हिन्दी साहित्यकार नरेंद्र मोहन के निधन पर शोक जताया, कहा-उन्होंने ही जम्मू में कवियों की एक बिरादरी तैयार की

Jammu नाटक आलोचना डायरी संस्मरण लंबी कविता आदि साहित्यिक विधा में योगदान दिया है। मंटो और विभाजन पर अपने ऐतिहासिक दस्तावेजी काम के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएंगा। इनके नाटकों में सामाजिकता का स्वर उभरकर आया है।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Tue, 11 May 2021 01:17 PM (IST) Updated:Tue, 11 May 2021 01:17 PM (IST)
हिन्दी साहित्यकार नरेंद्र मोहन के निधन पर शोक जताया, कहा-उन्होंने ही जम्मू में कवियों की एक बिरादरी तैयार की
डा. निर्मल विनोद ने कहा कि नरेंद्र मोहन बहुमुखी प्रतिभा संपन्न रचनाकार थे।

जम्मू, जागरण संवाददाता: अत्यंत व्यापक एवं कलात्मक संसार रच कर साहित्य के रूप में दुनिया तक पंहुचाने वाले डा. नरेंद्र मोहन के निधन पर हिन्दी साहित्य जगत के साथ-साथ उन्हें जानने वालों में शोक की लहर है। जम्मू के साहित्यकारों ने उनके निधन पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए उनके निधन को ऐसी क्षति बताया है जिसकी पूर्ति संभव नहीं है। उनका मंगलवार सुबह जमुना नगर में कोरोना संक्रमण के कारण निधन हो गया। डा. नरेंद्र मोहन

आधुनिक हिंदी नाटककारों में एक सृजनशील नाटककार के रूप में प्रसिद्ध थे।

उन्होंने नाटक, आलोचना, डायरी, संस्मरण, लंबी कविता आदि साहित्यिक विधा में योगदान दिया है। मंटो और विभाजन पर अपने ऐतिहासिक दस्तावेजी काम के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएंगा। इनके नाटकों में सामाजिकता का स्वर उभरकर आया है। उनकी छात्रा जम्मू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष डा. रजनी बाला ने कहा कि वह हमारी प्रेरणा एवं मार्गदर्शक थे। वो किसी भी व्यक्ति को कर्म के मार्ग पर चला लेते थे। उनका मानना था कि काम का जनून हमेशा एक टाइगर की तरह अपने पीछा लगाना चाहिए। तभी हम अपने कर्म, उद्देश्य, महत्वाकांक्षा को पूरा कर सकते हैं। वह 1978 से जम्मू में आते रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के साहित्यकारों, विभागों के साथ लगातार वह शिरकत करते रहे। उनका अवसान साहित्य खासकर लंबी कविता, नाटक और रंगमंच के लिए बड़ी क्षति है। जिसकी भरपाई लंबे समय तक होना संभव नहीं।

हिन्दी साहित्यकार प्रो. अशोक कुमार ने कहा कि डा. नरेंद्र मोहन किसी खेमे या बाडे़ से बंधे हुए नहीं थे। आलोचना के क्षेत्र में अगर एक ओर रामविलास शर्मा और नामबर सिंह हैं तो दूसरी ओर नरेंद्र मोहन खडे़ दिखाई देते हैं। हिन्दी की लंबी कविता को पहचानने वाले और उसे पहचान देने वाले वे अकेले साहित्यकार हैं। वे प्रतिदिन नियमित रूप के लेखन कार्य करने वाले साहित्यकार थे और जम्मू से उनका विशेष लगाव रहा है।

डा. पवन खजूरिया नें कहा कि मूल पंजाबी होते हुए भी उन्होंने हिंदी,अग्रेजी और मराठी भाषाओं में ज्ञान अर्जित किया।उन्होंने पंजाबी तथा हिंदी में समान अंतर से नाट्य लेखन किया। डा. नरेंद्र मोहन का नाटक साहित्य ही नहीं उनकी लंबी कविता की शैली को हमेशा याद रखा जाएगा।

डा. निर्मल विनोद ने कहा कि नरेंद्र मोहन बहुमुखी प्रतिभा संपन्न रचनाकार थे। कवि अलोचक, नाटककार के रूप में उनका अमूल्य योगदान रहा है। अपितु वे एक साहित्यकार ही नहीं बल्कि एक कुशल अध्यापक एवं मिलनसार व्यक्ति थे।

साहित्य मंच जम्मू के शेख मोहम्मद कल्याण ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि नाटक धर्मिता, भाषा, प्रभुत्वता तथा नाटक की गहरी सोच ने उनके व्यक्तित्व को और भी उज्ज्वल बना दिया था। हाल ही में उनके लंबी कविता दस्ताबेज-3 में अशोक कुमार और डा. अग्नि शेखर की कविता को भी स्थान दिया गया था। वह हमेशा युवा साहित्यकारों को प्रेरित करते रहते थे। 

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