जम्मू-कश्मीर में गठित प्रदूषण नियंत्रण समिति पर कश्मीर के राजनीतिक दलों की सियासत शुरु

Pollution Control Committee Jammu Kashmir समिति में उद्योग एवं वाणिज्य विभाग आवास एवं शहरी विकास विभाग स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग परिवहन विभाग के प्रशासकीय सचिवों के अलावा वन एवं पर्यावरण विभाग के अतिरिक्त सचिव को सदस्य बनाया गया है।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Sat, 17 Apr 2021 10:02 AM (IST) Updated:Sat, 17 Apr 2021 10:06 AM (IST)
जम्मू-कश्मीर में गठित प्रदूषण नियंत्रण समिति पर कश्मीर के राजनीतिक दलों की सियासत शुरु
समिति में चेयरमैन का भी पद है। उस पर वन एवं पर्यावरण विभाग के प्रशासकीय सचिव को नियुक्त किया जाएगा।

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर प्रदेश सरकार द्वारा हाल ही में गठित प्रदूषण नियंत्रण समिति को लेकर विवाद पैदा हो गया है। 14 सदस्यीय समिति में कश्मीर घाटी के किसी पर्यावरणविद् या एनजीओ को शामिल न किए जाने पर कश्मीर केंद्रीत सियासी दलों ने सियासत शुरु कर दी है। कई एनजीओ भी उनके साथ लामबंद होने लगी हैं। उन्होंने नवगठित समिति के खिलाफ अदालत में भी जाने की धमकी है। समिति में कश्मीर की उपेक्षा का मुद्दा बनाते हुए कहा है कि यह एक तरह से कश्मीरियों को बेइज्जत करना, उनके प्रति दुराग्रह रखे जाने जैसा है।

आपको बता दें कि 25 मार्च 2021 को एक अधिसूचना के तहत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण समिति का गठन किया। इस 14 सदस्यीय समिति में कश्मीर संभाग का एक भी पर्यावरणविद् या एनजीओ नहीं है।

समिति में उद्योग एवं वाणिज्य विभाग, आवास एवं शहरी विकास विभाग, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग, परिवहन विभाग के प्रशासकीय सचिवों के अलावा वन एवं पर्यावरण विभाग के अतिरिक्त सचिव को सदस्य बनाया गया है। इसके अलावा अन्य सदस्यों में जम्मू नगर निगम आयुक्त, मेडिकल सुपरिनटेंडेंट राजकीय मेडिकल कालेज जम्मू, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के क्षेत्रीय अधिकारी डॉ पंकज चंदन, जम्मू स्थित नेचर वाइल्डलाइफ एंड क्लाइमेट चेंज नामक एनजीओ के निदेशक, जम्मू विश्वविद्यालय में पर्यावरण विभाग के प्रोफेसर अनिल रैना, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा नामित प्रतिनिधि, लघु उद्योग निगम के प्रबंधन निदेशक और जम्मू-कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव शामिल हैं। समिति में चेयरमैन का भी पद है। उस पर वन एवं पर्यावरण विभाग के प्रशासकीय सचिव को नियुक्त किया जाएगा। 

कश्मीर के वरिष्ठ पर्यावरणविद् और आरटीआइ कार्यकर्ता राजा मुजफ्फर ने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण समिति में मेडिकल कालेज जम्मू और जम्मू नगर निगम के प्रतिनिधि हो सकते हैं तो फिर श्रीनगर नगर निगम और श्रीनगर मेडिकल कालेज के क्यों नहीं? कश्मीर से एक भी पर्यावरणविद् को समिति में शामिल नहीं किया गया है। जम्मू से एक एनजीओ भी इसकी सदस्य है। कश्मीर विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों को भी इसमें नजरअंदाज किया गया है। यह सिर्फ संयोग नहीं है बल्कि एक सुनियोजित साजिश है, क्योंकि कश्मीर में अब विभिन्न जगहों पर उद्येाग स्थापित किए जाने हैं, स्थानीय पर्यावरणविद् ऐसे उद्योगोें के लिए मंजूरी नहीं देंगे जो स्थानीय पर्यावरण के प्रतिकूल हों, इसलिए उन्हें नजर अंदाज किया गया होगा, यह हमारा मानना है।

मानवाधिकारवादी कार्यकर्ता एडवोकेट नदीम कादरी ने कहा कि समिति में जिस तरह से कश्मीर की उपेक्षा हुई है, वह अनुचित है। इससे कई सवाल पैदा होते हैं। अगर प्रदेश सरकार और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपना फैसला नहीं बदला तो हम अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए तैयार हैं। हम इस समिति की वैधता को भी चुनौती दे सकते हैं।

वहीं माकपा नेता मोहम्मद युसूफ तारीगामी और पीडीपी नेता एजाज मीर ने कहा पहले ही कश्मीरियों को इस बात की आशंका है कि केंद्र सरकार उन्हें पीछे धकेल रही है। प्रदूषण नियंत्रण समिति में जिस तरह से कश्मीरियों की उपेक्षा की गई है। उससे कश्मीरियों में जो डर है, वह सही साबित हो रहा है। इससे साबित होता है कि केंद्र सरकार कश्मीरियों के प्रति उपेक्षा का भाव रखती है। यह अनुचित है। केंद्र सरकार को अपना रवैया बदलना चाहिए, अन्यथा लोगों में गुस्सा भड़क सकता है।

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