लेह में जैविक खेती की अलख जगाने वाले उर्गेन फुनसोग के जुनून को प्रधानमंत्री ने मन की बात में सराहा

Organic Farming In Leh उर्गेन के पिता की मौत के बाद उनकी मां को सरकारी नौकरी करने का अवसर भी मिला था लेकिन उन्होंने यह कहकर नौकरी करने से मना कर दिया था वह रोजगार देने वाले बनेंगे न कि रोजगार लेने वाले।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Tue, 02 Mar 2021 10:49 AM (IST) Updated:Tue, 02 Mar 2021 11:57 AM (IST)
लेह में जैविक खेती की अलख जगाने वाले उर्गेन फुनसोग के जुनून को प्रधानमंत्री ने मन की बात में सराहा
मैं सभी किसानों से यही कहता हूं कि जैविक खेती ही करें।

लेह, राज्य ब्यूरो: बर्फ के रेगिस्तान लद्दाख में कल तक अंजान उर्गेन फुनसोग आज सुर्खियों में है। खून जमा देने वाली ठंड में लेह के दूरदराज व छोटे से गांव के 'मिट्टी काआदमी' नाम से मशहूर उर्गेन की हिम्मत और जुनून को हर कोई सराह रहा है। उसने जैविक खेती की ऐसी अलख जगाई कि पूरा जिला जागरूक हो चुका है। किसान खेतों में रासायन से तौबा कर चुके हैं। उर्गेन की बदौलत किसान हर किस्म की सब्जियां उगाकर लेह के लोगों और सेना को उपलब्ध करवा रहे हैं। बड़ी बात यह है कि इतनी ठंड में खेतीबाड़ी मुश्किल होता है। गत रविवार को मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उसकी सराहना की है। वहीं उर्गेन ने कहा कि प्रधानमंत्री के प्रोत्साहन से वह फूले नहीं समा रहे।

लेह से 70 किलोमीटर दूर छोटे से गांव ज्ञा-मेरे के 48 वर्षीय उर्गेन फुनसोग अपने भाई स्टैंजिन व अन्य परिजनों के साथ गांव में रहता है। उस समय वह छोटा था जब उसके पिता का साया सिर पर से उठ गया था। उनके पिता भी किसान थे। वह जरूरत के हिसाब से सब्जियां उगाते थे। समय व्यतीत होने के बाद दोनों भाई कुछ और सब्जियां उगाने लगे। उनके पिता का यह सपना था कि उनके खेतों में हमेशा हरियाली रहे। इसी सपने को पूरा करने उन्होंने आगे काम किया। उनका कहना है कि जमीन ने हमें सब कुछ दिया है।

उर्गेन मां के साथ खेतों में काम करते समय पूरी तरह से जैविक खेती शुरू करने पर सोचता था। इसी सोच ने उसे जैविक खेती के लिए प्रेरित किया। यह सब आसान नहीं था। कृषि विज्ञान केंद्र लेह ने उसकी मदद की। उर्गेेन ने दो साल पहले लेह के कृषि विज्ञान केंद्र लेह से दो किलो केंचुए खरीदे और और जैविक खाद बनाना शुरू की। फिर इसी खाद को खेतों में डालना शुरू किया। धीरे-धीरे खेतों में जैविक खाद इस्तेमाल करना शुरू किया। अब हम खेतों में रासायन इस्तेमाल नहीं करते हैं। पूरे लेह जिले को जैविक खाद सप्लाई करता हूं। खेतों में मटर, आलू, ब्रोकली, फूल गोभी, बंद गोभी, दो किस्म की मूली, थोम, शलगम, सहित 20 किस्म की सब्जियां उगा रहा हूं।

रखी है दो सौ से अधिक भेड़-बकरियां: उर्गेन ने दो सौ से अधिक भेड़-बकरियां भी पाली हुई हैं। उनसे पश्मीना निकालता है। पश्मीना का शाल तैयार करने के अलावा अन्य गर्म कपड़े भी बनाता है। उर्गेन का कहना है कि इससे आमदनी भी अच्छी हो जाती है। वह सरसों के तेल से लेकर पनीर, दूध तक हर चीज अपने घर से ही पैदा करता हूं। वह पूरी तरह से आत्मनिर्भर है। इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र लेह का पूरा सहयोग रहा है। उनका कहना है कि बकरियों को पहाड़ों पर चराता हूं। सब कुछ आसान नहीं होता। यहां तापमान भी शून्य से 30 डिग्री सेल्सियस तक कम हो जाता है। वह मिट्टी से जा लेते हैं, वही मिट्टी में उपज देते हैं।

भाई की मेहनत रंग लाई : उर्गेन के भाई स्टैंजिन का कहना है कि हम 14 हजार फीट की ऊंचाई पर रहते हैं। वहां खेती करने के लिए अच्छी खाद और बेहतर देखभाल की जरूरत होती है। सब कुछ आसान नहीं होता है। मेरे भाई ने ऐसा करके दिखाया। उनकी मेहनत के कारण उन्हें गांव के लोग मिट्टी का आदमी कहते हैं। भाई ने दो दशकों में कई सब्जियां उगई। हम पहले भी सब्जियां उगाते थे लेकिन भाई ने नए आइडिया से सब्जियां उगाई और अब आत्मनिर्भर बने।

मां को मिला था सरकारी नौकरी का मौका: उर्गेन के पिता की मौत के बाद उनकी मां को सरकारी नौकरी करने का अवसर भी मिला था, लेकिन उन्होंने यह कहकर नौकरी करने से मना कर दिया था वह रोजगार देने वाले बनेंगे न कि रोजगार लेने वाले। उर्गेन ने मां के इस सपने को पूरा किया। उन्होंने छोटी उम्र से मां का खेतों में सहयोग करना शुरू कर दिया। उसकी मेहनत के कारण वे आत्मनिर्भर बना। सरकार ने उनकी मेहनत को सराहा भी है और उसे स्टेट अवार्ड से भी सम्मानित किया है। उर्गेन फुनसोग ने कहा कि मुझे गर्व महसूस हो रहा है कि प्रधानमंत्री ने मेरा नाम लिया है। मैं सभी किसानों से यही कहता हूं कि जैविक खेती ही करें। 

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