हर्षोल्लास से मनाया डुग्गर का पारंपरिक पर्व रुट्ट-राह्डे़

डुग्गर प्रदेश का पारंपरिक एवं सांस्कृतिक पर्व रुट्ट राह्डे़ शुक्रवार को पूरे हर्षोल्लास से मनाया गया। ग्रामीण क्षेत्रों में पर्व को लेकर खासा उत्साह रहा। कृषि से जुड़ा यह पर्व महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस त्योहार पर नवविवाहिता अपने मायके आती हैं और अपने परिवार एवं सहेलियों के साथ इस पर्व को मनाती हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 17 Jul 2021 01:53 AM (IST) Updated:Sat, 17 Jul 2021 01:53 AM (IST)
हर्षोल्लास से मनाया डुग्गर का पारंपरिक पर्व रुट्ट-राह्डे़
हर्षोल्लास से मनाया डुग्गर का पारंपरिक पर्व रुट्ट-राह्डे़

जागरण संवाददाता, जम्मू : डुग्गर प्रदेश का पारंपरिक एवं सांस्कृतिक पर्व रुट्ट राह्डे़ शुक्रवार को पूरे हर्षोल्लास से मनाया गया। ग्रामीण क्षेत्रों में पर्व को लेकर खासा उत्साह रहा। कृषि से जुड़ा यह पर्व महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस त्योहार पर नवविवाहिता अपने मायके आती हैं और अपने परिवार एवं सहेलियों के साथ इस पर्व को मनाती हैं।

करीब महीना पहले यह पर्व शुरू हुआ था और लड़कियों ने परिवार के सदस्यों की खुशहाली के लिए राह्डे़ लगाए थे, जिसमें खरीफ की फसलों के बीज लगाए गए थे। महीना भर लड़कियों ने पूरी आस्था के साथ इनका पालन किया और हर रविवार को सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन के साथ इनका चित्रण करती रही। ऐसे प्रयासों से नई पीड़ी को अपनी लोक कलाओं से जुड़ने का भी मौका मिल जाता है।

शुक्रवार को सक्रांति के मौके पर सुबह से राह्डे़ प्रवाहित करने की तैयारियां चलती रही। राह्डों के इर्द गिर्द रंगोली सजाई गई। घरों में पकवान आदि बनाए गए। जिन स्थानों पर लड़कियों ने राह्डे़ लगाए हुए थे। वहां समारोह जैसा माहौल था। शाम को राह्डों को जलस्त्रोतों में प्रवाहित कर दिया गया और लड़कियों ने एक साथ बैठकर मौज मस्ती की और नवविवाहिताओं ने अपने ससुराल से लाया सामान, पकवान, फल, मेवे, मेकअप का सामान अपनी मायके की सहेलियों में बांटा। जलस्त्रोतों के आसपास खासकर दरिया चिनाब के किनारे, देविका और तवी एवं ग्रामीण क्षेत्रों से निकलने वाली नहर के किनारों पर पिकनिक जैसा माहौल रहा।

हर वर्ष डुग्गर संस्कृति संगम बटैड़ा की ओर से इस पर्व के प्रचार प्रसार के लिए गांवों में सामूहिक राह्डे़ लगवाएं जाते थे। संस्था के संरक्षक मास्टर ध्यान सिंह ने बताया कि कोरोना के कारण इस वर्ष संस्था की ओर से किसी खास कार्यक्रम का आयोजन नहीं करवाया गया। लड़कियों,महिलाओं ने अपने तौर पर घरों में राह्डे़ लगाए और पारंपरिक तरीके से संक्राति पर इन्हें प्रवाहित कर दिया गया। कार्यक्रम में लोक गीत 'हाड़-जेठ दियां धुप्पा बो डह्डियां, मेरा चित जंदा कलमाई.. ते मंगदा पानी ओ पानी.।' इसी तरह यह गीत 'उड्ड मड़ी कूंजड़िये, सौन आया ई आ..हो..। कि'या उड्डां नि अडिये, देस पराया ई आ ..हो..।।' आदि गीत गूंजते रहे।

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