कश्मीर में हिंदी : भक्तिकाल में ही रखी गई थी कश्मीर में हिंदी काव्य की नींव
World Hindi Day 2021 कश्मीर की कश्मीरी रहस्यवादी कवयित्री रूपाभवानी (सन् 1625-1719) भी इस युग से प्रभावित होकर कश्मीरी के साथ-साथ हिंदी में भी भक्तिपूर्ण कविताएं लिखने लगीं। उनकी अरबी फारसी संस्कृत और हिंदी में अच्छी पकड़ थी।
श्रीनगर, डा: रूबी जुत्शी। कश्मीर में काव्य परंपरा अति प्राचीन है। यहां कई भाषाओं में काव्य कहा गया है पर मुख्य तौर पर संस्कृत, फारसी, कश्मीरी, अंग्रेजी, उर्दू और हिंदी में कश्मीर के कवियों ने महत्वपूर्ण योगदान देकर कश्मीर के काव्य संसार में वृद्धि की है।
भक्तिकाल (सन् 1350-1700) को हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग माना जाता है। कश्मीर की कश्मीरी रहस्यवादी कवयित्री रूपाभवानी (सन् 1625-1719) भी इस युग से प्रभावित होकर कश्मीरी के साथ-साथ हिंदी में भी भक्तिपूर्ण कविताएं लिखने लगीं। उनकी अरबी, फारसी, संस्कृत और हिंदी में अच्छी पकड़ थी। यह ज्ञान प्राप्त करने के लिए वे किसी पाठशाला में नहीं गईं अपितु अपने घर में ही इन्होंने शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की। उनका वैवाहिक जीवन दुखों तथा यातनाओं से भरा हुआ था। ससुराल में विशेष रूप से सास से मिल रही यातनाओं, उपेक्षा तथा तिरस्कार ने धीरे-धीरे उनके मन में संसार के प्रति विरक्ति पैदा कर दी और आध्यात्मिकता के प्रति उनकी रुचि और बढ़ गई।
उदाहरण के लिए निम्न पंक्तियों को देखिए 'अपने घर आया आप साईं, जो कुछ मैं था अब नाहीं'; इन कविताओं में खड़ी बोली का विशुद्ध रूप पाया जाता है। रूपाभवानी के अतिरिक्त बुलबुल, श्रीकृष्ण राजदान, परमानंद (इन्होंने शिवलग्न में कई स्थानों पर हिंदी में ही गीत गाये हैैं), पंडित नीलकंठ शर्मा, मास्टर जिंदा कौल (पत्रपुष्प), दीनानाथ नादिम (कलिंग से राजघाट तक और अजनता), नारायण खार (नारायण प्रकाश काव्य संग्रह) और दुर्गाप्रसाद काचरू ने कश्मीर में हिंदी काव्य की पृष्ठभूमि तैयार की है।
जानकीनाथ कौल 'कमल' : 'विक्षिप्त वाणी' काव्य संग्रह 1980 में प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह में 47 कविताएं संकलित हैैं। 'मैं' कविता इस काव्य संग्रह की बहुचर्चित कविता रही है, जिसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैैं-'मैैं इस वाणी की झंकार हूं, जिसके तार सहसा टूटे पड़े हों'।
शशिशेखर तोषखानी : तोषखानी जी एक ऐसे कवि हैैं, जिन्होंने छायावाद से हटकर प्रगतिशील स्वर की कविताओं के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। 'थोड़ा सा आकाश' और 'एक अपरिचित आकाश' इनके प्रसिद्ध कविता संग्रह हैैं। 'शत्रु से बातचीत', 'कुहरा डूबे माथों पर', 'अब एक नया सूर्योदय लहराएगा', 'एक दिन और', 'चीड़ों में ठहरी बयार' इनकी बहुचर्चित कविताएं रही हैैं, जिनके कारण घाटी के कवियों में इनका नाम अग्रणी रहा है।
डा. रतनलाल शांत : इनका पूरा नाम रतनलाल रैणा है किंतु 'शांत' उपनाम से पूरे जम्मू कश्मीर मेंं जाने जाते हैैं। इनको अभी तक जिन पुरस्कारों से पुरस्कृत किया गया है वह है-राष्ट्पति से स्वर्ण पदक, जम्मू कश्मीर राज्य कल्चरल आदि। 'खोटी किरने', 'कविता अभी भी' इनके प्रमुख संग्रह हैैं। कविता अभी भी बहुत बड़ा कविता संग्रह है, जिसमें 57 कविताएं संकलित हैैं। इसके अतिरिक्त इस संग्रह में गजल भी प्रकाशित हुईं, जो चर्चित रहीं। 'प्रतीक्षा', 'नारा', 'खोज' आदि कविताएं प्रमुख रही हैैं।
मोहन निराश : निराश जी घाटी के प्रतिष्ठित हिंदी कवियों में एक हैैं। 'कृष्ण मेरा पर्याय', 'शून्यकाल' और 'खानाबदोश' कविता संग्रहों को लिखकर इन्होंने हिंदी में ख्याति प्राप्त की है। विस्थापन से पहले मोहन निराश रेडियो कश्मीर से विविधा कार्यक्रम करते थे। इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम से प्रांत के कवि एवं लेखक, लेखिकाएं अपने श्रोताओं तक पहुंचते थे।
पृथवीनाथ मधुप : मधुप ने 'वे मुखर क्षण', 'खुली आंख की दास्तां', 'बबूल के साये में माेंगरा' सहित कई अन्य प्रसिद्ध काव्य संग्रहों की रचना की।
क्षमा कौल : उन्होंने अक्सर यथार्थ की बात की है। 'तुम', 'युद्ध', 'धूप की गली', 'बब्बन के नाम', 'दिन' और 'मां' उनकी चर्चित कविताएं है। नारी मन की वेदना, पुरुष जाति का अहम, सामाजिक बंधनों के विरोध में उनका स्वर उभरता है।
अग्निशेखर : घाटी के प्रमुख कवि हैं और उनके 'किसी भी समय' कविता संग्रह में 61 कविताएं संकलित हैं। 'कांगड़ी', 'बर्फ', 'काेयला', 'बर्फ में धूप', 'हांगुल' और 'चिनार के पत्ते' सामान्य जीवन पर आधारित हैं और यही कारण है कि पाठक का ध्यान इन कविताओं पर ज्यादा गया है। खासकर वादी के लेखक उनकी कविताओं को सरहाते हैं।
महाराज कृष्ण संतोषी : इनका पहला संग्रह 1980 और दूसरा 1992 में प्रकाशित हुआ। 'इस बार शायद' कविता संग्रह में 32 कविताएं हैं। उनके काव्य संग्रह 'बर्फ पर नंगे पांव' में 58 कविताएं संकलित हैं और काफी चर्चित भी रही हैं।
डा सोमनाथ कौल : प्रो सोमनाथ कौल की बैसाखियां, रक्त के फूल, रद्दी की टोकरी आदि प्रसिद्ध कविताएं रही हैं।
समकालीन काव्य : समकालीन कविता मनुष्य जीवन की समस्याओं, दैनिक आवश्यकताओं, संघर्षों का संसार ही कविता का काव्य संसार है। समकालीन कविता में समय की पहचान है। इसमें आज के संघर्ष करते व्यक्ति का चित्रण है। समकालीन कवियत्रियों में सबसे पहले चंद्रकांता का नाम अग्रणी है।
चंद्रकांता : उनका जन्म श्रीनगर के गणपतयार में प्रो रामचंद्र पंडित के घर में सितंबर 1938 में हुआ। वह मूल तौर पर सोपोर के रहने वाले थे। मातृहीन बालिका का लालन-पालन एक प्रकाढ़ विद्वान, प्रसिद्ध अध्यापक और समाज सुधारक के घर पर हुआ, पर सौतेली मां के जुल्मसितम से त्रस्त होकर 12 वर्ष की आयु में ही अपनी वेदना एवं कुंठा को कविता रूप में व्यक्त कर चुकी हैं-
भर जाता है जब यह मौन हृदय
तब मिटते घाव सजग होकर
कुछ पीड़ा सी देते मन को
पलकें भीगी-भगी होकर
लेखिका के लेखनकार्य का यह प्रारंभिक रूप है पर संपूर्ण रूप से लेखन क्षेत्र में वह 1976 में आई। उनके काव्य संग्रह यहीं कहीं आसपास और चुपचाप गुजरते हुए 1999 में प्रकाशित हुए।
निदा नवाज : कश्मीर के सुप्रसिद्ध मुस्लिम कवि निदा नवाज कश्मीर हिंदी लेखक संघ के सचिव रहे हैं। इसके अक्षर अक्षर रक्त भरा कवित संग्रह में 32 कविताएं हैं। इनमें से वितस्ता साक्षी रहना, काले बादल का टुकड़ा, निष्फल उपासना, मैं तो घास हूं उग जाऊंगा कविताएं काफी चर्चित रही हैं। उन्होंने काफी कार्य किया है पर सांस्कृतिक जड़ों को जोड़ने और तोड़ने का साहस नहीं रखते हैं।
कवि निदा नवाज के काव्य संग्रह बर्फ और आग की कविता ख्वाबों का खंडहर की यह पंक्तियां जीवन के भयावह परिवेश के खतरों को देखते हुए तथा वर्तमान जीवन के परिणामों को देखते हुए भविष्य के लिए चिंतित हैं।
इससे पहले कि
आने वाली पीढ़ी को
कोमल धागों से
बुननी होगी एक ऐसी चादर
जिसको ओढ़ सके भविष्य में
हमारे बच्चे
समय की ठंड और कड़ी धूप से
बचने के लिए।
(बर्फ और आग, पृष्ठ.29)
निदा नवाज का दूसरा संग्रह 'बर्फ और आग' तथा डायरी 'सिसकियां लेता स्वर्ग' सन 2015 में प्रकाशित हुआ है। 'सिसकियां लेता स्वर्ग' उनकी बहुचर्चित डायरी है जिसमें कश्मीर की अनेक घटनाओं का चित्रण है। काव्य संग्रह मेें 'मैं पालूंगा इक सपना', 'वितस्ता तट पर', 'तुम्हारा कश्यप', 'नव वर्ष मुबारक हो, हर वर्ष मुबारक' हो समेत 63 कविताएं हैं। प्रख्यात कवि एवं आलोचक डा नरेंद्ग माेहन लिखते हैं- निदा नवाज, तुम्हारी कविताओं मे क्रूरता और करुणा का विन्यास किताबी नहीं है, जिन्दगी के खाैलते हुए अहसासोे की उपज है। शायद इसलिए इन कविताओं से गुजरते हुए मुझे तुम्हारे चेहरे की सादगी, मासूमियत,कश्मीरियत याद आती रही है, जब मैं तुमसे पहली बार मिला था। सन 2020 मेे उनका एक और कविता संग्रह अंधेरे की पाजेब प्रकाशित हुआ है।
सतीश विमल : सतीश विमल कश्मीर घाटी के एक महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित हिंदी कवि हैे। उन्होेेंने हिंदी के साथ साथ उर्दू, अंग्रेजी व कश्मीरी भाषा मेें साहित्य साधना की है। उनके कई कविता संग्रह हिंदी में प्रकाशित हुए हैं। उनका प्रथम काव्य संकलन 'विनाश का विजेता' है। 'कालसूर्य', 'ठूंठ की छाया', 'निशब्द', 'चीख के शिखर' उनके उल्लेखनीय काव्य संग्रह है। 'ठूंठ की छाया' इनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है,जिसमें 52 कविताएं हैं। 'दंगों की फसल' नामक कविता से कवि की संवेदना काे महसूस किया जा सकता है।
दंगों की फसल काटते- काटते
हमारे हाथों से भी बहा
बहुत सारा रक्त
और फट गया बहुत कुछ, भीतर-बाहर।(ठूंठ की छाया, पृष्ठ:62)
सतीश जी की कविताएं वास्तविकता का पुट लिए अपने भीतर दर्शन की ओर अग्रसर होती दिख रही हैं। उनकी कविताएं अनेक विषयाें को लेकर चलती हैं। कवि ने अपने आस-पास के जीवन एवं परिवेश को एक नई दृष्टि से अनुभव किया है। जहां प्राकृतिक सौन्दर्य की बात हुई है, वहीं अप्राकृतिक घटनाओं का भी कवि ने अत्यंत मार्मिकता वर्णन किया है।
निर्मल ऐमा : कई वर्ष पहले विस्थापित हो चुकी निर्मल जी की काव्य-कृति अमिट शब्द में 46 कविताएं संकलित हैं। दिशाहीनता, सुबह का गीत, मानवता, आंसू और आकांक्षा आदि इनकी सर्वप्रसिद्ध कविताएं हैं।
डा जमीला मीर: जमीला मीर का काव्य संग्रह 'पी बिन विरह' मेेें केवल दो कविताओें के शीर्षक दिए गए हैं। जो इस प्रकार हैं- साया बनाम मित्र और नाग। इसके अतिरिक्त इस संग्रह में एक लंबी कविता भी है। उन्होेंने अपने काव्य मेें सच की कड़वड़ाहट और जीवन की कठोरता व्यक्त की है। कवयित्री ने इस संग्रह में अपनी विरह वेदना, घुटन, पीड़ा को भी अपने सरल और मधुर शब्दों मेें अभिव्यक्त किया है।
डा मुदस्सिर अहमद बट: मुदस्सिर को घाटी को उभरते हुए कवि के रुप में देखा जा सकता है। सन 2016 में इनका प्रथम कविता संग्रह 'स्वर्ग विराग' प्रकाशित हुआ। इस कविता संग्रह में 61 कविताएं संकलित हैं। इनमें यही स्वर्ग है, चिनार और पौधा, उसका दर्द, मेरे भीतर आदि कविताएं प्रसिद्ध हैं। कवि कश्मीर घाटी मेें व्याप्त अनेक प्रकार की समस्याओं, विडंबनाओं, विसंगतियों पर चोट करते हैं। चिनार और पाैधा नामक कविता इस बात की पुष्टि करती है-
सिखाया जाता है
चिनार की छांव मेें
जलकर कोयला होना
और फिर तपकर
आग उगलना
उनके प्रति जो
नहीं है चिनार
जो महज पाैधे हैं
धरती से चिपके हुए।।(स्वर्ग विराम, पृष्ठ:58)
अंत में इसी निर्णय पर पहुंच जाते हैं कि अहिन्दी भाषी प्रदेश होने के उपरांत भी कश्मीर घाटी में हिंदी साहित्य के प्रमुख क्षेत्र काव्यक्षेत्र मेेेे इतना काम हुआ है जो समेटना दूभर है क्याेंकि यह सारा साहित्य बिखरा पड़ा है। जिन लाेगाेें की यह धारना रही है कि वादी मेे हिंदी का भविष्य अंधकारमय है शायद वह ऐसे योगदानोे से अनिभिज्ञ हैं। यह साहित्य तब भारतवर्ष के कोने काेने तक पहुंच पाता अगर वादी मेें विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाएं और समाचारपत्र उपलब्ध होते।
घाटी की अंतिम और उच्च शिक्षा संस्था कश्मीर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष को केेंद्र शासित जम्मू कश्मीर प्रदेश सरकार एव केंद्र सरकार से विभिन्न प्रकार की सहायता से विभागीय पत्रिका वितस्ता के अतिरिक्त एक और साहित्यिक पत्रिका निकालनी चाहिए जिसमें प्रदेश के आम हिंदी लेखकों स्थान प्राप्त हो सके। प्रदेश मेे हिंदी का भविष्य उज्जवल है जिसका जीता जागता उदाहरण मुस्लिम कवि निदा नवाज, डा जमीला मीर, डा मुदस्सिर अहमद हैं। हिंदी से किसी को घृणा नहीं है परन्तु प्रदेश मेें हिंदी शिक्षकोें का अभाव है।
(लेखिका कश्मीर विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग में प्रोफेसर हैं)