जम्मू कश्मीर में सिख समुदाय को साधने लगे सियासी दल, अमित शाह से लेकर फारूक और आजाद भी बड़े सिख धार्मिक नेताओं से मिल चुके

महंत मंजीत सिंह के साथ मुलाकात के लिए अमित शाह ने बीते माह जम्मू में अपने एक पूर्व निर्धारित कार्यक्रम में बदलाव तक कर दिया था। उनके बाद आजाद भी अपने कुछ साथियों संग महंत मंजीत से मिलने पहुंचे थे। फारूक अब्दुल्ला ने गत सोमवार को ही मुलाकात की है।

By Vikas AbrolEdited By: Publish:Wed, 24 Nov 2021 08:26 AM (IST) Updated:Wed, 24 Nov 2021 09:56 AM (IST)
जम्मू कश्मीर में सिख समुदाय को साधने लगे सियासी दल, अमित शाह से लेकर फारूक और आजाद भी बड़े सिख धार्मिक नेताओं से मिल चुके
महंत मंजीत सिंह के साथ मुलाकात के लिए अमित शाह ने बीते माह पूर्व निर्धारित कार्यक्रम में बदलाव कर दिया।

श्रीनगर, नवीन नवाज।जम्मू कश्मीर में संवैधानिक और प्रशासनिक व्यवस्था में बदलाव से प्रभावित हो रहे राजनीतिक समीकरणों के बीच सिख समुदाय की अहमियत भी बढ़ने लगी है। सभी राजनीतिक दलों के शीर्ष नेता सिख समुदाय को अपने साथ जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। वह सिख समुदाय के धार्मिक नेताओं के आगे हाजिरी देने में जुटे हुए हैं। इनमें डेरा नंगाली साहिब के महंत मंजीत सिंह उल्लेखनीय हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से लेकर प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद और पूर्व मुख्यमंत्री डा. फारूक अब्दुल्ला भी उनसे बीते एक माह के दौरान मुलाकात कर चुके हैं।

महंत मंजीत सिंह के साथ मुलाकात के लिए अमित शाह ने बीते माह जम्मू में अपने एक पूर्व निर्धारित कार्यक्रम में बदलाव तक कर दिया था। उनके बाद गुलाम नबी आजाद भी अपने कुछ साथियों संग महंत मंजीत से मिलने पहुंचे थे। फारूक अब्दुल्ला ने गत सोमवार को ही मुलाकात की है। पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती भी महंत मंजीत के करीबियों के साथ लगातार संपर्क में रहती हैं।

जम्मू कश्मीर में सिख समुदाय की आबादी लगभग दो प्रतिशत ही है। इसके बावजूद यह समुदाय प्रदेश में एक दर्जन विधानसभा क्षेत्रों में किसी भी दल का चुनावी गणित बनाने-बिगाड़ने में पूरी तरह समर्थ है। कश्मीर में सिख आबादी लगभग एक लाख और जम्मू संभाग में करीब साढ़े तीन लाख है। कश्मीर के चार जिलों पुलवामा, श्रीनगर, बड़गाम व बारामुला के चार विधानसभा क्षेत्रों में क्रमश: त्राल, अमीराकदल, बड़गाम और करीरी बारामुला में सिख मतदाता किसी भी उम्मीदवार की हार-जीत में अहम भूमिका निभाते हैं। जम्मू संभाग में कठुआ, जम्मू की आरएसपुरा, सांबा जिले की विजयपुर, जम्मू की गांधीनगर और पुंछ विधानसभा क्षेत्र में सिख वोटर निर्णायक साबित होते हैं। वहीं, जम्मू जिले के सुचेतगढ़ व बिश्नाह और कठुआ के हीरानगर में भी इनकी अच्छी खासी तादाद है।

सिख समुदाय को कोई भी नेता वर्ष 2002 के बाद जम्मू कश्मीर राज्य (अब केंद्र शासित प्रदेश) की विधानसभा में कैबिनेट मंत्री नहीं रहा है। वर्ष 1996 में फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेकां सरकार में सरदार हरबंस सिंह कैबिनेट मंत्री थे। वर्ष 2002 में जब मुफ्ती मोहम्मद सईद ने बतौर मुख्यमंत्री पीडीपी-कांग्रेस की गठबंधन सरकार की कमान संभाली थी तो उन्होंने विजयपुर विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित सरदार मंजीत सिंह को राज्यमंत्री जरूर बनाया था। 2009 में उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली तत्कालीन राज्य सरकार और उसके बाद 2015 में बनी पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार में भी कोई सिख नेता कैबिनेट या फिर राज्यमंत्री नहीं था। सिख समुदाय का कोई विधायक भी नहीं था, सिर्फ विधान परिषद का एक सदस्य छोड़कर।

सिख समुदाय में नए सिरे से पैठ बनाने की कोशिश

नेशनल सिख फ्रंट के चेयरमैन सरदार विरेंद्रजीत सिंह ने कहा कि बेशक सिख मतदाता प्रदेश में आठ से 10 सीटों पर निर्णायक साबित होता है, लेकिन कभी भी किसी भी दल ने प्राथमिकता के आधार पर सिख उम्मीदवारों को चुनाव में नहीं उतारा है। इसमें अपवाद हो सकता है। पांच अगस्त 2019 के बाद हालात बदल गए हैं। नेशनल कांफ्रेंस, कांग्रेस, पीडीपी, भाजपा समेत विभिन्न राजनीतिक दलों की सियासत बदली है। सभी दलों का परंपरागत वोट बैंक प्रभावित हुआ है। इसलिए सभी सिख समुदाय में नए सिरे से पैठ बनाने को प्रयासरत हैं।

पंजाब और यूपी में भी है अहमियत

जम्मू कश्मीर मामलों के जानकार एडवोकेट अजात जम्वाल ने कहा कि जम्मू कश्मीर के सिख समुदाय में डेरा नंगाली साहिब की बड़ी अहमियत है। पंजाब और उत्तर प्रदेश में भी डेरा नंगाली साहिब के प्रति आस्था रखने वाले बड़ी संख्या में हैं। डेरा नंगाली साहिब के महंत मंजीत सिंह ने आज तक कभी खुलकर किसी दल विशेष का समर्थन नहीं किया है। अगर वह करते हैं तो समझ लीजिए कि जम्मू कश्मीर के 90 प्रतिशत सिख वोटर उसी दल के साथ खड़े हो जाएंगे। इसलिए जम्मू कश्मीर का प्रत्येक नेता को उनके पास देख सकते हैं।

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