Historical Ramleela : कभी फिल्म की तरह टिकट खरीद कर देखी जाती थी रामलीला

ऊधमपुर में लोग टिकट खरीद कर रामलीला देखने आते थे। इतना ही नहीं सीट बुकिंग करवाने के लिए डीसी एसएसपी जैसे बड़े अधिकारियों की सिफारिशें तक होती थीं। ऊधमपुर में जिस रामलीला को देखने के लिए टिकट खरीदी जाती थी और टिकट के लिए मारामारी रहती थी

By Lokesh Chandra MishraEdited By: Publish:Tue, 12 Oct 2021 06:50 PM (IST) Updated:Tue, 12 Oct 2021 10:09 PM (IST)
Historical Ramleela : कभी फिल्म की तरह टिकट खरीद कर देखी जाती थी रामलीला
भीड़ को नियंत्रित करने और खर्च जुटाने के लिए राम कला मंदिर ने 1970 में रामलीला पर टिकट लगा दी।

ऊधमपुर, अमित माही : सिनेमाघरों और मल्टीप्लेक्स में मूवी देखने के लिए हर कोई टिकट खरीदता है। मगर शायद आप विश्वास नहीं करेंगे कि एक जमाना था, जब ऊधमपुर में लोग टिकट खरीद कर रामलीला देखने आते थे। इतना ही नहीं सीट बुकिंग करवाने के लिए डीसी, एसएसपी जैसे बड़े अधिकारियों की सिफारिशें तक होती थीं। ऊधमपुर में जिस रामलीला को देखने के लिए टिकट खरीदी जाती थी और टिकट के लिए मारामारी रहती थी, उसका मंचन रामनगर चौक पर होता था। इस रामलीला का मंचन राम कला मंदिर द्वारा किया जाता था, जिसकी शुरुआत 1952 में स्व. परमचंद ने स्व. गंगाधर खजूरिया, स्व. जगदीश खजूरिया, हरि भक्त गुड्डा, बोध राज खजूरिया, कृष्ण लाल अबरोल के साथ मिल कर की थी।

यहां रामलीला मंचन के दौरान कलाकारों के जानदार अभिनय से लेकर बेहतरीन संवाद आदायगी तक हर किसी पर अपना प्रभाव छोड़ती थी। वहीं स्टेज क्रॉफ्ट, कास्ट्यूम, मेकअब, लाइट एवं साउंड इतनी अच्छी होती थी कि दृश्यों को जीवंत बनाती थी। बेहतरीन रामलीला मंचन होने की वजह से राम कला मंदिर की ख्याति पूरे क्षेत्र में होने लगी। स्व. गंगाधर खजूरिया की दशरथ और मदन पचियाला की रावण की भूमिका की ख्याति दूर-दूर तक फैली थी। साल दर साल रामलीला मंचन देखने आने वालों की भीड़ बढ़ने लगी। भीड़ को नियंत्रित करने और रामलीला पर होने वाले खर्च के लिए राजस्व जुटाने के लिए राम कला मंदिर ने 1970 में रामलीला पर टिकट लगा दी।

रामलीला मंच के सामने जहां पर दर्शकों के बैठने की जगह थी, वहां पर महिला और पुरुष दर्शकों के लिए बैठने के लिए अलग व्यवस्था होती थी। एक तरफ महिलाएं और एक तरफ पुरुष दर्शक बैठके थे। सबसे आगे कुर्सियां, उसके पीछे बैंच और सबसे पीछे जमीन पर बैठने और उनके पीछे खड़े होने की व्यवस्था की गई थी। शुरुआत में कुर्सी की टिकट 50 पैसे, लकड़ी के बेंच पर बैठने की टिकट 25 पैसे और जमीन पर बैठने और खड़े होने वालों के लिए 10 पैसे टिकट रखी गई थी। मगर भीड़ लगातार बढ़ती गई। आलम यह हो गया कि रामलीला मंचन देखने के लिए उस समय प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों से लेकर सैन्य अधिकारियों व वीवीआइपी लोग रामलीला के लिए एडवांस में टिकट बुक करवाने लगे।

इसके लिए मंच के पदाधिकारियों को बड़े-बड़े लोगों की सिफारिशें तक आती थीं। वर्ष 1986 तक रामलीला का मंचन होता रहा और उस समय कुर्सी की टिकट 10 रुपये, बेंच पर बैठने की टिकट दो रुपये और खड़े होकर या जमीन पर बैठ कर रामलीला देखने की टिकट 1 रुपये कर दी गई थी। रामलीला का स्तर कितना उच्चत था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसे अकेडमी ऑफ आर्ट कल्चर एंड लेंग्वेजेस जम्मू तथा डिपार्टमेंट ऑफ कल्चर भारत सरकार, दिल्ली की ओर से रामलीला मंचन के लिए ग्रांट भी मिलती थी। रामलीला मंचन के लिए राम कला केंद्र बाजार या लोगों के घरों में जाकर चंदा जमा नहीं करती थी, बल्कि टिकट से आने वाले राजस्व और प्राप्त होने वाली ग्रांट को रामलीला मंचन खर्च करती थी।

पहले विवाद के कारण और फिर कलाकारों के अभाव में बंद हुआ मंचन : वर्ष 1987 में रामलीला मंचन करने वाले राम कला मंदिर की प्रबंधक कमेटी में पदों को लेकर व अन्य कारणों को लेकर विवाद हो गया। इसके चलते रामलीला मंचन बंद हो गया। इसके बाद आतंकवाद की वजह से भी रामलीला शुरू नहीं पाई। वर्ष 2001 में अजय गुड्डा ने रामलीला मंचन का फिर से शुभारंभ किया। वर्ष 2016 तक 15 वर्ष तक रामलीला मंचन हुआ। मगर कलाकारों के अभाव की वजह से रामलीला मंचन मुश्किल होने लगा। युवा पीढ़ी के आगे न आने की वजह से कलाकारों की कमी होने लगी। जो कुछ युवा आते वह छोटे रोल की बजाय लीड रोल मांगने लगते। इसी तरह से लोगों भी रामलीला मंचन देखने के लिम आने लगे। इस वजह से यह रामलीला पिछले पांच वर्षों से बंद है।

दीवारों और पेड़ों की टहनियों पर बैठ देखा करते रामलीला : राम कला मंदिर की रामलीला में इतनी ज्यादा भीड़ होती थी कि 4 हजार से ज्यादा लोग रामलीला मंचन देखने के लिए मंच परिसर में होते थे। भीड़ की वजह यदि किसी को बाहर निकलना पड़ता तो दोबारा उसे प्रवेश के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ती और कभी बार तो इस पर ह सफल नहीं हो पाते थे। यहां तक कि कई बार तो कलाकारों को भी अंदर आने के लिए मंच से उद्घोषणा करनी पड़ती थी। रालीला परिसर की दिवारों से लेकर आसपास लगे पेड़ों की टहनियों पर चढ़ कर लोग रामलीला देखते थे। कई बार तो अधिक वजन होने के काऱण टहनियां टूटने के कारण लोगों के नीचे गिरने की घटनाएं भी हुई हैं।

रामलीला मंचन का दौरा स्वर्णिम व एतिहासिक था : रामकला मंदिर के पूर्व सेक्रेटरी आनंद खजूरिया ने कहा कि राम कला मंदिर का रामलीला मंचन का दौरा स्वर्णिम व एतिहासिक था। अन्य भी कई रामलीलाएं होती थीं, मगर कलाकारों का अभिनय के साथ मंच सज्जा, लाइट साउंड की व्यवस्था और खाली समय में मंच पर मनोरंजन के लिए स्किट व अन्य कार्यक्रम की वजह से लोग रामलीला देखने खिंचे चले आते। उनके पिता सहित कई कलाकारों ने अपने किरदारों को निभाते हुए अमिट छाप छोड़ी है।

कलाकारों के अभाव में मंचन आगे नहीं बढ़ा : राम कला मंदिर के अध्यक्ष अजय गुड्डा ने कहा कि राम कला मंदिर की रामलीला को टिकट वाली रामलीला भी कहते थे। उस जमाने में इसकी टिकट होना इसके स्तर को बयान करता है। बचपन में इस रामलीला को देख कर बड़े। पहले युवाओं में रामलीला में अभिनय करने की रुचि होती थी, वहीं लोग भी सभी नवरात्र में रामलीला देखने आते थे। मगर बदलते वक्त के साथ युवाओं की रुचि के साथ लोग भी रामलीला देखने नहीं आते। पहले विवादों के चलते रामलीला बंद हो गई थी, मगर प्रयास कर दोबारा शुरू की और 15 वर्षों तक मंचन किया मगर कलाकारों और दर्शकों के अभाव में इसे बंद करना पड़ा। उम्मीद है कि एक लोाग अपनी संस्कृति से फिर से जुड़ें और रामलीला मंचन का पुराना दौर वापस लौटेगा।

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