शाता है। डिजाइनिंग को लेकर उन्होंने कहा कि कभी-कभी परिस्थितयां डिजाइन में नया आयाम जोड़ती हैं। मंच-सेटिंग को एक निश्चित अर्थ देने के लिए पूर्व नियोजित होता है लेकिन यह भी सच है कि कभी-कभी परिस्थितियां डिजाइन में एक नया आयाम जोड़ती हैं। उनका सुझाव है कि लोक कलाकारों के साथ काम करते समय, कठोर दृष्टिकोण को छोड़ना होगा क्योंकि निर्देशक जितना अधिक लचीला होता है। उतना ही वह उनसे निकाल सकता है।

सजल मंडल का परिचय करवाते हुए नटरंग निदेशक बलवंत ठाकुर ने बताया कि उन्होंने समकालीन रंगमंच के क्षेत्र में अपने उत्कृष्ट योगदान के माध्यम से अभिनेता, निर्देशक, डिजाइनर, तकनीशियन के रूप में खुद के लिए एक विशिष्ट नाम अर्जित किया है।

सजल मंडल ने बचपन से ही थिएटर की शुरुआत कर दी थी। रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय, कोलकाता से रंगमंच निर्देशन में पढ़ाई पूरी करने के बाद, सजल ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली में प्रवेश लिया और वर्ष 2011 में डिजाइन और रंगमंच तकनीक में अपना डिप्लोमा पूरा किया। उसके बाद, सजल ने कोलकाता में विभिन्न समूहों के लिए रंगमंच कार्यशालाओं का आयोजन किया और विदेश में बर्लिन, जर्मनी, लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी, जालंधर में थिएटर इंस्ट्रक्टर के रूप में काम किया और डिब्रूगढ़ यूनिवर्सिटी में विजिटिंग फैकल्टी भी रहे।

फ्रीलांस थिएटर एक्टिविस्ट सजल मंडल एक साल तक लेपचा कम्युनिटी स्कूल, कलिम्पोंग में थिएटर टीचर रहे और सुंदरबन क्षेत्र में कई सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन किया। उन्होंने मैंग्रोव थिएटर सेंटर, बसंती, सुंदरबन नामक अपना खुद का थिएटर ग्रुप बनाया और चिल्ड्रन थिएटर फेस्टिवल और बाउल मेला सहित कई थिएटर फेस्टिवल आयोजित किए। उन्होंने कई नाटकों में अभिनय किया है।

नटरंग के वरिष्ठ कलाकार नीरज कांत के साथ खुलकर बातचीत में सजल ने थिएटर के अपने सफर के बारे में बताया।एक मेहनती रंगमंच व्यवसायी, सजल लगातार सीखने में विश्वास करते हैं। बहु-आयामी गतिविधियां करते हैं।उनका कहना है कि तकनीकी पहलू एक नाटक का एक बहुत ही महत्वपूर्ण तत्व है, जो इसके समग्र प्रभाव को बढ़ा सकता है। बच्चों के रंगमंच के महत्व की वकालत करते हुए, सजल ने सुझाव दिया कि सरकार को सभी स्कूलों में रंगमंच की शुरुआत करनी चाहिए ताकि बच्चों को इसका भरपूर लाभ मिले। इसके अलावा रंगमंच भी युवाओं की ऊर्जा को चैनलाइज़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।उनमें सकारात्मकता और रचनात्मकता का संचार करता है।

इस राष्ट्रीय कार्यक्रम का प्रबंधन करने वाली नटरंग टीम में नीरज कांत, अनिल टिक्कू, सुमीत शर्मा, संजीव गुप्ता, विक्रांत शर्मा, मोहम्मद यासीन, बृजेश अवतार शर्मा, गौरी ठाकुर और चंद्र शेखर शामिल हैं। 

chat bot
आपका साथी